Friday, April 18, 2008

फल

सेब संतरा और मौसंबी
खाए हमने खूब
अब मौसम है आमों का
खरबूजे और तरबूज

रस रसीली लीची भी
आएगी भरपूर
छुट्टी में अब होगी मस्ती
पढ़ना कोसों दूर

लुकाट चीकू रसभरी
आते नही पसंद
लेकिन पापा घुरे जब
चुपके से निगले हम

अगूर चेरी स्ट्राबेरी
मुह से टपके लार
इनको जब भी खाए हम
बनते सबके यार

कवि कुलवत सिह


आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

7 पाठकों का कहना है :

Manas Path का कहना है कि -

अरे इतने सारे फ़ल. मुंह में पानी आ गया.

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बहुत मीठे फल वाली कविता है कवि जी :)

Anonymous का कहना है कि -

सुंदर कविता
आलोक सिंह "साहिल"

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

बढ़िया

seema sachdeva का कहना है कि -

Itane saare fal ikkathe dekh kar bahut majaa aayaa

Anonymous का कहना है कि -

फलों की दुनिया की सैर करते हुये ,हमारे मुंह में पानी भर आया , बहुत खूब कवि कुलवंत जी

^^पूजा अनिल

Kavi Kulwant का कहना है कि -

आप सभी शुभेच्छुओं का हार्दिक धन्यवाद...

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)