Tuesday, June 30, 2009

बंदर की दुकान (बाल-उपन्यास पद्य/गद्य शैली में)- 14

तेरहवें भाग से आगे....

14. आ दुकान पर गरजा शेर
बोला लाओ न जरा भी देर
जंगल में चुनाव का मौसम
डर लगता है मुझको हर दम
दe दो जो मुझको तुम वोट
बदले में ले लेना नोट
जीतूँगा जंगल का राज
सजेगा मेरे सिर पर ताज
तब तुम मेरे पास में आना
खोलूँगा जंगल का खजाना
जितना चाहो धन ले आना
मजे से अपनी दुकान चलाना
दुविधा में बंदर अब आया
खोल दुकान बड़ा पछताया।

14. शेर बंदर की दुकान पर आकर गरजने लगा और बोला:- जंगल में चुनाव का मौसम है, मुझे हर पल हार जाने का डर लगा रहता है। जो तुम मुझे वोट मोल दे दो तो मैं जीत जाऊँगा और जंगल का राजा बन जाऊँगा। फिर तुम मेरे पास आना तो मैं जंगल का सारा खजाना तुम्हारे लिए खोल दूँगा, तुम जितना चाहो धन ले लेना और मजे से अपनी दुकानदारी चलाना।
अब तो बंदर दुविधा में फँस गया। क्या करे क्या न करे? बेचारा बंदर दुकान खोल कर पछताने लगा।

पंद्रहवाँ (अंतिम) भाग


Monday, June 29, 2009

छुट्टी खत्‍म

छुट्टी बीती,
खुले स्‍कूल।
रोज तैयार हो,
हम चले स्‍कूल।।

मैडम आई,
दोस्‍त भी आये,
सबने मिलकर,
छुट्टी की बातें सुनाई।।

जो गाँव गया वो,
आम भी खाया जामुन भी खाया।
जो शहर गये,
वो लाल किला और ताजमहल को देखा।।

कुछ ने छुट्टी का किया सदउपयोग,
अपने पाठ्यक्रम को दुहराया खूब।
कुछ न छुट्टी भर मस्‍ती की,
और एडमिशन पाने में सुस्‍ती की।।

अब छुट्टी हो गई है खत्‍म,
सपना तोड़ो जागों अब।
नई क्‍लास में खूब करो पढ़ाई,
ताकि बन जाओं ''राजा भाई''।।


बंदर की दुकान (बाल-उपन्यास पद्य/गद्य शैली में)- 13

बारहवें भाग से आगे....

13. इतने में इक हाथी आया
आकर अपना सूंड हिलाया
अकेलेपन से थक गया हूँ
अब मैं सचमुच पक गया हूँ
लाकर दे दो मुझको हथिनी
होगी मेरी जीवन संगिनी
वो हथिनी मैं हाथी राजा
बजेगा फिर जंगल में बाजा
बदले में तुम कुछ भी बोलो
जो चाहिए जी भर मुँह खोलो
पीठ पे अपनी बिठाऊँगा
जंगल पूरा घुमाऊँगा ।
बंदर करने लगा विचार
क्या हो हाथी का उपचार
हथिनी यहाँ कहाँ से आई
कैसे इसको दूँ विदाई ?
तभी सुनी इक शेर दहाड़
हाथी पे ज्यों टूटा पहाड़
भागा वहां से हाथी राजा
याद नहीं अब उसको बाजा।

13. इतने में ही एक हाथी दुकान पर आ पहुँचा और बंदर से कहने लगा-
"बंदर भाई, मैं अकेलेपन से थक गया हूँ, जो तुम मुझको एक हथिनी दे दो तो मैं उस संग ब्याह रचाऊँगा, जंगल में बाजा बजवाऊँगा। वो मेरी रानी होगी और मैं उसका हाथी राजा। बदले में तुम्हें जो चाहिए मुझसे ले लो। चाहो तो तुम्हें अपनी पीठ पर बैठाकर पूरे जंगल की सैर करवा दूंगा।
हाथी की बात सुन बंदर विचारने लगा कि अब इसको कैसे टरकाया जाए, भला दुकान पर हथिनी कहाँ से आई? इतने में एक शेर की दहाड़ सुनाई दी, हाथी पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा और बैण्ड-बाजा भुला वहाँ से भागने लगा।

चौदहवाँ भाग


Saturday, June 27, 2009

बंदर की दुकान (बाल-उपन्यास पद्य/गद्य शैली में)- 12

ग्यारहवें भाग से आगे....

12. बोली लोमड़ी बंदर भाई
खास चीज यहां लेने आई
दे दो राजनीति का गुर
मिले जो राजा के संग सुर
उसकी पी.ए. बन जाऊं खास
भैया मेरा करो विश्वास
पी.ए. बन भी याद रखूँगी
तेरा सारा काम करुँगी
तुम तो सबसे अच्छे भाई
तेरे काम कभी मैं आई
खुद को समझूँगी मैं धन्य
नहीं तुझसा कोई भाई अन्य
समझा बंदर सारी बात
चालाकी लोमड़ी की जात
फ़िर कुछ सोच के बोला बहना
मान ले जो तू मेरा कहना
दो दिन बाद मेरे घर आना
राजनीति का गुर ले जाना
पर सोचा यह मन ही मन
यही गुर तो है उत्तम धन
गुर जो पास मेरे यह होता
खुद न पी.ए. बन जाता
12. लोमड़ी आकर बंदर से कहने लगी- "बंदर भाई! बंदर भाई, मुझे राजनीति का गुर दे दो, जिससे मैं राजा के सुर में सुर मिला सकूं और उसकी खास पी.ए. बन जाऊं। देखना पी.ए. बनकर मैं तेरे किसी काम आ सकी तो स्वयं को धन्य समझूँगी। तुम तो दुनिया के सबसे अच्छे भाई हो।"
बंदर लोमड़ी की चालाकी भरी बातें सब समझ गया और कुछ सोच कर बोला- "तुम दो दिन बाद मेरे घर पर आना और राजनीति का गुर मैं तुम्हें दे दूंगा।"
पर मन ही मन बंदर विचार करने लगा कि यही गुर तो सबसे खास है, जो यह गुर मेरे पास होता तो मैं स्वयं न राजा का पी.ए. बन जाता।

