मानव
अजब शक्ति मानव ने पायी,
भू पर अपनी धाक जमायी ।
जब जी चाहे व्योम विचरता,
जल को बाँध, बाँध में रखता ।
नित्य नए प्रयोग यह करता,
चाँद पे जाकर पैर रखता ।
यान ग्रहों पर अपने भेजे,
छुपे रहस्य सृष्टि के खोजे ।
विपदा कोई न राह रोके,
संकट कोई न चाह रोके ।
उद्यम से शूल मिटाता है,
प्रस्तर को भी पिघलाता है ।
पर्वत पर धाक जमाता है,
धरा में खान बनाता है ।
मंथन कर सागर का सीना,
खनिज तेल पा जीवन जीना ।
विघ्न भले ही कितने आएँ,
काँटे राहों में बिछ जाएँ ।
विचलित होता कभी नही यह,
धीरज खोता कभी नही यह ।
धरती को सिमटाया इसने,
घर घर में पहुंचाया इसने ।
प्रखर बुद्धि मानव ने पायी
अजब शक्ति मानव ने पायी ।
कवि कुलवंत सिंह
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4 पाठकों का कहना है :
अति सुंदर इस वैज्ञानिक युग का आपने अच्छा परिचय दिया है अपनी कविता में
एक अच्छी कविता के लिए बधाई
its very nice ki aap likhane kee saath logon koo bhi likhanee kee liyee prarit kar rahe hai ab blog par aapse milnaa hotaa rahegaa
Thanks to both of you..Tripathi ji and Shalu ji!
Ji han milte rahenge..
Maanav ke baare kaavyatamak dhang se achchha parichay diya hai.
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