Monday, April 6, 2009

सच बोलो पर मीठा

सच बोलो पर मीठा
देवताओं के राजा ब्रह्स्पति का विवाह होने वाला था |उन्होंने इसके उपलक्ष में एक प्रीतिभोज
देने का निर्णय किया |अत: सभी जलचरों तथा स्थल चरों कों निमंत्रन भेजे गए |सभी पशु -पक्षी
प्रीतिभोज में भाग लेने आये परन्तु कछुआ नही आया | ब्रह्स्पति कछुए की अनुपस्तिथि पर बड़े हैरान हुए |
कुछ दिनों के पश्चात् ब्रह्स्पति देव की कछुए से अचानक भेंट हो गयी |उन्होंने कछुए से पूछा

," महोदय ! आप मेरे विवाह के उपलक्ष्य में दिए गए प्रीतिभोज में नही -क्या बात थी ?"
"मै घर में रहना पसंद करता हूँ और छोटी -छोटी बातों में रूचि नही रखता |घर से अधिक सुखदाई कोई स्थान नही है "| कछुए ने जवाब दिया |

निसंदेह कछुए ने कोई गलत बात नही कही थी परन्तु उसके कहने का ढंग अप्रिय अवस्य था |
अतः: ब्रह्स्पतिदेव चिढ गए तथा उन्होंने कछुए कों शाप दे दिया ,"अच्छा यह बात है ,तो फिर
तुम अपने घर कों सदा अपनी पीठ पर उठाये फिरोगे और यह भार तुम्हारी पीठ पर लदा ही रहेगा "
आज तक हर कछुआ अपने घर कों पीठ पर उठाये घूम रहा है ,घूम रहा है न ,

संकलन
नीलम मिश्रा


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5 पाठकों का कहना है :

Divya Narmada का कहना है कि -

संस्कृत की उक्ति है - 'सत्यम ब्रूयात प्रियम ब्रूयात... मा ब्रूयात सत्यमअप्रियम' अर्थात 'जब सच बोलो, तो प्रिय (मीठा) बोलो, अप्रिय सच हो तो मत बोलो.' नीलम जी धन्यवाद इस प्रेरक कथा के लिए.

manu का कहना है कि -

जी नीलम जी,
कछुवे के तो कहने का ढंग भी शायद गलत ना था,,,,,
पर क्यूंकि गुरु ब्रहस्पति के लिए कहा था सो उन्हें गलत लग गया,,,,,
अगर इसी बात को यूं कह देता के,,,,,,

अबस आवारगी का लुत्फ़ भी क्या खूब है यारो,
मगर जो ढूंढते है वो सुकूं बस घर में होता है,,,

तो बात भी कह देता और ,,,,,,गुरू जी के शाप से भी बच जाता
क्यूंकि ( शायद इतनी गहराई तक गुरु देव जा ही ना पाते,,)
हां,,,हा,,,,,हा,,,,,,,,,,हा,,,,,,
हु,,,,,,हु,,,हु,,,,,,,,,,,,,,,,हु,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

par aachaaary ne bhi is baare mein sahi jaankari di hai,,,

संगीता पुरी का कहना है कि -

बहुत सुंदर ... प्रेरक बातों के प्रचार प्रसार के लिए धन्‍यवाद।

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

अच्छी कहानी नीलम जी..
आचार्य के श्लोक ने मुझे दसवीं की याद दिला दी...
धन्यवाद...

neeti sagar का कहना है कि -

बहुत ही अच्छी बात कही आपने,अच्छी कहानी द्वारा ...धन्यवाद!

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