क्या खूब थी उनकी लाठी
वो झेल न पाये आँधी,
जो ले कर आये गाँधी,
बेकार हुई सब तोपें,
क्या खूब थी उनकी लाठी।
सदियों में वो दिन आया,
भारत ने हीरा पाया,
उसने जब आँख थी खोली,
इक नया सवेरा आया।
हमें अपनी धरती देने को,
उसने खुद को था माटी किया,
दे हमें खुले चमन की हवा,
वो खुद न जाने कहाँ गया।
दुश्मन तो कुछ न बिगाड़ सके,
अपनों ने गोली मारी थी,
समझो कि माली ने खुद,
अपनी ही बगिया उजाड़ी थी।
अपना सब कुछ दे कर के,
इस गुलशन को आबाद किया,
तोड़ जंजीर गुलामी की,
हमको उसने आजाद किया।
याद वो बरबस आता है,
जब दो अक्टूबर आता है,
ऐसे महापुरुष के आगे,
सिर खुद ही तो झुक जाता है।
--डॉ॰ अनिल चड्डा
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3 पाठकों का कहना है :
अनिल जी,
बहुत अच्छी लगी कविता '' क्या खूब थी उनकी लाठी ''....आइये हम सब अपने बापू को याद करें और उनकी कुर्बानी को.
बापू की १४० वीं जयंती पर बढिया कविता के साथ उन्हें नमन .
वो झेल न पाये आँधी,
जो ले कर आये गाँधी,
बेकार हुई सब तोपें,
क्या खूब थी उनकी लाठी।
sundar कविता
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