Thursday, January 10, 2008

जब मैं छोटा बच्चा था... (भाग-2)

बच्चों पिछ्ली बार के वादे के अनुसार फिर हाजिर हूँ कुछ यादें लेकर..
चलो बचपन में चलते हैं ..


जब मैं छोटा बच्चा था... (भाग-1) से आगे..

कितना क्रेजी था गाँव में बन्दर का आना ।
मन्नू- मन्नू कहकर यारो शोर मचाना ॥
घर से चुरा कर चने पोटली में भर लेना ।
होड़- होड़ में बन्दर के हाथों में देना ॥
एक बार बन्दर ने घुड़की जब दिखलायी ।
काँप उठा था बदन, बदन में छायी सिरहन ॥
भोला भाला ...............
बारिश के मौसम में मज़ा बहुत आता था ।
खेतों खालियानों में पानी भर जाता था ॥
हम कागज की नाव बनाकर तैराते थे ।
मुसाफिरों की जगह पतंगे बैठाते थे ॥
कीट पतंगो को मुफ़्त में सैर कराना ।
बैठाते थे खास तोर चींटों को चुन- चुन ॥
भोला भाला ...............
होली के आते ही शरारत आ जाती थी ।
रंग- बिरंगी सी एक मस्ती छा जाती थी ॥
कुंदी में फिर बाँध के धागा ख़ूब बजाते ।
खुलते ही दरवाज़े के फौरन छुप जाते ॥
चेहरों पर फिर ख़ूब लगाते थे हम सबके ।
लाल हरे बैगनी बसंती और पीले रंग ॥
भोला भाला ...............
एक याद फिर जरा उचक कर मुझसे बोली ।
एक बार जा रही थी हम बच्चों की टोली ॥
झूडों से ले तुरई ख़ूब बंदूक बनाईं ।
लाल नील दो देश बंटे, हुई ख़ूब लडाई ॥
पकड़- पकड़ एक दूजे गुट की धुनाई करना ।
ख़ूब चलाना रेत धूल और मिट्टी के बम ॥
भोला भाला ................
पशुओं को नहलाने नदिया पर ले जाना ।
पूँछ पकड़कर साथ- साथ फिर खुद भी नहाना ॥
सभी "लाल बहू कौन की " खेला करते थे ।
रह रह सबको पानी में धकेला करते थे ॥
पानी के अन्दर छुप जाना लगा के डुबकी ।
और डराना बच्चों को फिर मगर-मच्छ बन ॥
भोला भाला ................
नज़र पडी लो घड़ी पर टूटे सारे सपने ।
फिर से हो गया लेट अरे ऑफिस को अपने ॥
एक कशमकश चेहरे पर आखों में पानी ।
क्यूँ छीना मेरा प्यारा बचपन, बता जवानी ॥
चढ़ लोहे के घोड़े चल दिया ऑफिस अपने ।
सोच रह था काश कोई लौटा दे वो क्षण ।
भोला भाला ................


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7 पाठकों का कहना है :

seema gupta का कहना है कि -

नज़र पडी लो घड़ी पर टूटे सारे सपने ।
फिर से हो गया लेट अरे ऑफिस को अपने ॥
एक कशमकश चहरे पर आखों में पानी ।
क्यूँ छीना मेरा प्यारा बचपन, बता जवानी ॥
चढ़ लोहे के घोड़े चल दिया ऑफिस अपने ।
सोच रह था काश कोई लौटा दे वो क्षण ।
भोला भाला ................
" Raghav Jee you have great style of writing about such important topics, which we dont think in our so bussy life. Your poetry always remind me of my past. this one also made me remind of my childhood, and few hours spent in some villages some time. nice thoughts and equally composed in so simple language. enjoyed a lot."

Regards

शोभा का कहना है कि -

राघव जी
बहुत मज़ा आया बचपन की सैर करने में । वो दिन बस यादों में ही बुलाए जा सकते हैं । अपने अनुभवों को इसीप्रकार बाँटते रहिए । सस्नेह

Sushma Garg का कहना है कि -

राघव जी,
बचपन की भूली बिसरी यादों को आपकी कविता ने सामने ला खड़ा कर दिया है. बेहतरीन कविता लेकर आये हैं आप. बधाईयाँ.

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बहुत सुंदर बचपन की बातें
याद दिला दी आपने मीठे सोगाते
प्यारा दुलारा वह सहाना सा बचपन
कैसे भूले यह दिल वह दिन और राते

बहुत ही सुंदर कविता लिखी है आपने राघव जी बधाई!!

अभिषेक सागर का कहना है कि -

राघव जी
क्या मजेदार बचपन की सैर कराते है आप...

बिलकुल अपने बचपन की याद आ जाती है

अच्छी कविता

Alpana Verma का कहना है कि -

हम कागज की नाव बनाकर तैराते थे ।
मुसाफिरों की जगह पतंगे बैठाते थे ॥
कीट पतंगो को मुफ़्त में सैर कराना ।
बैठाते थे खास तोर चींटों को चुन- चुन
***हा !हा ! हा !
bahut khuub!
आप की यह कविता बेहद रोचक है.
अनुभवों को सिलसिलेवार ढंग से पेश करना आप को खूब आता है.
बहुत आनंद आया पढ़कर.
एक बेहतरीन रचना राघव जी बधाई स्वीकारें.

विश्व दीपक का कहना है कि -

राघव जी,
आपके लिखने की कला सच में अद्भुत है। पढने पर बड़े हीं सीधे और सरल लगने वाले शब्द अंदर तक रोमांचित कर देते हैं। आपके साथ बचपन के दिनों में दुबारा जाना बड़ा हीं मनोरम रहा।

बधाई स्वीकारें।

-विश्व दीपक 'तन्हा'

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