तेरहवाँ भाग


Friday, June 26, 2009

भोजन

भोजन से संसार
भोजन दे आधार .

भोजन को दो मान
गेहूँ हो याँ धान .

तरह तरह के भोज
चाहें सब हर रोज .

भूख से हो कर तंग
शिथिल हो जाते अंग .

भोजन मिले तो जान
तन में खिलते प्राण .

मत करना अपमान
भोजन है भगवान .

भोजन से अनजान
कोई नही इंसान .

मिले भोज दो वक्त
तन में बनता रक्त .

खेत जोते किसान
उसको दें सम्मान .

पेट जो खाली जान
भोजन देना दान .

भोजन है आधार
जग जीवन का सार .

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, June 25, 2009

बंदर की दुकान (बाल-उपन्यास पद्य/गद्य शैली में)- 11

दसवें भाग से आगे....

11. भागता आया एक खरगोश
बोला मुझको दे दो जोश
सिर पर आन पड़ा है चुनाव
लगे न ऐसे में कोई घाव
करना मैंने खूब प्रचार
अपनी पार्टी का सरदार
जिताऊँगा उसको हर हाल
देखना तुम सब मेरा कमाल
जो तुम मुझमें जोश भरोगे
तो समाज की सेवा करोगे
जीते तो दूँगा उपहार
होगी जो अपनी सरकार
तो हम मिलकर मजे करेंगे
आजादी से घूमे-फिरेंगे
बंदर ने तो जुबान न खोली
इतने मे आ लोमड़ी बोली

11. इतने में भागता-भागता एक खरगोश बंदर मामा के पास आ पहुँचा और बोला:-
बंदर भाई, बंदर भाई जल्दी से मुझमें जोश भर दो। तुम तो जानते हो जंगल में चुनाव का मौसम चल रहा है और मुझे अपने उम्मीदवार के लिए खूब प्रचार करना है। उसको हर हाल में जिताना मेरी जिम्मेदारी है। जो तुम मुझमें जोश भर दोगे तो फिर मेरा कमाल देखना। ऐसा करके तुम एक तरह से समाज की सेवा ही करोगे और अगर मैं अपने सरदार को जिताने में सफल रहा तो तुम्हें भी ढेर सारे उपहार दूंगा। फ़िर जंगल में अपनी सरकार होगी, हम सब आजादी से घूमेंगे-फिरेंगे और मजे करेंगे।
बंदर मामा ने अभी कोई जवाब न दिया था कि इतने में एक लोमडी आकर बोली-

बारहवाँ भाग


Wednesday, June 24, 2009

बंदर की दुकान (बाल-उपन्यास पद्य/गद्य शैली में)- 10

नौवें भाग से आगे....

10. भाग के आया वहां सियार
बोला मुझको रंग दो यार
नीला पीला काला लाल
जो भी हो रंग मुझ पर डाल
रंग-बिरंगा बन जाऊंगा
पूरा रोब जमाऊंगा
देखो रंग न देना कच्चा
नहीं हूं मै कोई छोटा बच्चा
जिस को वर्षा भी न उतारे
दो वो रंग सारे के सारे
सुनकर बंदर को हंसी आई
लेकिन अंदर ही दबाई
ललारी को बुलवाऊंगा
उससे तुम्हें रंगवाऊंगा ।

10. गधा गया तो बंदर की दुकान पर आया एक सियार। आकर बंदर से बोला -
बंदर दोस्त, बंदर दोस्त तुम मेरे ऊपर रंग लगा दो, तुम्हारे पास नीला पीला काला, लाल....जो भी रंग हो मुझ पर डाल दो।
और हाँ रंग कच्चा नहीं होना चाहिए, मैं अब कोई छोटा बच्चा नहीं हूँ। इस लिए मुझ पर ऐसे रंग डालना जो वर्षा में भीगने पर भी न उतर सकें। तुम्हारे पास जितने भी रंग हैं मुझे सारे के सारे दे दो।

सियार की बात सुनकर बंदर को खूब हँसी आई पर अपनी हँसी को अंदर ही दबाते हुए बोला- मैं तुम्हारे लिए ललारी को बुलवा दूंगा और तुम्हें जो रंग चाहिए उस से रंगवा दूंगा।

