सृष्टि
सूरज दहके
चंदा चमके
ज्योति दमके
दीपक बन के ।
लोक है प्यारा
शीतल धारा
गगन है न्यारा
दूर सितारा ।
ठंडी आये
स्वेटर लाये
नहीं नहायें
मस्ती छाये ।
गर्मी सताए
खूब रुलाए
खेल न पाएँ
कैद हो जाएँ ।
बादल छाये
बारिस आये
रिमझिम गाये
गर्मी जाये ।
सावन महका
मौसम बहका
गुलशन महका
जीवन चहका ।
निंदिया भाये
सपने लाये
परियां आयें
कथा सुनाएँ ।
कवि कुलवंत सिंह
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6 पाठकों का कहना है :
wah kavi kulvant ji kitani pyaari kavita kahi hai aapne aur rituyon ki jaankaari bhi .badhaai sveekaare....seema
कुलवंत जी pichhle dino bahut sari aisi kavitayein aayin jinhe pachana mushkil tha lekin yah khas bacchon ke l;iye likhi gai kavita achhi लगी,बधाई
आलोक सिंह "साहिल"
बच्चों के लिये बहुत ही सुन्दर कविता । बधाई ।
इस बार आपकी रचना बाल-सुलभ हुई है। खुशी हुई पढ़कर
सुन्दर सरल रचना
बधाई
कुलवंत जी, इस प्यारी सी कविता के लिए बधाई स्वीकारें। आपने छोटे-छोटे शब्द गुच्छों में बहुत ढेर सारी सार्थक बातें कह दी हैं।
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