मैं हूँ बालक पक्का धुन का
मैं हूँ बालक पक्का धुन का
कभी नहीं हूँ हारा मन का।
मन लगा कर पढता हूँ नित
नहीं दुखाता मैं दिल जन का।
मैं हूँ बालक पक्का धुन का
कभी नहीं हूँ हारा मन का।
पढ़ना लिखना लगता प्रिय मुझको
ध्येय यही मेरे जीवन का।
मैं हूँ बालक पक्का धुन का
कभी नहीं हूँ हारा मन का
आगे राहें और कठिन हैं
सरल करूंगा मैं पथ जीवन का
मैं हूँ बालक पक्का धुन का
कभी नहीं हूँ हारा मन का।
रचनाकार- कमलप्रीत सिंह
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9 पाठकों का कहना है :
अच्छा लिखा है, बालक पर कविता देख कर मन खुश हो गया. बधाई
बहुत सुंदर
बहुत अच्छी कविता बालक के ऊपर अच्छी रचना
मैं हूँ बालक पक्का धुन का
कभी नहीं हूँ हारा मन का
आगे राहें और कठिन हैं
सरल करूंगा मैं पथ जीवन का
बस मै यही कहना चाहूँगा की
ऐसा नही है की खुशक है चारों तरफ़ जमीन ,
प्याशे जो चल पड़े हैं तो दरिया भी आएगा
अति सुंदर..बधाई..
सुन्दर.......
achchi lagi aapki choti si kavita .keep it up.....
अत्यन्त प्यारी.
आलोक सिंह "साहिल"
कितना प्यारा बच्चा है हर बच्चा ऐसा धुन का पक्का हो प्यारी कविता बधाई
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