Thursday, September 24, 2009

राजा की वज़ीर- 3

दूसरे भाग से भाग

भाग-3

अगली सुबह ही राजा ने अपने सिपाहियों को पानी वाली औरत के पास भेजे और राज-दरबार में उसे बुलाया। जैसे ही वह औरत राजा के सामने पहुँची तो सामने राजा के रूप में अजनबी को देख कर अवाक रह गई। कल वाली सारी घटना उसके दिमाग में घूमने लगी-
अरे! यह तो वही अजनबी है जिसको मैंने कल कुएँ पर पानी पिलाया था और उसी के सामने न जाने राजा के बारे में कितना बुरा भला भी कहा था। अवश्य ही मुझे मेरी बात पर राजा द्वारा दण्ड दिया जाएगा। मन ही मन वह विचारने लगी।
राजा ने उसे देखते ही पूछा-
"क्या तुम हमें पहचानती हो?"
"जी महाराज" ( औरत हाथ जोड़कर सिर झुकाए खड़ी थी )
"तुमने कितनी बार हमें देखा है"?
"जी एक बार" ( औरत कंप-कंपाती हुई आवाज में बोली )
"क्या तुम जानती हो कि हमने तुम्हें दरबार में क्यों बुलाया है"?
"जी महाराज।"
"क्या तुम मानती हो कि तुमने कोई अपराध किया है"?
"जी महाराज"
"तो तुम यह भी मानती हो कि तुम्हें उस अपराध का दण्ड मिलना चाहिए"?
"जी नहीं महाराज"।
"क्यों? जब अपराध किया है तो उसका दण्ड तो अवश्य भुगतना पड़ेगा"।
महाराज! मैंने हुजूर के खिलाफ़ बोलने की गुस्ताखी अवश्य की है लेकिन ऐसा कुछ गलत नहीं कहा जिसके लिए मुझे दण्डित किया जाए। (औरत ने पूरे आत्म-विश्वास के साथ कहा) अगर आप एक सच्ची बात को मेरा अपराध मानते हैं तो मैं उसके लिए कोई क्षमा नहीं मागूँगी और आप मुझे जो सजा देंगे वो मुझे मंजूर होगी"।
"एक बार सोच लो, हम तुम्हें जो सजा देंगे तुम्हें भुगतनी पड़ेगी।"
"सोच लिया महाराज"।
"तो तुम्हारे अपराध दण्ड स्वरूप हम तुम्हें अपना वजीर घोषित करते हैं। आज से तुम हमारे राज्य कार्य में हमारा साथ दोगी। हमारे राज्य को तुम जैसी नेक, बहादुर और सत्यवादी और निडर वजीर की आवश्यकता है। जिस राज्य में तुम जैसी औरतें हैं उस राज्य की उन्नति में कोई भी बाधा आड़े नहीं आ सकती।"
औरत यह सुन कर हैरान थी और उसने राजा की दी हुई सजा को हँसकर स्वीकार कर लिया।
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समाप्‍त


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2 पाठकों का कहना है :

Manju Gupta का कहना है कि -

बाल कहानी का संदेश प्रेरणाप्रद है .मेहनत ,ईमानदारी और बुद्धिमानी से जीवन में सफलता ,ऊँचाईयाँ पा सकते हैं .बहुत बधाई .

Shamikh Faraz का कहना है कि -

बहुत ही बढ़िया कहानी. कहानी का अंत शिक्षाप्रद है.

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