Saturday, October 24, 2009

चाणक्य- निंदक नियरे राखिये

उस समय की बात है, जब चाणक्य और चन्द्रगुप्त मिलकर भारतवर्ष में मौर्य साम्राज्य की स्थापना कर रहे थे। सारा देश छोटे-छोटे राज्यों में बँटा था। बिखरी हुई शक्तियों को समेटकर एक राष्ट्र का निर्माण करना सहज काम नहीं था। चाणक्य और चन्द्रगुप्त एक सेना इकट्ठी करके देश के भीतरी राज्यों को जीतने में लगे थे। उनके सामने सबसे बड़ी यह समस्या थी की ज्यों ही वे एक राज्य या प्रांत को जीतकर दूसरे पर आक्रमण करते, त्योंही शत्रु लोग जीते हुए देश पर पुनः अधिकार कर लेते थे। इस प्रकार उनका किया कराया चौपट हो जाता था।

चाणक्य और चन्द्रगुप्त बड़ी विकट परिस्थिति में थे। उनके चारों ओर शत्रुओं का दल प्रबल होता जा रहा था। वे उनको दबाने में असमर्थ थे। धीरे-धीरे उनके साधन समाप्त हो गए और वे मारे-मारे फिरने लगे।

एक दिन चाणक्य और चन्द्रगुप्त वेष बदलकर घूम रहे थे। घूमते-घूमते एक गाँव में उन्होंने यह दृश्य देखा- एक छोटा बालक अपने घर के सामने हाथ में रोटी लिए बैठा था। वह उस रोटी को बीच से नोचता था, इसीलिए इसके किनारे झूलकर गिर पड़ते थे। इसीपर उसकी माँ उसे डाँटती हुई बोली- अरे छोकरे! तू भी चाणक्य जैसा ही मूर्ख जान पड़ता है, रोटी को किनारे से तोड़कर खा।

स्त्री के मुख से अपनी निंदा सुनकर चाणक्य चौंक पड़े। उसने तुंरत पास खड़े होकर पूछा- श्रीमती जी, चाणक्य को तो लोग बड़ा चतुर बताते हैं; आपने किस बात से उसको मूर्ख मान लिया है?

स्त्री ने हँसकर कहा- भले आदमी, इतना भी नही जानते! उस मूर्ख ने देश के बाहरी प्रान्तों को छोड़कर पहले भीतरी भाग को जीतने का प्रयत्न किया। फल यह हुआ कि यह वह शत्रुओं से घिर गया और उसके हाथ कुछ भी नहीं लगा। घर के भीतर का धन चोरों से तभी बचता है, जब बाहर की किवाडें मजबूत और बंद हों।

अक्लमंद को एक इशारा ही काफी होता है। इस खरी आलोचना से चाणक्य को अपनी भूल का पता चल गया। उन्होंने चन्द्रगुप्त को लेकर दुबारा एक नई सेना संगठित की। उसकी सहायता से उन्होंने पहले उन राज्यों को जीतना आरम्भ किया जो देश की चारों सीमाओं पर थे। सीमा प्रान्तों को मुट्ठी में करके उन्होंने भीतरी राज्यों को बाहर से घेर लिया। उनके विरोधियों को न तो बाहर से सहायता मिलने की कोई आसा रही और न जान बचाकर भागने की। वे लोग तो एक प्रकार से बंदीगृह में पड़ गए। चाणक्य और चंद्रगुप्त ने उन्हें सहज ही जीत लिया।

चाणक्य ने जो अपनी निंदा सुनी थी, वह कटु होकर भी उनके बड़े काम की साबित हुई। इसीलिए कबीर ने कहा है -

निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय।
बिनु साबुन पानी बिनु, निर्मल करे सुभाय।।


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6 पाठकों का कहना है :

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

नीलम जी,
कहाँ चली गयीं थीं आप? इतनी अच्छी होशियारी भरी बातों की कहानियाँ सुनाकर आप बहुत अच्छी सीखें लाती हैं सबके लिये जिसका धन्यबाद.

डॉ० अनिल चड्डा का कहना है कि -

सही कहा नीलमजी । परन्तु सभी लोग अपनी निंदा को स्वास्थयपूर्ण ढ़ग से न ले कर बुरा मान जाते हैं । इसीलिये उनकी प्रगति में अवरोध आ जाता है। चाणक्य समझदार व्यक्ति था ।

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

Yes, नीलम मैडम जी, आपके हुकुम की तामील के बारे में पढ़कर हम तो काँप ही गये हैं. इसीलिये आपको इत्तला करने के लिये हमें फिर से टपकना पड़ा की आगे से इसका भी ध्यान रखा जायेगा की आपके ध्यान में हम और हमारी कविता भी रहती है....मतलब की आपने जरूर हमारी रचित रचना का रस-पान किया होगा और हा...हा....ही...ही भी करी होगी. सो इस नाचीज़ की अल्प-बुद्धि को इस बार क्षमा कर दें, प्लीज़, अध्यापिका जी. और आगे से आपका हुक्म सर-आँखों पर (अगर याददाश्त काम करती रही तो...हा..हा..ही..ही..). चाणक्य की तरह हम भी अपनी गलतियों से सीख रहे हैं हर दिन. भला हो उनकी आत्मा का और आपका भी की यह आलेख आपने प्रकाशित किया और अपुन भी कुछ सीख पाये. वैसे आज आप काफी दिनों बाद टपकी हैं बाल-उद्यान में और आप के टपकने से मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है.

neelam का कहना है कि -

ye bhi koi baat hui aapne hme tapka bana diya ,bin mausam ki hi barsaat kar di tapke ki ,hm yaahan se sab par najar rakhte hain ,kaun kisse kab ,kabhi "gobhi aaloo" ,kabhi "tamaatar" ke baare me "idhar -dhar ki baaten" kar raha hai.
shanno ji paanch ka pahaada yaad kiya ki nahi abhi tak, kya nahi ????????to phir hmaare huqm ki taamil ho ,waise aap kaapengi to london niwaasiyon ka kya hoga .wo sab india bhaag aayenge ki ,ganeemat hai india me itna kampan nahi hai kyounki shanooji to india me nahi hain hahahahahah
haste hasaate rahiye ,
hindygm padhiye ,
baaludyaan me aakar bachche baniye

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

जी हाँ, पहाडे भी रट रही हूँ, टीचर जी. (क्या मुसीबत है?.....एक और हुक्म) hahhhhhhhhhh. लेकिन इम्तहान मत लीजियेगा मेरा, प्लीज़. और आपका टपकना तो गर्मी के मौसम की मीठी पकी हुई अम्बियों जैसा होता है जिन्हें हम बचपन में टपके बोलते थे.

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

अत्यंत उपयोगी

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