Thursday, July 30, 2009

पप्पा चंदा ला दो


पप्पा-पप्पा चंदा ला दो,
मुझको उसके संग खिला दो,
तारों संग वो रोज खेलता,
टुकर-टुकर मैं इधर देखता,
उसको पता मेरा बता दो,
मुझको उसके संग खिला दो ।

पप्पा मुझको ये बतला दो,
चंदा रात में ही क्यों आता,
दिन में क्यों है वो छुप जाता,
क्या सूरज की गर्मी से डर,
या फिर वो घर में सो जाता,
मुझको उसका घर दिखला दो,
मुझको उसके संग खिला दो ।


चंदा को मामा सब कहते,
फिर क्यों इतनी दूर वो रहते,
क्यों बच्चों की नहीं हैं सुनते,
चौड़ा सा मैदान है उनका,
फिर भी हम से नहीं खेलते,
मेरे लिये चंदा को मना लो,
मुझको उसके संग खिला दो ।


--डॉ॰ अनिल चड्डा


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6 पाठकों का कहना है :

Disha का कहना है कि -

सुन्दर बाल कविता.

Manju Gupta का कहना है कि -

बाल मनोविज्ञान ,नई सोच के साथ कविता लाजवाब है . अब तो चाँद पर जमीन लोग खरीद रहे हैं . बधाई

Shamikh Faraz का कहना है कि -

मुझे आपकी कविता का कोई भी stanza पसंद नहीं आया. बल्कि पूरी कविता ही सुन्दर लगी.

पप्पा-पप्पा चंदा ला दो,
मुझको उसके संग खिला दो,
तारों संग वो रोज खेलता,
टुकर-टुकर मैं इधर देखता,
उसको पता मेरा बता दो,
मुझको उसके संग खिला दो ।


पप्पा मुझको ये बतला दो,
चंदा रात में ही क्यों आता,
दिन में क्यों है वो छुप जाता,
क्या सूरज की गर्मी से डर,
या फिर वो घर में सो जाता,
मुझको उसका घर दिखला दो,
मुझको उसके संग खिला दो ।



चंदा को मामा सब कहते,
फिर क्यों इतनी दूर वो रहते,
क्यों बच्चों की नहीं हैं सुनते,
चौड़ा सा मैदान है उनका,
फिर भी हम से नहीं खेलते,
मेरे लिये चंदा को मना लो,
मुझको उसके संग खिला दो ।

Shamikh Faraz का कहना है कि -

इसे पढ़कर मुझे याद आई . एक और रचना जो मेरे 5 के पाठ्यक्रम में थी. शायद सूरदास जी की थी शायद. जिसमे श्रीकृष्ण जी अपनी माता से चाँद लेने की जिद कर रहे हैं,

"मय्या मैं तो चाँद खिलौना लेहों"

rachana का कहना है कि -

कविता में वात्सल्य रस है जो मन में एक स्नेह जगाता है बहुत प्यारी कविता
शामिक जी आप ने सही कहा है ये कविता मुझे भी बहुत पसंद है
जैहों लोट धरन पर अबहि तेरी गोद न अएहों(सही शब्द यद् नहीं आरहा है )
सादर
रचना

डॉ० अनिल चड्डा का कहना है कि -

दिशाजी,मंजूजी,फराज़जी एवं रचना जी । आप सबको मेरी रचना पसन्द आई, मन बड़ा प्रोत्साहित हुआ । कोशिश रहेगी कि और रचनाएँ प्रस्तुत करूँ ।

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