Monday, November 10, 2008

हितोपदेश - 4.कौआ और साँप

4.कौआ और साँप

कौवा-कौवी इक डाली पर
रहते थे अपने घर पर
उन दोनों के बच्चे चार
सुन्दर था उनका घर-बार
पर उस वृक्ष की छाया पर
साँप ने डाल लिया था घर
करता वह सबको परेशान
ले लेता बच्चों की जान
नन्हें बच्चो को खा जाता
फिर अपने बिल में छुप जाता
दुखी थे उससे पक्षी सारे
पर क्या करते वे बेचारे
इक दिन साँप गया तरु पर
कौवी- कौवा नही थे घर
खेल रहे थे उनके बच्चे
पकड़ साँप ने खाए कच्चे
खाकर उनको भर गया पेट
गया वो जाकर बिल मे लेट
कौवी- कौवा घर वापिस आए
बच्चे उन्होंने गायब पाए
समझ गए वो सारी चाल
साँप ने खाए उनके लाल
दुखी बहुत था उनका दिल
पर वो रो सकते थे केवल
साँप तो कितना ताकतवर
उसके मुख में है जहर
दुखी हो कौआ मन में विचारे
बैठ गया जा नदी किनारे
देखा उसने नदी के पार
खड़े हुए है पहरेदार
अपने गहने वहाँ रखकर
गई रानी जल के अन्दर
आया कौए को एक ख्याल
चली एक उसने भी चाल
एक हार उसने उठाया
जाके साँप के बिल में गिराया
भागे पीछे पहरेदार
देखा साँप के बिल में हार
जैसे ही लेने लगे वो हार
देख के साँप भी आया बाहर
पहरेदार ने साँप को मारा
खुश हो गया अब जंगल सारा
कौए की समझदारी रँग लाई
सबने मिलकर खुशी मनाई
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बच्चो, समझदारी अपनाना
गुस्सें मे तो कभी न आना
सोच समझ के करना काम
होगा ऊँचा जग में नाम


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5 पाठकों का कहना है :

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

सीमा जी बढिया हितोपदेश लिख रही हो आप.. एक दम प्रभावी और रोचक..
बहुत बहुत बधाई..

शोभा का कहना है कि -

सुंदर और उपयोगी संदेश

पुनीत ओमर का कहना है कि -

अच्छी कविता

Anonymous का कहना है कि -

बचपन में ये कहानी पढ़ी थी उस को कविता रूप में देख के बहुत मजा आया आप ने लिखा भी खूब है
सादर
रचना

Divya Narmada का कहना है कि -

चित्र कथा औ' काव्य का, उपयोगी है मेल.
सत्य समझ लें बालजन, गाकर कटे खेल.

कोशिश अच्छी है मगर, हो छोटा आकार.
याद 'सलिल' कर सकेंगे, बच्चे भली प्रकार.

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