Friday, September 4, 2009

अमृत प्यार

अमृत प्यार

माँ के प्यार की महिमा का, करता हूँ गुणगान,
कभी कमी न प्यार में होती, कैसी है यह खान .
कष्ट जन्म का सहती है, फिर भी लुटाती जान,
सीने से चिपकाती है, हो कैसी भी संतान .

छाती से दूध पिलाती है, देती है वरदान,
पाकर आंचल की छांव, मिलता है सुख बड़ा महान.
इसके प्यार की महिमा का, कोई नही उपमान,
अपनी संतति को सुख देना ही इसका अरमान .

अंतस्तल में भरा हुआ है, ममता का भंडार,
संतानों पे खूब लुटाती, खत्म न होता प्यार .
ले बलाएं वह संतति की, दे खुशियों का संसार,
छू न पाए संतानों को, कष्टों का अंगार .

दुख संतति का आंख में बहता, बन कर अश्रुधार,
हर लेती वह पीड़ा सुत की, कैसा हो विकार .
संकट आएं कितने भारी, खुद पर ले हर बार,
भाग्य बड़े हैं जिनको मिलता, माँ का अमृत प्यार .

कवि कुलवंत सिंह


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4 पाठकों का कहना है :

Manju Gupta का कहना है कि -

माँ शब्द ही मिठास से भरा हुआ है और कविता तो ममता ,प्रेम , वात्सल्य की खान लगी .बधाई .बल्ले -बल्ले .

महेश कुमार वर्मा : Mahesh Kumar Verma का कहना है कि -

बहुत ही अच्छा वर्णन किया है.
धन्यवाद.
http://popularindia.blogspot.com/

Shamikh Faraz का कहना है कि -

कुलवंत जी सबसे सुन्दर लाइन यह लगी

सीने से चिपकाती है, हो कैसी भी संतान .

Shamikh Faraz का कहना है कि -

कुलवंत जी कविता में कुछ कमिया भी हैं. इसी कविता को और भे बेहतर करके लिखा जा सकता है. सबसे पहले तो यह कविता आपने बल उद्यान पर बच्चों के लिए लिखी है. इसलिए कठोर शब्दों का प्रयोग शोबा नहीं दे रहा है. शब्द आम बोल्च्ला के होने चाहिए न की कठोर.

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