ग्यारहवाँ भाग


Tuesday, June 23, 2009

बंदर की दुकान (बाल-उपन्यास पद्य/गद्य शैली में) -9

आठवें भाग से आगे....
9. टें टें करता आया गधा
बोला तुम खुश रहो सदा
कर लो जो तुम मुझ संग यारी
चलेगी अपनी शॉप न्यारी
धोबी घाट में मैं जाऊँगा
कपड़े चुराकर ले आऊँगा
बेच के पैसे तुम ले लेना
बदले में मुझे चारा देना
बोला बंदर कर दो माफ़
कपडे वो तो होंगे साफ़
खेला जो चोरी का खेल
हो जाएगी हमको जेल
फिर तुम ऐसी बात न करना
पुलिस बुला लूँगा अब वरना ।
दौडा गधा सुन उल्टे पैर
सोचा मेरी होगी न खैर ।
9 . अब बंदर की दुकान पर आया गधा और बंदर को खुश रहने का आशीर्वाद देकर बोला:-
बंदर भाई, बंदर भाई अगर तुम मेरे साथ हाथ मिला लो तो अपनी यह दुकान खूब चलेगी।
हाँ, हाँ गधे भाई! पर कैसे? ( बंदर बोला )
देखो, मैं रोज धोबी घाट पर जाऊँगा और कपड़े चुराकर ले आया करुँगा। तुम उन कपड़ों को बेचकर पैसे कमा लेना और बदले में मुझे खाने के लिए चारा दे देना।
बंदर तो गधे की बात सुनकर डर गया और बोला- गधे भाई तुम मुझे तो माफ़ ही करो। अगर चोरी पकड़ी गई तो हम दोनों को जेल की हवा खानी पड़ेगी। मेरे सामने फिर कभी ऐसी बात की तो मैं पुलिस बुला लूँगा। पुलिस का नाम सुनते ही गधा वहां से ऐसा रफ़ू-चक्कर हुआ कि फिर पीछे मुडकर भी नहीं देखा।

दसवाँ भाग


Monday, June 22, 2009

बंदर की दुकान (बाल-उपन्यास पद्य/गद्य शैली में) - 8

सातवें भाग से आगे....

8. सुनकर सांप भी दौडा आया
सामने आकर फ़न फ़ैलाया
पहले उसने भरी फुँकार
दे दो मुझको चूहे चार
बदले में ले लो जहर
बेचना उसको जाके शहर
डर गया बंदर मन ही मन
खतरे में जो पड़ गया जीवन
बोला क्षमा करो हे नाग
आए तुम यही उत्तम भाग
कीमत तुझसे मैं न लूंगा
चूहों संग मेंढक भी दूंगा
पर करना होगा इंतजार
खाली है चूहों का जार
खुद ही शहर को जाऊंगा
चूहे लेकर आऊंगा
अब तुम जाकर करो आराम
नहीं लूंगा कुछ तुमसे दाम

8. बंदर की दुकान की चर्चा सुनकर सांप भी आया और अपना फ़न फैला फुँकार कर बोला:-
मुझे अभी चार चूहे दे दो, बदले में मै तुम्हें अपना जहर दे दूंगा। तुम उसे शहर में जाकर बेच देना और पैसे कमा लेना।

सांप को देखकर बंदर तो मन ही मन डर गया। उसे आपनी जान पर खतरा मंडराता दिखा और हाथ जोड कर सांप से बोला:-
हे नाग देवता! मुझे क्षमा करो परन्तु मैं आपसे कोई दाम नहीं लूंगा। आप मेरी दुकान पर आए, यही मेरा सौभाग्य है।
मैं आपको चूहों के संग में मेंढक भी दूंगा पर इसके लिए आपको थोड़ा इन्तजार करना पड़ेगा क्योंकि चूहों का जार अभी खाली हो चुका है। आपके लिए मैं स्वयं शहर को जाऊँगा और चूहे लाकर आप तक पहुँचा दूँगा। आप जाकर आराम करो, मैं आपसे उसके कोई दाम नहीं लूंगा।
इस तरह से बंदर ने सांप से पीछा छुड़ाया।

नौवाँ भाग


Sunday, June 21, 2009

सुनिए आलू, भालू, चिड़िया, बंदर मामा और हाथी पर कविताएँ

बच्चो,

हर रविवार हम आपके लिए पॉडकास्ट लेकर आते हैं। आज हम लेकर आये हैं दीपाली पन्त तिवारी "दिशा" आंटी की आवाज़ में कुछ कविताएँ। दिशा आंटी बेंगलुरू में रहती हैं। इन्हें कविताएँ लिखने का शौक है।

आलू बोला


बंदर मामा


भालू-चिड़िया


चंदा मामा


हाथी राजा


Saturday, June 20, 2009

बंदर की दुकान (बाल-उपन्यास पद्य/गद्य शैली में) - 7

छठवें भाग से आगे....

7. टर्र टर्र करता मेंढक आया
आकर बंदर को फ़रमाया
सुना है तेरी शॉप कमाल
मिलता है यहां सब माल
तपती गर्मी से हूं तंग
जल रहा मेरा अंग-अंग
दे दो जो मुझको बरसात
दूंगा फिर मैं सबको मात
सुनकर बंदर था हैरान
कैसे ग्राहक हैं महान
बोला मेघ बुलवाता हूँ
तेरे घर पहुँचाता हूँ।

7. अब टर्र-टर्र करता हुआ मेढक बंदर के पास आया और आते ही फ़रमाया :-
सुना है बंदर भाई, तुम्हारी दुकान बड़े कमाल की है, यहां पर हर चीज मिलती है।

हां हां मेढक भाई, बोलो तुम्हें क्या चाहिए।

देखों गरमी से मेरा बुरा हाल हो रहा है, मेरा पानी के बिना अंग-अंग जल रहा है। अगर तुम मुझे थोड़ी सी बरसात दे दो तो मैं सबको मात दे सकता हूँ।

सुनकर बंदर हैरान था और मन ही मन बुदबुदाया, अरे कैसे कैसे महान ग्राहक हैं पर मेढक से बोला:- मैं अभी बादल को बुलावा भेजता हूं, और वर्षा तुम्हारे घर तक पहुँचा दूंगा।

आठवाँ भाग


Thursday, June 18, 2009

बंदर की दुकान (बाल-उपन्यास पद्य/गद्य शैली में) - 6

पाँचवें भाग से आगे....

