लोमड़ी और कौआ
जंगल में इक लोमड़ी रहती
मीठी-मीठी बातें कहती
बातों से सबको मोह लेती
मीठी बनकर ही ठग लेती
देखती रहती ऐसा मौका
जब दे सके दूसरो को धोखा
बातों में सारे आ जाते
बाद में खुद को मूर्ख पाते
इक दिन तो लोमड़ी ने देखा
कौआ इक टहनी पर बैठा
रोटी उसने मुँह में दबाई
देख के लोमडी भी ललचाई
किसी तरह से लेगी रोटी
थी लोमड़ी की नियत खोटी
जाकर बोली कौए भैया
बैठूँगी मैं वृक्ष की छैया
गरमी में मिलेगी राहत
पर मेरे मन में इक चाहत
सुनाओगे तुम जो मीठा गाना
होगा यह मौसम भी सुहाना
गरमी में मीठा संगीत
सुना दो मुझे जान के मीत
लोमड़ी ने तो की चतुराई
पर कौए को समझ में आई
लेना चाहती है वो रोटी
है लोमड़ी की नियत खोटी
यह तो है लोमड़ी की चाल
नहीं है उसे गाने का ख्याल
कौआ धोखा न खाएगा
चालाकी से समझाएगा
रोटी उसने पैर में दबाई
काँ-काँ की आवाज़ सुनाई
बहुत से कौए आ गए सुनकर
काँ-काँ करने लगे सब मिलकर
लगे वो लोमड़ी पर मँडराने
इधर-उधर से उसे सताने
दुम दबा के लोमड़ी भागी
और सबको ही समझ में आ गई
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मीठी बातों में नहीं आना
किसी के हाथों न खुद को लुटाना
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बच्चो तुम भी बात समझना
किसी के धोखे में न आना
तुम्हारी सीमा सचदेव
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3 पाठकों का कहना है :
वाह सीमा जी क्या बात है बहुत अच्छा
बचपन में लोमड़ी और कौवे की कहानी पढ़ी थी पर अंत आपके अंत के विपरीत था
आपने एक नया अंत लिखा इस कहानी का बहुत अच्छा
बहुत अच्छे तरीके से आपने अपनी बात समझाई
सीमा जी कविता पढ़ कर कुछ ऐसा लगा, तितली उड़ी उड कर चली बन्दर ने कहा, आ जा मेरे पास , तितली बोली, आती हूं, आती हूं , क्या है तेरे पास ,युग बदला ,बदल गई, धारणानाएं सोच और विचार ,चकलेट वाली इस सभ्यता को मीठे बोल वाले की नियत पर गहरी पकड़ है
Seema Ji! heartiest congratulations..
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