भारत के प्रमुख स्वतंत्रता-सेनानी, प्रथम शिक्षाविद् और आज़ाद भारत के प्रथम शिक्षामंत्री
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद एक प्रसिद्ध भारतीय मुस्लिम विद्वान थे । वे कवि, लेखक, पत्रकार और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। भारत की आजादी के वाद वे एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक रहे। वे महात्मा गांधी के सिद्धांतों का समर्थन करते थे। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए कार्य किया, तथा वे अलग मुस्लिम राष्ट्र (पाकिस्तान) के सिद्धांत का विरोध करने वाले मुस्लिम नेताओ में से थे। खिलाफत आंदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। 1923 में वे भारतीय नेशनल काग्रेंस के सबसे कम उम्र के प्रेसीडेंट बने। वे 1940 और 1945 के बीच काग्रेंस के प्रेसीडेंट रहे। आजादी के वाद वे भारत के सांसद चुने गए और वे भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने।
घर पर या मस्ज़िद में उन्हें उनके पिता तथा बाद में अन्य विद्वानों ने पढ़ाया । इस्लामी शिक्षा के अलावा उन्हें दर्शनशास्त्र, इतिहास तथा गणित की शिक्षा भी अन्य गुरुओं से मिली। आज़ाद ने उर्दू, फ़ारसी, हिन्दी, अरबी तथा अंग्रेजी़ भाषाओं में महारथ हासिल की। सोलह साल की उम्र में ही उन्हें वो सभी शिक्षा मिल गई थीं जो आमतौर पर 25 साल में मिला करती थीं।
उन्हें मुस्लिम पारम्परिक शिक्षा को रास नहीं आई और वे आधुनिक शिक्षावादी सर सैय्यद अहमद खाँ के विचारों से सहमत थे।
आजाद अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ़ थे। उन्होंने अंग्रेजी सरकार को आम आदमी के शोषण के लिए जिम्मेवार ठहराया। उन्होंने अपने समय के मुस्लिम नेताओं की भी आलोचना की जो उनके अनुसार देश के हित के समक्ष साम्प्रदायिक हित को तरज़ीह दे रहे थे। अन्य मुस्लिम नेताओं से अलग उन्होंने 1905 में बंगाल के विभाजन का विरोध किया और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के अलगाववादी विचारधारा को खारिज़ कर दिया।
उनका उद्देश्य मुसलमान युवकों को क्रांतिकारी आन्दोलनों के प्रति उत्साहित करना और हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल देना था । उन्होंने तत्कालीन नेताओं को यह दिखाकर अचंभित कर दिया कि वे मुस्लिम होते हुए भी क्रांतिकारी गतिविधियों का समर्थन कर रहे हैं जो उस समय आम बात नहीं थी। उन्होंने कांग्रेसी नेताओं का विश्वास बंगाल, बिहार तथा बंबई में क्रांतिकारी गतिविधियों के गुप्त आयोजनों द्वारा जीता। उन्हें 1920 में राँची में जेल की सजा भुगतनी पड़ी। जेल से निकलने के बाद वे जालियाँवाला बाग़ हत्याकांड के विरोधी नेताओं में से एक थे गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन में उन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्हें वर्ष 1992 में मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

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4 पाठकों का कहना है :
अबुल कलाम आज़ाद जी के लिए आज भी आदर से सर झुकता एसे कम ही लोग हैं जो एसी सोच रखते हैं
आप ने इनपे लेख लिखा इस लिए बधाई स्वकारें
सादर
रचना
bahut achcha aalekh
अच्छी जानकारी नीलम जी,
मैं तो ये सब बातें भूल गया था। जानकारी बढ़ाने का शुक्रिया।
अच्छी जानकारी नीलम जी,
मैं तो ये सब बातें भूल गया था। जानकारी बढ़ाने का शुक्रिया।
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