6. ढोल उठाकर भालू आया
ता ता थैया नाच दिखाया
बोला क्या मिलता है मदारी
घूमूँ जिस संग दुनिया सारी
रियलटी शो में जाऊँगा
सबको नाच नचाऊँगा
दुनिया को दिखलाऊँगा
पैसा खूब कमाऊँगा
मुझे मदारी का बस चाव
बोलो मिलता है क्या भाव
एजेण्ट को अभी फोन करूँगा
तेरा चाव भी पूरा करूँगा
घर जाकर करो इन्तजार
आएगा मदारी तेरे द्वार

6. अब बंदर मामा की दुकान पर गले में ढोल लटकाए भालू आया। आते ही उसने पहले तो ता ता थैया करके अपना नाच दिखाया और बंदर से बोला:-
भैया बंदर क्या तुम्हारे पास ऐसा मदारी मिलता है, जिसके संग मैं पूरी दुनिया में घूम-घाम कर अपना नाच दिखा सकूं। फिर मैं रियलटी शो में जाऊँगा और सबको नाच-नचा कर अपनी योग्यता पूरी दुनिया को दिखाऊंगा, पैसा भी खूब कमाऊंगा। बस मुझे एक मदारी दे दो और हां उसका मोल भी बता दो।

बंदर अब अनमने मन से बिना उसकी तरफ़ देखे ही बोला :-
अभी अपने एजेण्ट को फ़ोन लगाता हूँ, मैं तुम्हारा चाव भी अवश्य पूरा करूँगा। तुम घर जाकर मदारी के पहुँचने का इन्तजार करो।

सातवाँ भाग॰॰॰


Wednesday, June 17, 2009

बंदर की दुकान (बाल-उपन्यास पद्य/गद्य शैली में) - 5

चौथे भाग से आगे....

5.उडता-उडता कौवा आया
कांव-कांव का शोर मचाया
दुकान को देखने के बहाने
लगा वो आस-पास मंडराने
बोला फिर दो एक ट्री
एक के साथ में एक फ़्री
उस पर घर बनाऊंगा
आराम से फिर रह पाऊंगा
गाऊंगा बैठ के मजे से गाना
गाना सुनने तुम भी आना
क्रोध से हो गया बंदर लाल
पर आया उसको ख्याल
बोला वो लगवा दूंगा
घर तेरा बनवा दूंगा
लगेंगे पर इसमें कुछ दिन
देखो तुम न होना खिन्न
ज्यों ही बन जाएगा घर
कर दूंगा मैं तुम्हें खबर

5. अब उडता-उडता कौआ आया और कांव-कांव करके शोर मचाने लगा। सबसे पहले तो वह दुकान को देखने के बहाने इधर-उधर कांव-कांव करता हुआ दुकान के ऊपर मंडराने लगा। फिर आकर बोला:-
बंदर भैया, मुझे एक ट्री दे दो, देखो मुझे पता है यह एक के साथ एक फ़्री मिलता है। उस पर मैं अपना घर बनाऊंगा और फिर मजे से बैठकर गाना गाऊंगा। तुम भी मेरा गाना सुनने के लिए जरूर आना।
यह सुनकर बंदर तो गुस्से से लाल-पीला होने लगा लेकिन फ़िर अपने गुस्से को दबाते हुए बोला:-
कौए भैया मैं तुम्हें ऐसा ही पेड़ मंगवा दूंगा और इतना ही नहीं उस पर तुम्हारा घर भी बनवा कर दूंगा। पर देखो इस काम में तो कुछ दिन का समय लगेगा और तुम नाराज़ नहीं होना। जैसे ही तुम्हारा घर बन जाएगा मैं तुम्हें इत्तला कर दूंगा।

छठवाँ भाग


Tuesday, June 16, 2009

गुरु अर्जुनदेव- लघुता तें प्रभुता मिले

सिक्खों के नामी गुरु अर्जुनदेव जब पहले-पहल अखाड़े में शामिल हुए तो उनके गुरु ने उन्हें जूठे बरतन साफ़ करने का काम सौंपा। अर्जुनदेव बड़े ख़ुशी से सबके बरतन मांजने लगे। अन्य शिष्य तो गुरु जी के पास बैठकर भजन गाते और सत्संग का आनंद लेते थे, लेकिन वे बेचारे बड़े सवेरे से लेकर नित्य आधी रात तक इसी काम में लगे रहते।
उन्होंने कभी भी चाकरी के कष्ट और अपमान को मन पर नहीं आने दिया। लोग तो यही समझते थे की गुरु जी अन्य चेलों के सामने अर्जुनदेव को तुच्छ समझते हैं, इसलिए उन्होंने उसको भजन-सत्संग से दूर रखा है, लेकिन यह उनका भ्रम था।
गुरूजी आदमी पहचानना जानते थे। उनकी दृष्टी में सैकडों भजनानंदियों की अपेक्षा एक सेवक अधिक काम का था। समाधि लेने के पूर्व उन्होंने बहुत सोच-विचार कर अपने शिष्यों में से एक को अपना उत्तराधिकारी चुन लिया और बिना किसी को बताये उसीके नाम अधिकार-पत्र लिखकर रख दिया।
उनके बाद वह पत्र खोला गया। लोगों को यह देखकर आश्चर्य हुआ की गुरूजी ने उसी बरतन मांजने वाले शिष्य को गद्दी सौंपी थी। सिक्खों ने अर्जुनदेव को अपना पाचवां गुरु मान लिया।
कबीर ने ठीक कहा है:
"लघुता तें प्रभुता मिले, प्रभुता तें प्रभु दूरी।"

