Tuesday, October 13, 2009

राजा और हाथी का भार


एक था राजा , मोटा ताज़ा
हाथी उसके महल बिराजा
देख के हाथी मोटा चौड़ा
राजा ने विचारा थोड़ा
लगता नहीं यह मेरा साथी
फ़िर क्यों मुझसा मोटा हाथी
लगा वो करने मन में विचार
है कितना हाथी का भार
मैं भारी या हाथी भारी
तब जानेगी जनता सारी
जब इसका तोलेंगे भार
आते ही यूं मन में विचार
झट से मंत्री को बुलवाया
हाथी तोल का हुक्म सुनाया
मंत्री मन ही मन मुस्काया
मूर्खता पर गुस्सा आया
कहां तुला जो तोले हाथी
राजा को बस बातें आती
हाथ जोड़कर सीस नवाया
और राजा को कह सुनाया
दिखता आपका ज्यादा भार
हाथी तोल का त्यागो विचार
पर राजा को समझ न आई
अपनी बात फ़िर से दोहराई
तब मंत्री बोला महाराज
फ़ैसला इसका होगा आज
इक दूजे की करो स्वारी
पता चलेगा कौन है भारी
जो भी नहीं उठा पाएगा
वही ओ हलका कहलाएगा
सुनकर खुश हो गया राजा
पेट फ़ुला हाथी पे विराजा
खड़ा था हाथी मस्त मलंग
देखके राजा रह गया दंग
अब आई राजा की बारी
लग गई उसकी ताकत सारी
पर हाथी को हिला न पाया
हाथी नें पांव के तले दबाया
देखती रह गई परजा सारी
हाथी था राजा से भारी ।


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7 पाठकों का कहना है :

डॉ० अनिल चड्डा का कहना है कि -

क्या खूब है हाथी राजा की कहानी
इसको पढ़ के शन्नोजी आई हमें याद है नानी
वो ही तो बड़े प्यार से हमको
गोद बिठा कर कहती थी कहानी ।

डॉ० अनिल चड्डा का कहना है कि -

क्षमा करें, शन्नोजी नहीं, सीमाजी

Anonymous का कहना है कि -

tukbandi kuchch theek nahin lagi - jaise ki mota choda - vichar thoda aur hathi bhara - yeh saara. hindyugm ko is par dhyan dena chahiye.

neelam का कहना है कि -

चित्र तो काफी पहले ही देख लिया था ,पर इतने संदर ढंग से ऐसी प्रस्तुति मिलेगी ,इसकी ummeed नहीं थी ,कमाल का लिखती हैं आप ,सीमा जी बधाई स्वीकारें ,दिवाली की शुभकामनाओं के साथ .

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

वाह.........बहुत मज़ा आया

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

सीमा जी,
कविता सुंदर है. बधाई!

और अनिल जी, आप चिंता ना करें.....भूल-चूक तो सबसे होती रहती है.

Shamikh Faraz का कहना है कि -

सुन्दर रचना

एक था राजा , मोटा ताज़ा
हाथी उसके महल बिराजा
देख के हाथी मोटा चौड़ा
राजा ने विचारा थोड़ा
लगता नहीं यह मेरा साथी
फ़िर क्यों मुझसा मोटा हाथी
लगा वो करने मन में विचार
है कितना हाथी का भार
मैं भारी या हाथी भारी
तब जानेगी जनता सारी
जब इसका तोलेंगे भार
आते ही यूं मन में विचार
झट से मंत्री को बुलवाया
हाथी तोल का हुक्म सुनाया
मंत्री मन ही मन मुस्काया
मूर्खता पर गुस्सा आया
कहां तुला जो तोले हाथी
राजा को बस बातें आती
हाथ जोड़कर सीस नवाया
और राजा को कह सुनाया
दिखता आपका ज्यादा भार
हाथी तोल का त्यागो विचार
पर राजा को समझ न आई
अपनी बात फ़िर से दोहराई
तब मंत्री बोला महाराज
फ़ैसला इसका होगा आज
इक दूजे की करो स्वारी
पता चलेगा कौन है भारी
जो भी नहीं उठा पाएगा
वही ओ हलका कहलाएगा
सुनकर खुश हो गया राजा
पेट फ़ुला हाथी पे विराजा
खड़ा था हाथी मस्त मलंग
देखके राजा रह गया दंग
अब आई राजा की बारी
लग गई उसकी ताकत सारी
पर हाथी को हिला न पाया
हाथी नें पांव के तले दबाया
देखती रह गई परजा सारी
हाथी था राजा से भारी ।

रचना सीमा जी को बधाई.

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