डा. जगदीश चंद्र बसु
तीस नवंबर सन अठावन
ढ़ाका जिले का गांव मेमन ।
एक सौ पचास बीते वर्ष
बसु परिवार में फैला हर्ष ।
बालक जन्मा था मेधावी
था महान वैज्ञानिक भावी ।
जगदीश चंद्र का नाम मिला
ग्राम पाठशाला फूल खिला ।
किसान, मछेरे दोस्त बनते
पेड़ पौधों की बात करते ।
कोलकता का सेंट जेवियर
कालेज में विज्ञान कैरियर ।
उच्च शिक्षा विज्ञान पायी
नई खोजों में रुचि बनायी ।
पूरी कर पढ़ाई इंग्लैंड
वह लौटे अपनी मदरलैंड ।
नियत हुए प्रोफेसर पद पर
प्रेसीडेंसी कालेज चुनकर ।
अंग्रेजों का देश में राज
नियम उन्ही के उनके नाज ।
अंग्रजों से आधा वेतन
ठान लिया मैं क्यों लूँ वेतन ।
स्वाभिमान के धनी बहुत थे
अपनी जिद पर अड़े रहे थे ।
तीन वर्ष तक लिया न वेतन
कठिनाई से बीता जीवन ।
झुकना पड़ा कालेज को तब
बसु ने पाया मान सहित सब ।
प्रथम विज्ञान यंत्र बनाया
गवर्नर को प्रयोग दिखाया ।
'रेडियो वेव' पार कराई
दूर रखी घंटी बजाई ।
विज्ञान बना उनका जीवन
मार्ग कर्म, धैर्य, साहस लगन ।
धातुओं पर की कई खोजें
पेड़ पौधों में प्राण खोजे ।
पौधों में विद्युत प्रवाह कर
कंपन, कष्ट, मृत्यु अंकित कर ।
हुए अचंभित सभी देखकर
बसु बने 'पूर्व के जादूगर' ।
वैज्ञानिक पहला भारत का
गूंजा विश्व में नाम उसका ।
बसु विज्ञान मंदिर बनाया
भाषा सरल ज्ञान फैलाया ।
कवि कुलवंत सिंह

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5 पाठकों का कहना है :
अच्छा जीवन परिचय लिखा है आपने जगदीश चंद्र बासु जी का अपने काव्यात्मक रूप में
बहुत ही अच्छा बधाई
Thank you Tripathi ji..
बहुत ही अच्छी शुरुआत करी है आपने कुलवंत जी.कृपया इस कड़ी को आगे बढाइये.
आलोक सिंह "साहिल"
kavita ke bahaane achchhee jaankari di gayi hai.
डा. जगदीश चन्द्र बसु का काव्यात्मक परिचय बहुत बढिया...
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