पप्पा चंदा ला दो
पप्पा-पप्पा चंदा ला दो,
मुझको उसके संग खिला दो,
तारों संग वो रोज खेलता,
टुकर-टुकर मैं इधर देखता,
उसको पता मेरा बता दो,
मुझको उसके संग खिला दो ।
पप्पा मुझको ये बतला दो,
चंदा रात में ही क्यों आता,
दिन में क्यों है वो छुप जाता,
क्या सूरज की गर्मी से डर,
या फिर वो घर में सो जाता,
मुझको उसका घर दिखला दो,
मुझको उसके संग खिला दो ।
चंदा रात में ही क्यों आता,
दिन में क्यों है वो छुप जाता,
क्या सूरज की गर्मी से डर,
या फिर वो घर में सो जाता,
मुझको उसका घर दिखला दो,
मुझको उसके संग खिला दो ।
चंदा को मामा सब कहते,
फिर क्यों इतनी दूर वो रहते,
क्यों बच्चों की नहीं हैं सुनते,
चौड़ा सा मैदान है उनका,
फिर भी हम से नहीं खेलते,
मेरे लिये चंदा को मना लो,
मुझको उसके संग खिला दो ।
--डॉ॰ अनिल चड्डा
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
6 पाठकों का कहना है :
सुन्दर बाल कविता.
बाल मनोविज्ञान ,नई सोच के साथ कविता लाजवाब है . अब तो चाँद पर जमीन लोग खरीद रहे हैं . बधाई
मुझे आपकी कविता का कोई भी stanza पसंद नहीं आया. बल्कि पूरी कविता ही सुन्दर लगी.
पप्पा-पप्पा चंदा ला दो,
मुझको उसके संग खिला दो,
तारों संग वो रोज खेलता,
टुकर-टुकर मैं इधर देखता,
उसको पता मेरा बता दो,
मुझको उसके संग खिला दो ।
पप्पा मुझको ये बतला दो,
चंदा रात में ही क्यों आता,
दिन में क्यों है वो छुप जाता,
क्या सूरज की गर्मी से डर,
या फिर वो घर में सो जाता,
मुझको उसका घर दिखला दो,
मुझको उसके संग खिला दो ।
चंदा को मामा सब कहते,
फिर क्यों इतनी दूर वो रहते,
क्यों बच्चों की नहीं हैं सुनते,
चौड़ा सा मैदान है उनका,
फिर भी हम से नहीं खेलते,
मेरे लिये चंदा को मना लो,
मुझको उसके संग खिला दो ।
इसे पढ़कर मुझे याद आई . एक और रचना जो मेरे 5 के पाठ्यक्रम में थी. शायद सूरदास जी की थी शायद. जिसमे श्रीकृष्ण जी अपनी माता से चाँद लेने की जिद कर रहे हैं,
"मय्या मैं तो चाँद खिलौना लेहों"
कविता में वात्सल्य रस है जो मन में एक स्नेह जगाता है बहुत प्यारी कविता
शामिक जी आप ने सही कहा है ये कविता मुझे भी बहुत पसंद है
जैहों लोट धरन पर अबहि तेरी गोद न अएहों(सही शब्द यद् नहीं आरहा है )
सादर
रचना
दिशाजी,मंजूजी,फराज़जी एवं रचना जी । आप सबको मेरी रचना पसन्द आई, मन बड़ा प्रोत्साहित हुआ । कोशिश रहेगी कि और रचनाएँ प्रस्तुत करूँ ।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)