Friday, July 4, 2008

मैं हूँ बालक पक्का धुन का


मैं हूँ बालक पक्का धुन का
कभी नहीं हूँ हारा मन का।
मन लगा कर पढता हूँ नित
नहीं दुखाता मैं दिल जन का।

मैं हूँ बालक पक्का धुन का
कभी नहीं हूँ हारा मन का।
पढ़ना लिखना लगता प्रिय मुझको
ध्येय यही मेरे जीवन का।

मैं हूँ बालक पक्का धुन का
कभी नहीं हूँ हारा मन का
आगे राहें और कठिन हैं
सरल करूंगा मैं पथ जीवन का
मैं हूँ बालक पक्का धुन का
कभी नहीं हूँ हारा मन का।

रचनाकार- कमलप्रीत सिंह


आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

9 पाठकों का कहना है :

vineeta का कहना है कि -

अच्छा लिखा है, बालक पर कविता देख कर मन खुश हो गया. बधाई

आशीष कुमार 'अंशु' का कहना है कि -

बहुत सुंदर

BRAHMA NATH TRIPATHI का कहना है कि -

बहुत अच्छी कविता बालक के ऊपर अच्छी रचना

vivek "Ulloo"Pandey का कहना है कि -

मैं हूँ बालक पक्का धुन का
कभी नहीं हूँ हारा मन का
आगे राहें और कठिन हैं
सरल करूंगा मैं पथ जीवन का
बस मै यही कहना चाहूँगा की
ऐसा नही है की खुशक है चारों तरफ़ जमीन ,
प्याशे जो चल पड़े हैं तो दरिया भी आएगा

Kavi Kulwant का कहना है कि -

अति सुंदर..बधाई..

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

सुन्दर.......

सीमा सचदेव का कहना है कि -

achchi lagi aapki choti si kavita .keep it up.....

Anonymous का कहना है कि -

अत्यन्त प्यारी.
आलोक सिंह "साहिल"

सीमा स्‍मृति का कहना है कि -

कितना प्‍यारा बच्‍चा है हर बच्‍चा ऐसा धुन का पक्‍का हो प्‍यारी कविता बधाई

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)