सुभाष चंद्र बोस से सीखो
प्यारे बच्चो,
आज २३ जनवरी है। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म दिन। वे मानव नहीं महा मानव थे। उनमें इतने अधिक गुण थे, जो किसी एक इन्सान में संभव नहीं। जिस समय नेता जी का जन्म हुआ, भारत गुलाम था। अंग्रेज भारतीयों पर ज़ुल्म करते थे। स्कूलों में भारतीय बच्चों के साथ अन्याय होता था। बालक सुभाष को यह बहुत बुरा लगता। उन्होंने सदा निर्भीकता से इसका विरोध किया। वे दूसरे बच्चों की तरह नहीं थे। वे तो असाधारण बालक थे। कक्षा में सदा प्रथम आते और जब भी कोई अन्याय होता अपनी आवाज़ अवश्य उठाते थे। अंग्रेज भी उनकी बुद्धि की प्रखरता देख चकित रह जाते थे। प्रखर बुद्धि के साथ-साथ वे बहुत स्वाभिमानी भी थे। उन्हें अपना देश अपनी भाषा और अपनी संस्कृति से बहुत प्रेम था। इसी स्वाभिमान के कारण उन्होंने अपने पिता से कह दिया कि मैं मिशनरी स्कूल में नहीं पढ़ूँगा। और उन्होंने ऐसा किया भी।
वे अपने देश और उसकी परम्पराओं से बहुत प्यार करते थे। वे अपने धर्म में आस्था रखते थे। एक बार जाड़े में उनकी माँ ने उनको रजाई ओढ़ा दी और सो गईं। थोड़ी देर में उनकी आँख खुली तो देखा सुभाष नंग-धड़ंग आँखें बन्द किए बैठे हैं। माँ ने पूछा- शिब्बू भीषण जाड़े में यह क्या कर रहा है? वे बोलो- तुमने ही तो बताया था माँ कि शिवजी पहाड़ों पर बैठ कर तपस्या करते हैं। क्या हमको भी उनकी तरह नहीं बनना चाहिए? माँ गद्-गद् हो गई। वे स्वाध्याय किया करते थे। धर्म, दर्शन, साहित्य आदि सब विषयों का अध्ययन करते। उन्होंने विवेकानन्द को पढ़ा था। रामकृष्ण परम हंस को पढ़ा और उनके विचारों को जीवन में उतारा। वे अक्सर सोचा करते- कैसे देश को मुक्त कराऊँ? आपको लगता होगा कि बच्चे क्या कर सकते हैं, पर जानते हो सुभाष ऐसा नहीं सोचते थे। उन्होंने बचपन में ही निश्चय कर लिया था कि मैं अंग्रेजों को देश से निकालूँगा और उन्होंने आजीवन उनकी नाक में दम किए रखा। किन्तु बच्चों इतना सब करने के बाद भी वे अपनी पढ़ाई में पीछे नहीं रहे। सदा प्रथम आते थे। उस समय की सबसे बड़ी परीक्षा आई सी एस उन्होने उत्तीर्ण की। सारा भारत उनपर गर्व करता था।
सुभाष समाज सेवी भी थे। बंगाल में जब बाजुट गए। तब उन लोगों के लिए वो भगवान बन गए। किन्तु सबसे अधिक प्रेम वो अपने देश से करते थे। देश को मुक्त करने के लिए उन्होने आई सी एस की नौकरी से त्याग पत्र दे दिया। उन्होने अपने जैसे नौजवानों की एक सैना बनाई। उनका नारा था-तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा। और एक विशाल समूह उनके साथ चल पड़ा। देश की आज़ादी के लिए अपना सुख, चैन और आराम त्याग किया। वे इतने विचित्र थे कि जब उनपर दुख पड़ता, वे और दुख माँगते। कभी न घबराए। अंग्रेजों ने उन्हें बार-बार जेल भेजा, बहुत कष्ट दिए पर सुभाष कहाँ डरते थे?
सुभाष अपने माता-पिता और गुरूजनों का आदर करते थे। कभी भी उनकी आज्ञा का उलंघन नहीं करते थे। वे बहुत अनुशासित भी थे। मानते थे कि जीवन में यदि कुछ पाना है तो अनुशासन का पालन करो और दृढ़ रहो।
सुभाष ने अपने मित्रों का एक दल बनाया और सेवा कार्य में उन्होंने हिन्दु- मुसलमान में कभी भेद नहीं समझा। आपको भी अपने देश के लोगों में भेदभाव नहीं करना चाहिए। सुभाष की तरह वीर, साहसी, परिश्रमी, देश भक्त, सबसे प्यार करने वाला तथा बलिदानी बनना चाहिए। अगर देश के बच्चे सुभाष जैसे बन जाएँगे तो कोई भी हमारे देश को कमजोर नहीं बना सकेगा। यदि कोई तुम्हारे देश की शान्ति को भंग करे तो उसका मुकाबला करो। यह देश तुम्हारा है और इसकी रक्षा तुमको ही करनी है। भारत माता को तुमसे बहुत आशाएँ हैं। आज के दिन यह प्रण लो कि कभी भी अन्याय का साथ नहीं दोगे, किसी के सामने नहीं झुकोगे तथा हमेशा अपने देश और देश वासियों से प्यार करोगे।
जय भारत, जय हिन्द!!
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
4 पाठकों का कहना है :
अगर देश के बच्चे सुभाष जैसे बन जाएँगे तो कोई भी हमारे देश को कमजोर नहीं बना सकेगा। यदि कोई तुम्हारे देश की शान्ति को भंग करे तो उसका मुकाबला करो। यह देश तुम्हारा है और इसकी रक्षा तुमको ही करनी है। भारत माता को तुमसे बहुत आशाएँ हैं। आज के दिन यह प्रण लो कि कभी भी अन्याय का साथ नहीं दोगे, किसी के सामने नहीं झुकोगे तथा हमेशा अपने देश और देश वासियों से प्यार करोगे।
|सीमा जी ,
लोगों की सोच यह बनती जा रही है ,कि हम क्या कर सकते हैं ,हमारा system ही ख़राब है ,ऐसा करके हम अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ कर बैठ जातें हैं ,समाज और राष्ट्र दोनों की परिकल्पना अच्छे मूल्यों को अपने बच्चों में डालकर
की जा सकती है और वो काम हम सबको करना है , आप का कार्य सुभाष जी के बारे में रोचक और प्रेरणापूर्ण बनाकर प्रस्तुत करना उसी दिशा में किया गया प्रयास है ,सराहनीय प्रयास है |
bahut achha likha hai "SHOBH JI" aapne ,netaaji par......
nilam ji ne sahi kahaa hai ke ham kewal apne system ko kasoorwaar maankar baith jaate hain....
manu............
per neelam ji,
ye shobha ji ne likha hai na ki sima ji ne
sorry kahiye
aap sorry bulwa kar kya bataana chaahte hain ?seema ji ho ya shobha ji maqsad to ek hi n apne bachchon ko jaagruk karna .sobha ji to bura nahi manengi kuonki wo
hume jaanti hai ,
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)