Thursday, October 15, 2009

आज है धनतेरस



पापा आज है धनतेरस
ऐसे बैठे हो क्यों नीरस
पता नहीं है क्या तुमको
बाजार जाना है हमको

दादी ने है मुझे बताया
क्यों धनतेरस मनाते हैं
आज के दिन बाजार से
हम नई-नई चीजें लाते हैं

कोइ लाता सोना-चाँदी
कोइ रसोई के बर्तन
फ्रिज-टीवी भी लाते हैं
और लाते रोली-चंदन

बोलो पापा क्या लायेंगे
कुछ सोचा है तुमने
मैने सोचा है लायेंगे
पहले दादी के चश्मे

कई दिनों से देखा मैने
असमंजस में रहती है
ठोकर खाती गिरती-पढती
इधर-उधर फिरती है

कोइ बात नहीं तुम मुझको
कुछ भी मत दिलवाना
अब छोडो़ अपनी दुविधा
पहले दादी के चश्मे लाना

दीवाली पर जब आ जायेगी
उसकी आँखों की उजियाली
तभी मनाऊँगा मैं पापा
खुश होकर यह दीवाली

-----दीपाली पंत तिवारी


आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

3 पाठकों का कहना है :

manu का कहना है कि -

धन तेरस की बधाई हो जी..
लेट हो गया..
:)
लेकिन धनतेरस पर ही युग्म से जुडा था वो दिन याद कर कर के बड़ा अच्छा लग रहा है,,

Shamikh Faraz का कहना है कि -

दीपाली जी आपको भी धनतेरस की बधाई.
बहुत ही सुन्दर कविता.

दीवाली पर जब आ जायेगी
उसकी आँखों की उजियाली
तभी मनाऊँगा मैं पापा
खुश होकर यह दीवाली

neelam का कहना है कि -

दीवाली पर जब आ जायेगी
उसकी आँखों की उजियाली
तभी मनाऊँगा मैं पापा
खुश होकर यह दीवाली

bahut badhiya sandesh deti hui pyaari kavita

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)