तिरंगा के तीन रंग
सर ऊँचा कर कहे तिरंगा
सबसे आगे यह भारत है,
पीठ दिखाए वो हम नहीं-
सीना तना, लक्ष्य शहादत है।
याद दिलाता है चक्र हमें-
बढना हीं अपनी आदत है,
हम शेरों को रोक सके ,
किसमें यह ऎसी ताकत है।
भाषा-भूषा भिन्न हैं मगर,
दिल से हम सब एक हैं।
अनेकों मज़हब क्यों न हमारे,
पर सबके जेहन नेक हैं।
यादों की बारातें लेकर
जमा हुए हैं इस जगह पर,
बल प्रदान कर कहे केसरिया-
आगे बढ, तू मात्र फतह कर।
श्याम घनों के मधु से सिंचित
उर्वर खेतों की छटा निराली है,
जठरानल को प्रति-पल बेधे
माँ की तनया हरियाली है।
जीवन-मरण तो खेल यहाँ का,
सबका सबब विधाता है।
स्वार्थ का त्याग कर हम सोचें-
क्या मुदित हमारी माता है!
एक लक्ष्य रहे, एक रहें हम,
एक रहे हमारा वतन!
भूत के तम में दब-दब जाए-
अराति-राष्ट्र के सभी जतन।
इस तिरंगे के नीचे हम सब
खाते हैं आज एक कसम को-
प्रांत, जिले बने क्यों न हजार,
पर तोड़ेंगे न अखंड वतन को।
-विश्व दीपक 'तन्हा'

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7 पाठकों का कहना है :
शेरों को नहीं
रोका तो शेयरों
को जाता है
एफ आई आई
को यही तो
भाता है
इसी का शोर खूब
शोर मचाता है.
गणतंत्र से पहले
ही खूब शोर मचा
जो पूर्व सन्ध्या
पर ही थमा है.
एक लक्ष्य रहे, एक रहें हम,
'एक रहे हमारा वतन!
भूत के तम में दब-दब जाए-
अराति-राष्ट्र के सभी जतन।'
बिल्कुल सही समय पर प्रस्तुत एक सुंदर कविता.
भाषा-भूषा भिन्न हैं मगर,
दिल से हम सब एक हैं।
अनेकों मज़हब क्यों न हमारे,
पर सबके जेहन नेक हैं।
बहुत सुंदर कविता है यह दीपक जी !!
तन्हा भाई कमाल लिखते हैं आप भी.
मस्त...........
आलोक सिंह "साहिल"
तन्हा भाई..
अनेकता में एकता दर्शाती
राष्ट्रप्रेम से सराबोर
आपकी कविता बहुत भायी
कोटि-कोटि बधाई..
तिरंगे के सम्मान में लिखी एक भावपूर्ण रचना
सामयिक-सटीक रचना
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