जादुगर ने पकड़ा चाँद
कहती थी मुझे मेरी नानी
आज सुनो सब वही कहानी
गाँव मे रहता था जादुगर
नही था उसका अपना घर
बच्चो को वो खेल दिखाता
जो भी मिलता वो खा लेता
रात को बाहर ही सो जाता
पर नही अपना घर बनाता
एक बार जब वो सोया था
मीठे सपनो मे खोया था
चलने लगे आँधी तूफान
पडी खतरे मे सबकी जान
आसमान मे बादल छाए
चाँद भी कही नज़र नही आए
छाया अँधकार था काला
ऐसे मे चाहिए था उजाला
जादुगर बडा समझदार था
जादु मे भी होशियार था
उड कर गया वो नभ मे ऐसे
उडते नभ मे पक्षी जैसे
पहुँचा वो बादल के पार
चाँद की रोशनी दिखी अपार
पकडा उसने चाँद को जाकर
किया उजाला धरा पे लाकर
आई लोगो की जान मे जान
की इक दूजे की पहचान
रात मे भी हो गया उजाला
और जब मिट गया तम काला
फिर से चाँद को छोड के आया
आसमान मे जोड के आया
की थी उसने सबकी भलाई
मेहनत उसकी थी रँग लाई
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बच्चो सुनो ध्यान से बात
समझदारी है बडी सौगात
चाँद पे तुम भी जा सकते हो
सबको राह दिखा सकते हो
कर सकते हो तुम भी उजाला
मिटा सकते हो हर तम काला
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6 पाठकों का कहना है :
बाल कविता का चाँद पर जाने का संदेश बडों और छोटों दोनों को मिलता है परिश्रम से हर कोई ऊचाईयां छु सकता है .बधाई
सुन्दर कविता है.
बच्चों व बड़ों दोनो को ही भलाई करने की सीख मिलती है.
बच्चों को सुंदर सीख देती हुई
मजेदार कविता...
अच्छी बात यह है कि आपकी हर रचना में एक बहुत महत्वपूर्ण सीख छिपी होती है। बधाई।
जैसा कि शैलेश जी ने कहा कि आपकी हर कविता में एक सीख छुपी होती है ये बात इन लाइन से पता चल रही है. बहुत खूब
बच्चो सुनो ध्यान से बात
समझदारी है बडी सौगात
चाँद पे तुम भी जा सकते हो
सबको राह दिखा सकते हो
कर सकते हो तुम भी उजाला
मिटा सकते हो हर तम काला
सीमा जी,
मैं भी सभी से सहमत हूँ और आपकी काबिलियत की कायल हूँ. हर रचना सीख से भरी और काबिले-तारीफ़ होती है.
लेकिन आजकल:
नीलम जी हैं कहाँ पर, कहाँ पर है ध्यान
उन बिन सूना सा दिखे, उनका बाल उद्यान
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