समय की पुकार
बीती रात
हुई प्रभात
नींद को दो
अब तो मात
कर्म महान
जन उत्थान
परहित सुनो
धर्म महान
जब भी बोल
मीठा बोल
मधु रस शब्द
अमृत घोल
सबको मान
अपना जान
दीन को भी
दो कुछ दान
सिंह दहाड़
तोड़ पहाड़
सीना चीर
धरती फाड़
रक्खो होश
भरकर जोश
दूसरों को
मत दो दोष
मिटा विकार
खिला बहार
बड़ों का तूं
कर सत्कार
बन कर यार
करना प्यार
सुंदर बने
यह संसार
सदव्यवहार
सदा बहार
काल की है
यही पुकार
कवि कुलवंत सिंह
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4 पाठकों का कहना है :
बहुत बढिया रचना है।बधाई।
बेहतरीन रचना ... बधाई।
आप से कुछ अधिक की अपेक्षा होती है.
आप सभी का हार्दिक धन्यवाद...
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