विश्व पृथ्वी दिवस पर विशेष
बच्चो,
क्या आप जानते हैं कि हम जिस ग्रह के वासी हैं, उसके सम्मान में हर साल की २२ अप्रैल की तारीख को विश्व पृथ्वी दिवस के रूप में मनाया जाता है? आपको आपकी माँ, आपके पापा ने ज़रूर बताया होगा कि हमारी धरती की संदरता पेड़ों, नदियों, तालाबों से हैं। शुद्ध जल, शुद्ध वायु आदि हमारे जीने के लिए बहुत आवश्यक हैं। आज इसी अवसर पर सीमा सचदेव आंटी आप सबके के लिए दो कविताएँ लेकर आई हैं।
आइए उनकी बातें ध्यान से पढ़ते हैं। यदि हमने उनकी बातों को मान लिया तो यह पृथ्वी हमेशा खूबसूरत बनी रहेगी।
धरती माता ( कविता)
धरती हमारी माता है,
माता को प्रणाम करो
बनी रहे इसकी सुंदरता,
ऐसा भी कुछ काम करो
आओ हम सब मिलजुल कर,
इस धरती को ही स्वर्ग बना दें
देकर सुंदर रूप धरा को,
कुरूपता को दूर भगा दें
नैतिक ज़िम्मेदारी समझ कर,
नैतिकता से काम करें
गंदगी फैला भूमि पर
माँ को न बदनाम करें
माँ तो है हम सब की रक्षक
हम इसके क्यों बन रहे भक्षक
जन्म भूमि है पावन भूमि,
बन जाएँ इसके संरक्षक
कुदरत ने जो दिया धरा को
उसका सब सम्मान करो
न छेड़ो इन उपहारों को,
न कोई बुराई का काम करो
धरती हमारी माता है,
माता को प्रणाम करो
बनी रहे इसकी सुंदरता,
ऐसा भी कुछ काम करो
अपील:- विश्व धरा दिवस के अवसर पर आओ हम सब धरा को सुन्दर बनाने में सहयोग दें हमारी धरती की सुन्दरता को बनाए रखना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है....... सीमा सचदेव
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पर्यावरण बचाओ अभियान (कथा-काव्य)
पक्षियों ने इक सभा बुलाई
सबने अपनी बात बताई
सुन रहा था बूढ़ा तोता
जो ऊँची डाली पर बैठा
सबकी समस्या लाया कौआ
हम सब है मुश्किल में भैया
न तो मिलता हमें स्वच्छ जल
और दिखते हैं बहुत कम जंगल
न तो हमें मिलते मीठे फल
न ही शुद्ध वायु की हलचल
न दिखती है शीतल छाया
जाने कैसा समय है आया
दूर देश उड़ कर जाते हैं
तब जाकर भोजन पाते हैं
थोड़ा चोच में भर लाते हैं
उड़ते-उड़ते थक जाते हैं
मानव काटता है सब पेड़
करता प्रकृति से छेड़
वायु भी अब दूषित हो गई
गन्दगी सुन्दर धरा पे भर गई
किया न गर अब इस पे विचार
तो न जिएँगे दिन भी चार
फैला है हर जगह प्रदूषण
हो गया मैला स्वच्छ वातावरण
लुप्त हो रही पक्षी जाति
नहीं है कोई इन सबका साथी
......................................
सुन कर यह सब तोता बोला
धीरे से अपना मुँह खोला
यह सब समस्याएँ गम्भीर
पर रखो तुम थोड़ा धीर
क्यों न हम मिलकर सुलझाएँ
हम अपने कुछ नियम बनाएँ
उन नियमों का पालन करेंगे
हरा-भरा वसुधा को करेंगे
हम सब जो भी फल चखेंगे
उसके बीज नहीं फैकेंगे
रखेंगे उनको सड़को किनारे
सोचो जरा सारे के सारे
हम सब मिलकर करेंग यह सब
कितने पौधे फूटेंगे तब
देंगे हम ऐसे सहयोग
होंगे सुखी सारे ही लोग
हरी-भरी वसुधा फिर होगी
जिससे वायु भी शुद्ध होगी
मिलेंगे फिर हमको मीठे फल
बादल बरसाएगा स्वच्छ जल
नहीं रहेगा फिर प्रदूषण
शुद्ध होगा सारा वातावरण
चलो आज से ही अपनाएँ
हम सब सुन्दर वृक्ष लगाएँ
इसको जीवन में अपनाएँ
हरा-भरा वसुधा को बनाएँ
............................................
बच्चो तुम भी समझो बात
कुदरत की उत्तम सौगात
वृक्ष लगाओ सारे मिलकर
गन्दगी न फैलाओ धरा पर
आओ धरा को सुन्दर बनाएँ
हम सब इक-इक वृक्ष लगाएँ
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अपील:- प्रकृति अनमोल है। धरा की सुन्दरता, पर्यावरण को सम्हालना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है शुद्ध वातावरण में जीने का हम सब का अधिकार है इस को स्वच्छ बनाने में सहयोग दें...... सीमा सचदेव
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9 पाठकों का कहना है :
सीमा जी, आपने कविता के माध्यम से , बहुत ही सरल भाषा में जो संदेश बच्चों तक पहुँचाने की कोशिश की है, उम्मीद करती हूँ कि उसे बड़े भी पढेंगे और कुछ सीखेंगे , आज के पर्यावरण प्रदुषण के कारण इंसान स्वयं मुश्किल में आ गया है , ऐसे में बच्चे धरती को बचाने में योगदान दें , ऐसी समय की मांग भी है .दोनों कविताएँ बहुत ही शिक्षाप्रद हैं , आपका बहुत बहुत धन्यवाद
^^पूजा अनिल
बहुत बढिया सीमा जी,
सही समय पर सही कविता, उम्मीद है बडे व बच्चे सभी का ध्यान इस ओर जायेगा..
सीमा जी,
अच्छी कविता.... बच्चों के साथ साथ हमे भी सीख लेनी चाहिये
बच्चो के लिए ही नही बडो के लिए भी एक सार्थक रचना लिखी है आपने सीमा जी .बहुत ही सुंदर
Is chetna ki muhim ko mera salaam.
बहुत बढ़िया सीमा जी। आपका संदेश, बच्चों ही नहीं बल्कि बड़ों तक भी पहुँचा होगा।
सीमा जी, इस कविता के द्बारा आपने सभी तक बहुत अच्छा सन्देश पहुंचाया है. धन्यबाद
सीमा जी,
अगर इस बात को हमने समझ लिया तो शायद बच्चे भी समझें,,,,,
पर मुझे तो हम बड़ों की समझ पर शक हो जाता है,,,,,
अगर यही हाल रहा तो एक दिन कहना पडेगा,,,,,,
चंदा पर या मंगल पर बसने की जल्दी फिक्र करो,
बढ़ती जाती भीड़ , सिमटती जाती धरती सालों साल
आपने एक दम सही चिंता जतायी है,,,,,
बस ये रोग औरों को भी लग जाए,,,,
अनिल अनल भू नभ सलिल, प्रकृति के वरदान.
अगर न हम रक्षा करें, भू हो नर्क समान.
भू हो नर्क समान, बचाने आयीं सीमा.
पर्यावरण बचायें धरती का हो बीमा.
सीमा जी की बात मान लें हो संकट छू.
प्रकृति के वरदान, नभ सलिल अनिल अनल भू.
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