आज है धनतेरस
पापा आज है धनतेरस
ऐसे बैठे हो क्यों नीरस
पता नहीं है क्या तुमको
बाजार जाना है हमको
दादी ने है मुझे बताया
क्यों धनतेरस मनाते हैं
आज के दिन बाजार से
हम नई-नई चीजें लाते हैं
कोइ लाता सोना-चाँदी
कोइ रसोई के बर्तन
फ्रिज-टीवी भी लाते हैं
और लाते रोली-चंदन
बोलो पापा क्या लायेंगे
कुछ सोचा है तुमने
मैने सोचा है लायेंगे
पहले दादी के चश्मे
कई दिनों से देखा मैने
असमंजस में रहती है
ठोकर खाती गिरती-पढती
इधर-उधर फिरती है
कोइ बात नहीं तुम मुझको
कुछ भी मत दिलवाना
अब छोडो़ अपनी दुविधा
पहले दादी के चश्मे लाना
दीवाली पर जब आ जायेगी
उसकी आँखों की उजियाली
तभी मनाऊँगा मैं पापा
खुश होकर यह दीवाली
-----दीपाली पंत तिवारी
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3 पाठकों का कहना है :
धन तेरस की बधाई हो जी..
लेट हो गया..
:)
लेकिन धनतेरस पर ही युग्म से जुडा था वो दिन याद कर कर के बड़ा अच्छा लग रहा है,,
दीपाली जी आपको भी धनतेरस की बधाई.
बहुत ही सुन्दर कविता.
दीवाली पर जब आ जायेगी
उसकी आँखों की उजियाली
तभी मनाऊँगा मैं पापा
खुश होकर यह दीवाली
दीवाली पर जब आ जायेगी
उसकी आँखों की उजियाली
तभी मनाऊँगा मैं पापा
खुश होकर यह दीवाली
bahut badhiya sandesh deti hui pyaari kavita
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