और गुरु नानक ने भी बड़े अनुभव की बात कही है:

"नानक नन्हे हूँ , रहो जैसी नन्ही दूब।
घास-पास सब जरि गए, दूब खूब को खूब।।"

प्रस्तुति- पाखी मिश्रा


Monday, June 15, 2009

बंदर की दुकान (बाल-उपन्यास पद्य/गद्य शैली में)- 4

तीसरे भाग से आगे....

4. अब थोडी देर में बंदर मामा की दुकान पर भौं-भौं करता हुआ कुत्ता आ पहुंचा और आते ही:-

थोडी देर में कुत्ता आया
भौं भौं करके कह सुनाया
ऐसी बिल्ली का क्या रेट
जिससे भर जाए मेरा पेट
दे दो मुझको ताजी-ताजी
बनाऊंगा बिल्ली की भाजी
देखो देना बिल्ली मोटी
साथ में दे देना दो रोटी
सुनकर बंदर हुआ अवाक्
और कुत्ते से बोला तपाक
ऐसी बिल्ली दूंगा तुझको
याद करेगा हर पल मुझको
आर्डर बुक अब कर लेता हूं
कल तक तेरे घर देता हूं
ऐसे कुत्ते को टरकाया
मन ही मन क्रोध भी आया

बोलो बंदर भाई, बिल्ली का क्या रेट है ?
देखो, मुझे एक ताजी-ताजी मोटी-मोटी बिल्ली और साथ में दो रोटी भी दे दो। आज मैं बिल्ली की भाजी बनाऊंगा, जिसे खाकर मेरा पेट भर जाए।
अब बंदर को बहुत गुस्सा आने लगा, लेकिन फ़िर कुत्ते से बोला :-
कुत्ते भाई, मैं तुम्हें ऐसी बिल्ली दूंगा कि तुम उसे खाकर मुझे सदा याद रखोगे। मैं अभी तुम्हारा आर्डर बुक कर लेता हूँ और कल तक तुम्हें दे दूंगा। यूं बंदर मामा नें कुत्ते को टरका दिया।

पाँचवाँ भाग


Sunday, June 14, 2009

बच्चों के स्वर में कुछ बाल कविताएँ

आज हम लाये हैं बच्चों की आवाज़ में कुछ कविताएँ। ये कविताएँ सभी बच्चों को विद्यालयों में पढ़ने की मिली होंगी।

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा


रक्षाबंधन


हाथी राजा


प्रस्तुति- नीलम मिश्रा


Friday, June 12, 2009

विज्ञान

जन जीवन को सुखी बनाया
देखो यह विज्ञान की माया
नित नया अन्वेष कराया
जन जन तक इसको पहुंचाया .

सुख सुविधा के ढ़ेर लगाए
स्वर्ग धरा पर यह दिखलाए
बिजली, कूलर, पंखा आए
फ्रिज, ए. सी. ठंडा रखवाए .

गाड़ी, मोटर, प्लेन जरूरी
दूर लगे न कोई भी दूरी
आशा सबकी करते पूरी
पैसा रखना जेब जरूरी .

दूर गगन में धाक जमाई
उपग्रह की भरमार लगाई
चंदा की धरती खुदवाई
मंगल की भी सैर कराई .

सागर में भी पैठ लगाई
पनडुब्बी में दौड़ लगाई
सागर तल की कर खुदवाई
ईंधन की भरमार लगाई .

कंप्यूटर का खेल निराला
हर कोई जपता इसकी माला
मोबाइल जेब में सबने डाला
भैया, दीदी, मम्मी, खाला .

खुशियां सबके जीवन आएं
मिलकर आओ बांटें खाएं
द्वेष शत्रुता भूल जाएं
जग में हर जीवन महकाएं .

कवि कुलवंत सिंह
kavi kulwant singh


Thursday, June 11, 2009

बंदर की दुकान (बाल-उपन्यास पद्य/गद्य शैली में)- 3

दूसरे भाग से आगे....

3. चूहा गया तो बिल्ली आई
राम-राम आकर बुलाई
चूहे का बोलो क्या मोल
दो किलो मुझको दो तोल
ताजे-ताजे मोटे-मोटे
नहीं चाहिएं मुझे चूहे छोटे
गुस्सा बंदर को अब आया
पर मन ही मन में दबाया
बोला बंदर बिल्ली बहना
माने जो तू मेरा कहना
चूहे तुम्हें मंगवा दूंगा
घर तेरे भिजवा दूंगा
बिल्ली को यूं दे विदाई
किसी तरह से जान छुड़ाई ।

