बापू
बापू
पुतली बाई का मान
करमचंद की संतान
मोहनदास नाम जिसका
वह बेटा बना महान ।
अहिंसा थी तलवार
सत्य उसकी धार
दुश्मन को भी गले लगा
करते सबको प्यार ।
काम अपना खुद करते
नही किसी से थे डरते
मीलों -मीलों तक वह
लगातार पैदल चलते ।
इंसानों में भेद मिटाया
गोरा- काला एक बताया
अछूतों को हरि-जन बता
उनको अपने गले लगाया ।
'सत्याग्रह' बना आधार
'सविनय अवज्ञा' एक विचार
'दांडी यात्रा', 'भारत छोड़ो'
इनसे हिली ब्रिटिश सरकार ।
'महात्मा' कहा टैगोर ने
'राष्ट्रपिता' बलाया बोस ने
बस गए हृदय वह सबके
'बापू' पुकारा जन जन ने ।
कवि कुलवंत सिंह

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6 पाठकों का कहना है :
कुलवंत जी बहुत प्यारी कविता.बापू की बात ही निराली है,
आलोक सिंह "साहिल"
इंसानों में भेद मिटाया
गोरा काला एक बताया
अछूतों को हरि-जन बता
उनको अपने गले लगाया ।
"very nice .loved reading it, bachpan mey yaad kertey thye aise poem ko"
कुलवंत जी बापू जी के बारे में बहुत अच्छा और सच्चा लिखा है आपने .बहुत पसंद आई आपकी यह कविता !!
कर्म और धर्म निरपेक्षता को परिभाषित करते हुए आप ने बापू को लाकर खड़ा किया ....
साधुवाद .....
सुनीता
बापू गाँधी पर यह नयी बाल कविता अच्छी रची गयी है.
आसानी से याद हो जाने वाली कविता बच्चों को अवश्य पसंद आएगी.
बहुत अच्छी कवित है कुलवंत जी. केवल इस कविता के आधार पर ही कोई भी बच्चा एक अच्छा निबंध लिख सकता है बापू के बारे में.
बधाई स्वीकारें.
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