चिड़िया का संदेश
फुर फुर करती आये चिड़िया
बैठ मुँडेर पे गाये चिड़िया
रोज सवेरे मुझे जगाती
चीं चीं करके गाना गाती
आँखें मलती मैं उठ जाती
बैठ मुँडेर पे गाये चिड़िया
रोज सवेरे मुझे जगाती
चीं चीं करके गाना गाती
आँखें मलती मैं उठ जाती
भात कटोरी जब मैं लाती
फुदक फुदक कर नीचे आती
चहक चहक कर खेल दिखाती
सुबह मेरी मधुमय हो जाती
फुदक फुदक कर नीचे आती
चहक चहक कर खेल दिखाती
सुबह मेरी मधुमय हो जाती
गाना गाकर प्यार लुटाती
उठो सवेरा सीख सिखाती
खुले गगन की सैर वो करती
उठो सवेरा सीख सिखाती
खुले गगन की सैर वो करती
यही संदेशा देकर जाती
प्रकृति की दौलत तुम्हारे लिये है
सुरभित पवन ये तुम्हारे लिये है
खुली हवा में सैर को जाओ
नहीं नींद में समय बिताओ
सबल स्वास्थ्य के धनी बन जाओ
सुषमा गर्ग
29.4.08
प्रकृति की दौलत तुम्हारे लिये है
सुरभित पवन ये तुम्हारे लिये है
खुली हवा में सैर को जाओ
नहीं नींद में समय बिताओ
सबल स्वास्थ्य के धनी बन जाओ
सुषमा गर्ग
29.4.08
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8 पाठकों का कहना है :
सुषमा जी
सुन्दर कविता लिखी है। बधाई स्वीकारें।
बढिया बाल-मन-भावन एवं शिक्षाप्रद कविता..
बहुत सुंदर कविता सुषमा जी
Chidiya ki chi-chi ne chulbulapan bhar diya ,bahut hi pyaari rachana bachcho ke liye ,badhaai.....seema
सुषमा जी , सुरुचिपूर्ण शिक्षा देती चिडिया की कविता हमारे भी मन भाई, आपको ढेरों शुभकामनाएँ
^^पूजा अनिल
बहुत ही अच्छा संदेश
सुषमा है कविता में..
सुषमा जी
बहुत सुन्दर कविता लिखी है। बधाई
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