3. चूहा गया तो इतने में बिल्ली दुकान पर आ पहुँची और :-
राम राम बंदर भैया
राम राम बिल्ली बहना
क्या तुम्हारे पास मोटे-मोटे, ताजे- ताजे चूहे हैं?
चूहों का भाव क्या है? और मुझे दो किलो तोल कर दे दो। देखना चूहे छोटे नहीं होने चाहिएं।
बिल्ली की बात सुनकर बंदर को थोडा गुस्सा आया पर अपने गुस्से पर काबू पाते हुए बोला:-
बिल्ली बहना अगर तुम मेरी बात मानों तो अपने घर जाकर आराम करों और मैं चूहे मंगवा कर तुम्हारे घर पर ही भिजवा दूंगा। ऐसा कहकर बंदर मामा नें बिल्ली मौसी को घर भेज दिया।

चौथा भाग


Wednesday, June 10, 2009

बंदर की दुकान ( बाल-उपन्यास पद्य/गद्य शैली में)-2

पहले भाग से आगे

2.सबसे पहले चूहा आया
बंदर को आ शीश झुकाया
मिलेगा बिल क्या बना-बनाया
अंदर से हो सजा सजाया
जिसमें भरे हुए हों दाने
हमें तो बस खाने ही खाने
बोला बंदर चूहे भाई
ऐसी बिल तो अभी न आई
आर्डर पे मंगवा दूंगा
आते ही तुम्हें इतला दूंगा
यूं कह चूहे को टरकाया
मन ही मन बंदर मुस्काया

2. बंदर की दुकान पर सबसे पहले चूहा आया, आकर उसने बंदर को शीश झुकाया और बोला :-
बंदर भाई , बंदर भाई क्या ऐसा बना बनाया बिल मिलेगा जिसके अंदर दाने भरे हों और मैं बस उसे आराम से बैठ कर खाता रहूं।
बंदर चूहे की बात सुन कर मन ही मन मुस्काने लगा लेकिन फिर चूहे से बोला:-
नहीं चूहे भाई, अभी तक ऐसी बिल मैं नहीं लाया हूं।
तुम्हें चाहिए तो मैं उसे आर्डर पे मंगवा दूंगा और जैसे ही आ जाएगी मै तुम्हें संदेशा भेज दूंगा।
यूं बंदर मामा ने चूहे को टरका दिया।

तीसरा भाग


Tuesday, June 9, 2009

बंदर की दुकान ( बाल-उपन्यास पद्य/गद्य शैली में ) -1

बच्चो,
आज से मैं तुमलोगों को एक उपन्यास पढ़वाने जा रही हूँ, जो पद्य और गद्य दोनों में होगी। रोज़ एक-एक भाग सुनाऊँगी। आज पढ़ो पहला भाग-

1.बंदर एक शहर को आया
बंदरिया को खूब घुमाया
देखी रेल गाड़ी और कार
घूमा पार्क और बाज़ार
घूमता एक दुकान पे आया
देख के उसका मन ललचाया
देखा होती खूब कमाई
बंदर ने योजना बनाई
खोलेगा जंगल में दुकान
ले जाएगा कुछ सामान
करेगा वो भी खूब कमाई
जो उसकी मेहनत रंग लाई
बन जाएगा वो भी अमीर
खाएगा हलवा पूरी खीर
पास में उसके थे कुछ पैसे
जोड़े थे जो जैसे-तैसे
खरीद लिया उसने सामान
खोली जंगल में दुकान
ऊंचे एक पेड़ के ऊपर
लगी दुकान और बैठा बंदर
सजी देख बंदर की दुकान
ग्राहक आने लगे महान

१. एक बार एक बंदर बंदरिया के साथ शहर में घूमने के लिए आया। शहर में घूम-घाम कर उसे बड़ा मजा आया। शहर में उसने रेलगाड़ी और कई कारें घूमती देखीं। यह देख बंदर-बंदरिया बहुत खुश हुए। घूमते घूमते वे दोनों बाज़ार में पहुंचे और एक दुकान पर आए। दुकान पर उन्होंने बहुत से ग्राहक देखे और देखा कि दुकान के मालिक को कितनी कमाई हो रही है। यह सब देख बंदर का मन लालच से भर गया और उसने भी एक योजना बनाई कि अगर वह भी जंगल में जाकर दुकान खोलेगा और मेहनत करेगा तो उसे भी खूब कमाई होगी और फिर वह अच्छे-अच्छे पकवान खाएगा । बंदर के पास जैसे-तैसे जोड़े हुए कुछ पैसे थे । उसने उन पैसों का सामान खरीदा और जंगल में आकर एक पेड़ के ऊपर दुकान खोल ली। बंदर की दुकान की चर्चा पूरे जंगल में जंगल की आग की तरह फैल गई। मामा की दुकान खुली देखकर उसके पास भी दूर-दूर से जंगली ग्राहक आने लगे।

दूसरा भाग


Monday, June 8, 2009

बगुलों की पांत


बगुलों की पांत !

बगुलों की पांत !

एक, दो ,तीन ,चार ,

पाँच ,छ: ,सात .....

सातों पर फड़काते साथ ,

सातों उड़ते जाते साथ !

सातों बनाते एक लकीर --

आसमान में छूटा तीर |

तीर कहाँ को जाएगा ?

देखें ,कौन बतायेगा !

बगुलों की पांत !

बगुलों की पांत !

एक- दो -तीन -चार- -पाँच- छ:- सात !

