Friday, April 11, 2008

सृष्टि

सूरज दहके
चंदा चमके
ज्योति दमके
दीपक बन के ।

लोक है प्यारा
शीतल धारा
गगन है न्यारा
दूर सितारा ।

ठंडी आये
स्वेटर लाये
नहीं नहायें
मस्ती छाये ।

गर्मी सताए
खूब रुलाए
खेल न पाएँ
कैद हो जाएँ ।

बादल छाये
बारिस आये
रिमझिम गाये
गर्मी जाये ।

सावन महका
मौसम बहका
गुलशन महका
जीवन चहका ।

निंदिया भाये
सपने लाये
परियां आयें
कथा सुनाएँ ।

कवि कुलवंत सिंह


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6 पाठकों का कहना है :

seema sachdeva का कहना है कि -

wah kavi kulvant ji kitani pyaari kavita kahi hai aapne aur rituyon ki jaankaari bhi .badhaai sveekaare....seema

Anonymous का कहना है कि -

कुलवंत जी pichhle dino bahut sari aisi kavitayein aayin jinhe pachana mushkil tha lekin yah khas bacchon ke l;iye likhi gai kavita achhi लगी,बधाई
आलोक सिंह "साहिल"

डॉ० अनिल चड्डा का कहना है कि -

बच्चों के लिये बहुत ही सुन्दर कविता । बधाई ।

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

इस बार आपकी रचना बाल-सुलभ हुई है। खुशी हुई पढ़कर

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

सुन्दर सरल रचना

बधाई

Dr. Zakir Ali Rajnish का कहना है कि -

कुलवंत जी, इस प्यारी सी कविता के लिए बधाई स्वीकारें। आपने छोटे-छोटे शब्द गुच्छों में बहुत ढेर सारी सार्थक बातें कह दी हैं।

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