जय हो ! भारत माँ की जय हो !
मुकुट शीश उन्नत शिखर
पदतल गहरा विस्तृत सागर
शोभित करती सरिताएं हों
जय हो ! भारत माँ की जय हो !
सत्य, अहिंसा, त्याग भावना
सर्वमंगल कल्याण प्रार्थना
जन - जन हृदय महक रहा हो
जय हो ! भारत माँ की जय हो !
पुरा संस्कृति उत्थान यहीं पर
धर्म अनेक उद्गम यहीं पर
पर उपकार सार निहित हो
जय हो ! भारत माँ की जय हो !
विद्वानो, वीरों की पुण्य धरा
बलिदानों से इतिहास भरा
तिलक रक्त मस्तक धरा हो
जय हो ! भारत माँ की जय हो !
साहित्य, खगोल, आयुर्विज्ञान
योग, अध्यात्म, अद्वैत, ज्ञान
ज्ञानी, दृष्टा, ऋषि, गुणी हों
जय हो ! भारत माँ की जय हो !
राष्ट्र उत्थान भाव निहित हो
धर्म दया से अनुप्राणित हो
जग में भारत विस्तारित हो
जय हो ! भारत माँ की जय हो !
कवि कुलवंत सिंह

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4 पाठकों का कहना है :
JAI HO BHARAT MAA KI , Aapki kavita desh bhakti se bharpoor hai ,lekin jis shabdaavali ka pryog hai vah bachcho ke star se kahee upar hai , bachcho ke liye desh-bhakti bharpoor saahitay hona chaahiye ,thodi aasaan bhaasha me jise bachche aasaani se samajh sake ,mai yah nahi kah rahi ki kavita me koi kami hai , balki uch-striya hai aapki kavita aur namn hai aapki kalam ko jisase itani pyaari kavita rachi gai.....seema sachdev
कुलवन्त जी
बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई
कुलवंत जी,
मैं सीमा जी के विचारों से सहमत हूँ। आप भारी-भरकम शब्दों का इस्तेमाल करके देशभक्ति की भावना जगाने में न सफल होकर डराने में ज़रूर सफल हो रहे हैं।
क्या कहें,ह्म्म्म्म..क्ल्वंत जी यू ही बच्चों को अच्छे अच्छे सबक देते रहिए
आलोक सिंघ "साहील'
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