हरिवंश राय बच्चन


Friday, June 5, 2009

पहेलियाँ हमारी जवाब आपके

शनिवार का दिनहो ,और बाल उद्यान पर पहेलियाँ न हो ,ये कैसे हो सकता है ?नही हो सकता न तो बस प्रस्तुत हैं आपकी पहेलियाँ जो आपको दिमागी कुश्ती सिखाती हैं और हम सब को शनिवार के दिन एक दूसरे से बात करने का माध्यम भी बनाती हैं


चुनाव ख़तम और देश भी अपनी राह पर है ,तो आज की पहेलियाँ कुछ राजनितिक पृष्ठ भूमि पर ही है ,उम्मीद है ,की आप सब लोग पूरे उत्साह के साथ पहेलियों की कक्षा में बिना उछल कूद किए अपने जवाब देंगे ,क्योंकि कक्षा की मॉनिटर अभी आप लोगों को संभाल पाने की हालत में नही है ,और मनु जी जिन्हें अस्थाई रूप से मॉनिटर बनाया था ,शन्नो जी की अदाएं सीखने में लगे हुए हैं ,उन्हें उनके हाल पर छोड़ते हुए हम लोग पहेलियाँ सुलझाते हैं

१)सौ साल से अधिक पुराना
एक दल जाना पहचाना
टुकड़े इसके हुए अनेक ,
मौलिक चोला चुका है फ़ेंक





२)जनता से जन्मी पार्टी है ,
दीपक इसका प्रथम निशान
एक धर्म का पक्ष यह लेवे,
सौगुनी बढ़ी है सीना तान





३)था कहलाता बड़ा उडाकू
एक समय थी काफी धाक
था काम का ढंग अजूबा
उसका शौक उसे ले डूबा





४)सौम्य सुदरशन बुजुर्ग काया ,
कृष्ण हैं वो इस काल के
खूब सवारी रथं पर की ,
देखो नसीब इस लाल के




मेहनत की थी गाढी,

पहचान थी उनकी दाढी

खींची गाड़ी चार माह

,पूरी कर ली अपनी चाह








मिलते हैं पहेलियों के सही जवाब के साथ सोमवारको ,तब तक के लिए खुदा हाफ़िज



बाल कविताओं का समन्‍दर


बाल कविता वह नहीं है, जिसे बड़ों के साथ साथ बच्‍चे भी पढ़ते हैं, बाल कविता वह है, जो बच्‍चों के मनोविज्ञान को ध्‍यान में रखकर उनके लिए लिखी जाए। और आदर्श बाल कविताऍं कैसी होनी चाहिए, यह देखना हो तो बचपन एक समन्‍दर से अच्‍छी जगह कोई नहीं हो सकती है।

बच्‍चों के समर्थ कवि और बाल कविता में नित नए प्रयोग करने वाले रचनाकार श्री कृष्‍ण शलभ द्वारा सम्‍पादित यह पुस्‍तक बाल कविताओं का महासागर है, जिसमें उन्‍होंने बड़े श्रम के साथ 293 रचनाकारों की 666 प्रतिनिधि बाल कविताओं का संकलन किया है।

इस खजाने में जहॉं एक ओर मॉं कह एक कहानी (मैथिलीशरण गुप्‍त), चाह नहीं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं (माखनलाल चतुर्वेदी), हठ कर बैठा चॉंद एक दिन (रामधारी सिंह दिनकर) और यदि होता किन्‍नर नरेश मैं (द्वारिका प्रसाद माहेश्‍वरी) जैसी बाल साहित्‍य की बेहद चर्चित रचनाएं संकलित हैं, तो दूसरी ओर मौसम की चिडिया लाई है लो खुशियों के फूल (आसिम परीजादा), धूप न निकली आज कहीं बीमार तो नहीं (नागेश पाण्‍डेय संजय), बापू तुम्‍हें कहूँ मैं बाबा या फिर बालूं नाना (ज़ाकिर अली रजनीश) और पवन झकोरा कितना नटखट, दरवाजों को खोला खटपट (मो0 अरशद खान) जैसी आज की प्रयोगधर्मी रचनाऍं भी संजोई गयी हैं।

बाल कविताओं के इस महासागर में यूँ तो सभी रचनाऍं अपनी शैली और बुनावट के आधार पर एक से बढ़कर एक हैं, पर उनमें से बहुत सारी कविताऍं तो लाजवाब ही कर देती हैं। ऐसी ही कुछ रचनाओं की बानगी देखिए-

नटखट हम हॉं, नटखट हम, करने निकले खटपट हम। (स्‍वर्ण सहोहर)

ऑंधी आई जोर से, डालें टूटीं झकोर से।
उड़ा घोंसला अंडे फूटे, किससे दुख की बात कहेगी,

आज उठा मैं सबसे पहले।
सबसे पहले आज सुनूंगा,
हवा सवेरे की चलने पर, हिल पत्‍तों का करना हर-हर।
देखूँगा, पूरब में फैले बादल पीले, लाल सुनहले। (हरिवंश राय बच्‍चन)

अगर-मगर दो भाई थे, लड़ते खूब लड़ाई थे। (निरंकार देव सेवक)

इब्‍न बतूता पहन के जूता निकल पड़े तूफान में।
थोड़ी हवा नाक में झुस गयी, घुस गयी थोड़ी कान में। (सर्वेश्‍वरदयाल सक्‍सेना)

खिड़की ज्‍यों ही खुली कि आकर अंदर झांकी धूप।
आकर पसर गयी सोफे पर, बॉंकी-बॉंकी धूप। (दामोदर अग्रवाल)

पापा तंग करता है भैया। (प्रकाश मनु)

