पंडित नहीं कहते
एक अनपढ़ भीख मांगकर अपना पेट भरता था | उसे पंडित कहलवाने की बड़ी इच्छा थी | परन्तु मूर्ख और अनपढ़ को भला कौन पंडित कहता |
एक दिन उसने बीरबल का रास्ता रोककर पूछा कि ऐसा कोई उपाय बताएं कि लोग उसे पंडित कहने लगें |
"तुम थोडी दूर जाकर खड़े हो जाओ और कोई तुम्हें पंडित कहे, उसे मारने दौडो" | बीरबल ने उसे युक्ति समझाई |
यह सुनकर वह ब्राह्मण बहुत खुश हुआ और कुछ दूर जाकर खडा हो गया | उसके हटते ही बीरबल ने इधर-उधर खेल रहे लड़कों से कहा -"यह आदमी पंडित कहने से चिढ़ता है, इसको खूब चिढ़ाओ"
बस फिर क्या था, लड़के उसे चिढ़ाने के लिए 'पंडित -पंडित' कहने पुकारने लगे | ब्राह्मण उन्हें मारने को दौड़ा | लड़कों की देखा-देखी और लोग भी उसे चिढ़ाने लगे | लोग उसे पंडित कहते, वह उन्हें मारने दौड़ता | इसी प्रकार थोड़े ही दिनों में उसका 'पंडित' नाम सारे नगर में मशहूर हो गया | फिर, बीरबल की सलाह पर ही उसने चिढ़ना छोड़ दिया, मगर लोगों ने पंडित कहना न छोड़ा |
(यह कहानी कैसी लगी ,इस कहानी से आप क्या को क्या शिक्षा मिलती है ,लिखना न भूलें )
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4 पाठकों का कहना है :
एक बार एक अनपढ़ ठेठ
भीख माँगकर भरता पेट
माँग रहा था भले ही भिक्षा
लेकिन उसकी थी एक इच्छा
गाँव में जितने भी नर नारी
बोलें उसको पंडित पुजारी
एक दिन बीरबल जब आया
उसने सब वृतांत बताया
बीरबल ने तब युक्ति सुझाई
खडे दूर हो जाओ भाई
जो भी तुमको पंडित बोले
डंडा लेकर पीछे हो ले..
खेल रहे कुछ बच्चे भोले
बीरबल फिर उनसे बोले
जाकर इसको खूब चिढाओ
पंडित पंडित तुम चिल्लाओ
बच्चों ने फिर शोर मचाया
अनपढ को जमकर दौड़ाया
लो अनपढ का हो गया काम
पंडित बोले पूरा गांव
अनपढ़ ने दिया चिडना छोड
बीरबर से बोला कर जोड़
आपकी युक्ति काम में आयी
हम भी पन्डित हो गये भाई
- सार - बुद्धि इतनी बलवती होती है कि
स्वमं तो क्या बुद्धिमान इंसान किसी दूसरे अज्ञानी को भी ज्ञानी कहलवा सकता है..
बहुत ही सुन्दर कहानी है..
बाल उद्यान में पुष्प खिलाने के लिये माली को
बार बार धन्यवाद..
शुक्रिया राघव जी
कहानी अच्छी लगी
भूपेन्द्र राघव जी आपकी कविता भी बहुत अच्छी लगी
सुमित भारद्वाज
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