देवों का वरदान
देवों का है यह वरदान ।
प्यारा अपना हिंदुस्तान ।
है अनमोल हमारा देश ।
सिमटे हैं कितने परिवेश ।
नित नया कर प्रकृति शृंगार ।
दिखलाती है रूप हजार ।
पावन धरती स्वर्ग समान ।
जन्म यहीं लूँ, है अरमान ।
ऋषि मुनि संतों का है वास ।
देवि देवता का आभास ।
खोजें फैला ज्ञान अथाह ।
चलते रहें प्रगति की राह ।
सदविचार का करें प्रसार ।
दूर रहे अहं विकार ।
वीरों की है भूमि महान ।
भाषा, संस्कृति, गुरु सम्मान ।
सत्य अहिंसा बहती धार ।
मानवता के गुणी अपार ।
गौरवमय अपना इतिहास ।
अर्व अनेक भरें उल्लास ।
हम खुद हैं अपनी पहचान ।
जय जय जय हो हिंदुस्तान ।
कवि कुलवंत सिंह
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2 पाठकों का कहना है :
HAM KHUD HAI APNI PAHCHAAN , bahut sateek kahaa aapane .Aapki kalam aapki pahchaan hai ,khoob desh prem bharpoor rachanaayen likh rahe hai aap .Aapki kavita me dam hai ki kisi bhi padhane vaale ke man me DESH ke prati moh utpan kar sake .BADHAAII
AAPNE BAHUT HI KHUBSOORAT LIKH HAI DESHPREM PAR AAJ KAL AISI HI RACHNAAYEN VANCCHHIT HAIN BADHAI
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