अले, छुबह हो गई। (रमेश तैलंग)

चंदा मामा, चंदा मामा, मामी कहॉं हमारी?
रोज अकेले आते हो, मामी को न लाते हो।
सच्‍ची-सच्‍ची बात बताओ, ऐसी क्‍या लाचारी? (हरीश निगम)

आकर बैठी दरवाजे पर, उछली पहुंच गयी छज्‍जे पर,
वह नन्‍हीं चिडिया सी धूप। (सूर्य कुमार पाण्‍डेय)

पुस्‍तक के प्रारम्‍भ में 52 पृष्‍ठों में दी गयी आलोचनात्‍मक भूमिका इस ऐतिहासिक महत्‍व की पुस्‍तक की उपयोगिता में चार चॉंद लगाती है। साथ ही साथ यह इस बात को भी प्रमाणित करती है कि एक अच्‍छा रचनाकार ही एक अच्‍छा सम्‍पादक भी हो सकता है। पुस्‍तक का अध्‍ययन करने के बाद यह कहा जा सकता है कि बच्‍चों, बालसाहित्‍यकारों, पुस्‍तकालयों, बच्‍चों के स्‍कूलों, सामाजिक संस्‍थाओं, अभिभावकों और कविता के प्रेमियों के लिए यह अपरिहार्य कृति है।

730 पृष्‍ठों की इस अद्वितीय पुस्‍तक की अगर कोई कमी है, तो वह है इसका दाम (750 रू0)। लेकिन यदि आप वास्‍तव में इस पुस्‍तक को प्राप्‍त करना चाहते हैं, तो संपादक जी को फोन लगाऍं और उनके इस सम्‍बंध में बात करें। मेरा विश्‍वास है कि वे सुधि पाठकों के लिए इसमें उचित छूट प्राप्‍त करने का रास्‍ता अवश्‍य बताएंगे।

पुस्‍तक- बचपन एक समन्‍दर
सम्‍पादक- कृष्‍ण शलभ (9358326621)
प्रकाशक- नीरजा स्‍मृति साहित्‍य न्‍यास, 245, नया आवास विकास, सहारनपुर 247001 (उ0प्र0)
वितरक- मेधा बुक्‍स, X-11, नवीन शाहदरा, दिल्‍ली 110032 (फोन 22323672)
प्रथम संस्‍करण- 2009


Thursday, June 4, 2009

क्या आप जानते हैं?

हमें पसीना क्यों आता है?

पसीना हमारे शरीर से निकलने वाला एक खारा द्रव है। इसमें लगभग 99% हिस्सा पानी और एक प्रतिशत हिस्सा नमक होता है। पसीना हमारे शरीर से हर समय निकलता रहता है लेकिन हमें दिखाई नहीं देता। पसीने के रूप में हमारे खून और शरीर के बहुत से हानिकारक पदार्थ भी बाहर निकल जाते हैं। अगर ये बाहर न निकले तो हमारा शरीर तरह-तरह के रोगों का घर ही बन जाए। हर एक मनुष्य के शरीर में लगभग २३००,००० पसीने की ग्रंथियाँ होती हैं। हर ग्रंथि की लम्बाई १/१५ इंच होती है। अगर जोड़े तो कुल ग्रंथियों की लम्बाई लगभग ढाई मील हो जाती है।

पसीने की ये ग्रंथियाँ दिन-रात काम करती रहती हैं और पसीना हर समय शरीर से निकलता रहता है लेकिन दिखाई नहीं देता। गर्मियों के दिनों में या शारीरिक मेहनत करने पर शरीर का तापमान अधिक हो जाता है और खून का बहाव खाल की ओर होने लगता है। इस क्रिया से पसीने की ग्रंथियों को तेजी से काम करना पड़ता है और उसके फलस्वरूप बूँदों के रूप में पसीना खाल के ऊपर निकल आता है। चौबीस घंटे में एक से डेढ़ लीटर तक पसीना निकलता है।


Tuesday, June 2, 2009

धरती






तितली भौंरे इस पर झूमें
रोज हवाएं इसको चूमें
चंदा इसका भाई चचेरा
बादल के घर जिसका डेरा
रोज लगाती सूरज फेरा
रात कहीं है, कहीं सवेरा
पर्वत, झील, नदी, झरने
नित पड़ते पोखर भरने
लोमड़, गीदड़ शेर-बघेरे
करते निशि-दिन यहां चुफेरे
बोझ हमारा जो है सहती
वही हमारी प्यारी धरती


--श्याम सखा 'श्याम'


Monday, June 1, 2009

जवाब आपके

जवाब आपके

सभी प्रतिभागियों की उपस्थिति का बहुत बहुत स्वागत है ,

आज पहले आप को सही जवाबबता दिए जाएँ

१) मच्छर

२)रेडियो

३) साइकिल

४) फोटो स्टेट मशीन

५) धागा

उड़न तश्तरी जी का भी स्वागत है ,चौथी पहेली का जवाब आप ख़ुद नही है ,पर इस पहेली नेखासा परेशान किया है आपको ,नीति और स्वप्नदर्शी की गैर हाजिरी बहुत अखरती है ,चौहान जी आप अपना बोरिया बिस्तर बाँध लीजिये ,शन्नो जी को आपकी उनसे मिलने की आतुरता ने भाव विभोर कर दिया है ,सुमित की चिंता पर भी वह खश हैं ,तो आप लोग उनसे कब मिलने उनके गाँव चलना चाहते हैं ,जल्दी बताईये