बंदर की दुकान (बाल-उपन्यास पद्य/गद्य शैली में)- 10
नौवें भाग से आगे....
10. भाग के आया वहां सियार
बोला मुझको रंग दो यार
नीला पीला काला लाल
जो भी हो रंग मुझ पर डाल
रंग-बिरंगा बन जाऊंगा
पूरा रोब जमाऊंगा
देखो रंग न देना कच्चा
नहीं हूं मै कोई छोटा बच्चा
जिस को वर्षा भी न उतारे
दो वो रंग सारे के सारे
सुनकर बंदर को हंसी आई
लेकिन अंदर ही दबाई
ललारी को बुलवाऊंगा
उससे तुम्हें रंगवाऊंगा ।
10. गधा गया तो बंदर की दुकान पर आया एक सियार। आकर बंदर से बोला -
बंदर दोस्त, बंदर दोस्त तुम मेरे ऊपर रंग लगा दो, तुम्हारे पास नीला पीला काला, लाल....जो भी रंग हो मुझ पर डाल दो।
और हाँ रंग कच्चा नहीं होना चाहिए, मैं अब कोई छोटा बच्चा नहीं हूँ। इस लिए मुझ पर ऐसे रंग डालना जो वर्षा में भीगने पर भी न उतर सकें। तुम्हारे पास जितने भी रंग हैं मुझे सारे के सारे दे दो।
सियार की बात सुनकर बंदर को खूब हँसी आई पर अपनी हँसी को अंदर ही दबाते हुए बोला- मैं तुम्हारे लिए ललारी को बुलवा दूंगा और तुम्हें जो रंग चाहिए उस से रंगवा दूंगा।
ग्यारहवाँ भाग
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5 पाठकों का कहना है :
अरे वाह सीमा जी... बहुत खूब ..
आप तो बधाई की पात्र हैं.. बहुत ही अच्छा...
भाग के आया वहां सियार
बोला मुझको रंग दो यार
नीला पीला काला लाल
जो भी हो रंग मुझ पर डाल
रंग-बिरंगा बन जाऊंगा
पूरा रोब जमाऊंगा
देखो रंग न देना कच्चा
नहीं हूं मै कोई छोटा बच्चा
जिस को वर्षा भी न उतारे
दो वो रंग सारे के सारे
सुनकर बंदर को हंसी आई
लेकिन अंदर ही दबाई
ललारी को बुलवाऊंगा
उससे तुम्हें रंगवाऊंगा ।
समा जी एक बार और बधाई.
ye bandar mama kya cheej hain ,kuch pata to chale sab ko lautaate hi jaa rahe hain ,
ye mahaashya ji kya karne waale hain seema ji bus ab aur intjaar nahi hota .
ये ललारी क्या होता है सीमा जी,,कोई शब्द है या प्रिंटिंग-मिस्टेक...
Kalpana badiya hai.
Badhayi.
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