Tuesday, April 21, 2009

बेटी भी होती है खास

एक था भाई एक थी बहना
था उनकी मां का यह कहना
बेटा वंश चलाएगा
काम हमारे आएगा
जब हम बूढे हो जाएंगे
वही कमाकर लाएगा
वही चलाएगा घर-बार
होगा सुखी मेरा संसार
पर बेटी तो है पराई
होगी उसकी घर से विदाई
अपने काम न उसने आना
फ़िर भला उसे क्यों पढाना
दें बेटे को एशो-इशरत
पर बेटी को मिलती नफ़रत
बेटी करती घर का काम
पर बेटा करता आराम
मजे से रहता,मजे से खाता
ऊपर से गुस्सा भी दिखाता
मिलती मुंह मांगी सब चीज़
भूल गया वो सारी तमीज़
नहीं माने वो मां का कहना
पर स्यानी थी उसकी बहना
सारा घर का काम वो करती
और फ़िर रात को बैठ के पढती
इक दिन मां हो गई बीमार
चलने फ़िरने को लाचार
पर बेटा था लाप्रवाह
सुने न अपनी मां की कराह
बेटी मां की करे संभाल
उस्को बस मां ही का ख्याल
मां की उसने खूब की सेवा
सेवा का उसे मिल गया मेवा
बेटी की सेवा रंग लाई
मां ने बीमारी से मुक्ति पाई
अब हुआ मां को अहसास
टूट गया वो अंध-विश्वास
कि बेटा ही घर को चलाए
और बेटी न काम में आए
मां ने अपनी गलती मानी
सच्ची बात यह उसने जानी
बेटी नहीं बेटे से कम
हो गईं मां की आंखें नम
हो गया मां को यह विश्वास
बेटी भी होती है खास
प्यार से बेटी को गले लगाया
और फ़िर उसको खूब पढाया ।
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बच्चो तुम भी लो यह जान
लडका-लडकी एक समान
एक से दोनों को अधिकार
त्यागो भेद-भाव का विचार

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प्रेषक व लेखिका- सीमा सचदेव


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8 पाठकों का कहना है :

neelam का कहना है कि -

seema ji kvita prerna poorn hai ,humaare samaaj me aaj bhi yahi bhedbhaav ho raha hai ,aur aascharya hai ki naari ek maa ke roop me khud se hi anyaay kar rahi hai ,uska khudhai wo uski beti .

निर्मला कपिला का कहना है कि -

seemaji bahut sunder abhiviyakti hai meri bhi ankhen nam ho gayee abhaar

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

बात सही है सीमा जी
याद आ गयी बचपन की
जब छोटी थी तो मेरी माँ भी
यह सब रहती थी कहती
मन में रहती थी मैं कुढ़ती
डट कर ले वह मुझसे काम
भाई बस करते थे आराम
बाहर से जब भी आयें वह
यह ला, वह ला, कह कर
हर दम हुकुम चलायें वह
दिन भर चिढा-चिढा सतायें
कभी-कभी चुगली भी खायें
सीखें देती मुझको ही सारी
ऐसी ही थी मेरी महतारी
पर भाई बेटा होने की
अकड़ के शान दिखाते थे
'भैया का खूब ख्याल रखो
उनको अच्छी चीजें दो'
'जब शादी हो जायेगी
भैया के ही घर आओगी'
कूद-फांद कर घर पर आयें
बहनों को फिर नाच नचायें
'ला गिलास में जल्दी पानी
अगर नहीं मार है खानी'
क्या-क्या कहूं आपसे भैया
बेटा है जैसे घर की नैया.

dschauhan का कहना है कि -

आदरणीय सीमा जी, बहुत ही प्रेरक कविता है! मन प्रसन्न हो गया है! आज कुछ राज्यों में बालिकाओं को भी उनकी पैत्रक सम्पति में हिस्सेदारी का कानून बन गया है! परन्तु हमें उनको कानूनन हिस्सेदार न बनाकर सामाजिक रूप से बराबरी का दर्जा देना होगा! वैसे आज पढ़े लिखे समाज में ऐसा हो भी रहा है और बालिकाएं भी अब अपने कैरिएर पर ध्यान केंद्रित कर रहीं हैं! इतनी सुन्दर कविता के लिए आपको साधुवाद!

rachana का कहना है कि -

सीमा जी बहुत खूब कितने प्यार से कह दी आप ने इतनी बड़ी बात .बधाई
शन्नो जी क्या बात है आप भी कमाल है आप का लिखा पढ़ के बहुत ही आनंद आता है
रचना

Divya Narmada का कहना है कि -

लाजवाब

manu का कहना है कि -

जी सीमा जी,
बहुत प्रेरणा दायक बात कही है आपने ,,,अपने विशेष अंदाज में,,,सच में ही इसे समझने की सभी को जरूरत है,,,,,
बधाई,,,

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

रचना जी,
मेरे बारे में आपके बिचार जानकर मन को बहुत अच्छा लगा. बस जो भी लिख पाती हूँ आप सब की सेवा में प्रस्तुत करके मुझे भी आनंद आता है. आगे भी आप mujhpar अपनी ऐसी ही कृपा banaye rahiyega. धन्यवाद.

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