बचपन के वह दिन
शन्नो जी, हमारी बाल-उद्यान की मॉनिटर हैं, आज वो हम सबके लिए लायी हैं, अपनी बचपन की यादें, बताना मत भूलिएगा कि किस-किस को क्या याद आया इस कविता को पढ़ कर -
'बचपन के वह दिन'
आज अचानक लगी खींचने उस बचपन की डोर
कहा चलो चलते हैं हम अपने अतीत की ओर।
मस्त सुहाने दिनों ने ली तब फिर से अंगड़ाई
मन में शोर उठा और यादें सजीव हो आयीं।
गुजर गया पर भुला न पाये बचपन का मौसम
जीवन में कुछ क्षण आते हैं खो जाते उनमें हम।
तो चलो आज ले चलती हूँ मैं सबको अपने साथ
बचपन की उस दुनिया की करने को कुछ बात।
पिछवाड़े के आँगन में था नीम का पेड़ बड़ा सा
निमकौरी से भरा-भरा और जहाँ पड़ा झूला था।
शीतल छाया में बैठें सब और कुँआ था उसके पास
पेड़ पपीते और अनार के और हवा में भरी सुवास।
कुछ पेड़ भी थे अमरूदों के उनमें थी बड़ी मिठास
कुएँ का शीतल जल था अमृत लगती थी जब प्यास।
कौवों की कांव-कांव छत पर आँगन में गौरैयाँ फुदके
डालो दाने चावल के तो वह खाती थीं सब मिलजुल के।
फूल-फूल मंडराएं तितली चढ़ें गिलहरी पेड़ों पर
शाम की बेला में आ जाएँ गायें वापस फिर घर पर।
पात-पात और डाल-डाल को चूमें समीर जब प्यारा
रात की रानी और बेला से तब महके आँगन सारा।
सुबह-सुबह झरने लगते थे हरसिंगार के फूल
भरी दुपहरी में थे उड़ते पत्ते और उनके संग धूल।
जितनी बार छुओ उसको तो छुईमुई शर्मा जाती
पेडों पर लिपटे गुलपेंचे की बेल सदा ही इतराती।
गुलाबास के पेड़ भी थे उस घर की क्यारी में
लाल, गुलाबी फूलों से आँगन लगता था सजने।
जब पड़ोस के पेड़ पर जामुन के फल आ जाते थे
चढ़कर छत पर हम सब जामुन तोड़ के खाते थे।
करी शिकायत किसी ने तो माँ डंडा लेकर आती थी
डांट-डपट कर कान खींचकर वापस वह ले जाती थी।
इन यादों में है एक दादी जो प्यार से हमें बुलाती थी
पिला के ठंडा शरबत हमको मीठे आम खिलाती थी।
घर के पीछे थी पगडंडी जो जाती थी बागों की ओर
कोयल करे कुहू-कुहू जब पेडों पर आ जाता था बौर।
दूध-जलेबी या हलवा खाकर हम सब जाते थे स्कूल
झाड़ बेर के रस्ते में थे और तालाबों में कमल के फूल।
पानी जब सावन में बरसे छा जाएँ घनघोर घटाएँ
उछल-कूदकर नाचें हम और कागज़ की नाव चलायें।
होली पर खेलें रंग की पिचकारी चेहरे पर मलें गुलाल
पांख लगाकर कहीं उड़ गये जीवन के वह सब साल।
एक सपने सा था वह जीवन और बचपन का संसार
महक प्यार की जिसमें थी और आँगन में सदा बहार।
शन्नो अग्रवाल

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7 पाठकों का कहना है :
नमस्कार।
किस की तारीफ करूँ
बचपन की
आपकी लेखनी की
आपके दृष्टिकोण की
आपके द्वारा प्रयोग किए गए शब्दों की
आपके द्वारा याद किए गए बचपन की
आपके द्वारा बचपन याद दिलाने की
आपके मन में बचपन की जो सोच है वह निःसंदेह आज के माता-पिता और मैकाले की शिक्षा वाले अध्यापकों को पढ़ने की जरूरत है जो जान पाए
बिन बचपन नहीं जवानी
याद करो बचपन की निशानी
रैंक वैंक सब व्यर्थ रहेंगे
यदि बचपन की मौज ना मानी।
आपने तो मेरा भी बचपन याद करा दिया .बहुत खूब .
आदरणीय आचार्य जी एवं मंजू जी,
मेरी कविता के बारे में अपने बिचार व्यक्त करने का व उसे पसंद करने के लिए मेरा हार्दिक धन्यबाद स्वीकार कीजिये.
aapne to bachpan yaad dila diya........... aapki kavita bahut bahut bahut achchi lagi.......
Regards
mahfooz
www.lekhnee.blogspot.com
जब पड़ोस के पेड़ पर जामुन के फल आ जाते थे
चढ़कर छत पर हम सब जामुन तोड़ के खाते थे।
करी शिकायत किसी ने तो माँ डंडा लेकर आती थी
डांट-डपट कर कान खींचकर वापस वह ले जाती थी।
इन यादों में है एक दादी जो प्यार से हमें बुलाती थी
पिला के ठंडा शरबत हमको मीठे आम खिलाती थी।
शन्नोजी,
सच में आपने बचपन याद दिला दिया । काश, बचपन लौट सकता ।
अनिल जी,
बहुत धन्यबाद! चलो अच्छा हुआ की इस कविता के बहाने आप सबने भी अपने बचपन की यादों में डुबकी लगा ली.
काफी अच्छी कविता.
कहीं पर बचपन में चलने की बात कही गई है तो कहीं उसे बयां किया गया है. बहुत ही उम्दा सोच और अच्छे शब्दों का प्रयोग किया गया है कविता में.
एक सपने सा था वह जीवन और बचपन का संसार
महक प्यार की जिसमें थी और आँगन में सदा बहार।
तो चलो आज ले चलती हूँ मैं सबको अपने साथ
बचपन की उस दुनिया की करने को कुछ बात।
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