Saturday, September 19, 2009

हिम्मत-ए-मर्दा, मदद-ए-ख़ुदा

महामना पंडित मदन मोहन मालवीय को सभी बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय के प्रणेता के रूप में जानते हैं। पर क्या आप जानते हैं कि उन्होंने इसे स्थापित करने के लिये क्या जतन किया? आइये आज आपको उनके जीवन की एक प्रेरणादायक घटना सुनते हैं।

महामना उस समय एक बहुत अच्छे विश्वविद्यालय का सपना साकार करने की योजना बना रहे थे, और उन्हें बहुत सी तकलीफों और अवरोधों से गुजरना पड़ रहा था, किन्तु वे दृढ़ प्रतिज्ञ होकर विश्वविद्यालय को बनाने के काम में जुटे हुए थे। उनके पास पूंजी का अभाव था, फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी, वे शहर-शहर जाकर धनाड्य व्यक्तियों और बड़े व्यापारियों से मिलते और उनसे चंदा एकत्रित करते थे।
इसी क्रम में एक बार वे हैदराबाद के निजाम से मिलने गये और उनसे कुछ पूंजी सहायतार्थ देने हेतु आग्रह किया। निजाम साहब आग बबूला हो गये, और कहने लगे कि, "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमसे चंदा मांगने की और वो भी एक हिन्दू विश्वविद्यालय के लिये?" और गुस्से में निजाम ने अपना जूता उतार कर पंडित जी के ऊपर दे मारा।
आगे बढ़ने से पहले, यहाँ रुक कर अब आप सोचिये कि अगर आप पंडित जी की जगह होते तो क्या करते?

पंडित जी ने कुछ नहीं कहा और चुपचाप वो जूता उठा कर बाहर चले आये। वहाँ से सीधा वे बाज़ार में गये और उस जूते की नीलामी करने लगे, क्योंकि वो निजाम का जूता था तो बहुत से लोग आगे बढ़ कर उस जूते को खरीदना चाहते थे। इस तरह नीलामी की बोली बढ़ती गयी और जूते का दाम भी बढ़ता गया।

जब निजाम ने यह सुना तो वो व्याकुल हो उठा। उसे लगा कि अगर किसी ने बहुत कम कीमत पर उस जूते को खरीद लिया तो उनका अपमान हो जायेगा। अतः उन्होंने अपने एक सेवक को यह हिदायत देकर जूता खरीदने भेजा कि "चाहे कितनी भी बड़ी बोली लगानी पड़े पर तुम ही वो जूता खरीद कर आना।"

इस तरह पंडित जी ने निजाम का अपना जूता उन्हें ही बहुत बड़ी कीमत पर बेच कर विश्वविद्यालय के लिये धन एकत्रित किया। बाद में इसी पूंजी से उन्होंने बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय की स्थापना की।

देखा आपने, जब इंसान हिम्मत करके अपनी मदद स्वयं करता है तो ईश्वर भी उसकी मदद करते हैं।

प्रस्तुति- पूजा अनिल


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5 पाठकों का कहना है :

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

पूजा जी,

बहुत ही अच्छी सीख लायी हैं आप. पंडित जी यदि बुद्धिमान ना होते तो यह तरकीब नहीं आती उनके दिमाग में और फिर बिद्यालय खोलने के लिए कुछ और जुगात करनी पड़ती उन्हें. वाह, क्या बात!

Manju Gupta का कहना है कि -

यह सीख देने वाली घटना बाल -जन के लिए बहुत उपयोगी है कि महापुरुष व्यक्ति अपने लक्ष्य के लिए अपमान को विन्रमता के साथ सह लेता है .इन गुणों के कारण महापुरुष कहलाते हैं .और बुध्दिमानी से समस्या का हल निकाल लेते हैं . बढिया संदेश के लिए बधाई .

BE CHOICE LESS [GAURAV] का कहना है कि -

thanks puja didi. mah sweet sister..

1st of all im sorry i dont know hindi script..as every 1 use hndi here.. [plz puja di convert my word to hindi]..but this a really a very wonderfull story.. and help others to know..how the great worriors manage there life with such huge problems....the way they work for us.. even after facing such absuing words.. they never fell down. and one more thing even after independence of 63 yrs.. we need number of worriors to convert this "whole world to a family".

jay guru dev :)

from [nogirlfriends47@yahoo.com]
gaurav

Shamikh Faraz का कहना है कि -

बहुत ही सीख देती हुई घटना. तो बातें देखने को मिलती हैं सबसे पहले पं. जी सहनशीलता. दूसरी बात कर्म के प्रति लगन. पूजा जी आपने एक बात पे बीकुल भी ध्यान नहीं दिया इसमें यह भी बताएं की कितनी सहनशीलता के साथ पं. जी इस काम को किया.

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

शामिख जी,
जब पंडित जी मौजूद थे तब बेचारी पूजा जी का मेरे ख्याल से इस दुनिया में आगमन भी नहीं हुआ था. तो फिर उन्हें पंडित जी की सहनशीलता का माप कैसे पता हो सकता है? (हा-हा हह्ह्हह....)

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