Tuesday, September 30, 2008

पतंग



ऊँचा गगन विशाल,
उसमें देखो पतंग हजार,
सबसे प्यारी मेरी पतंग
सबसे न्यारी मेरी पतंग
जिधर मैं चाहूँ, उधर वो जाए
मेरी आहट पाकर,वो मुड़ जाए
एक बात तुम भी रखो याद ,
पतंग से ले लो सीख ये आज |
अगर कभी झुक जाओ जग में ,
झट उठ जाओ पतंग के जैसे |
गिर के उठना, उठ के गिरना ,
जीवन की तो रीत यही है |
इससे मिलती उम्मीद नई है,
उमंग नई है ,
सबसे प्यारी मेरी पतंग ,
सबसे न्यारी मेरी पतंग

नीलम मिश्रा ((चित्र प्रस्तुत किया है हमारे नन्हे चित्रकार -गुरप्रीत सिंह ,जो pre-nursary, में पढ़ते हैं )


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2 पाठकों का कहना है :

Unknown का कहना है कि -

कविता और चित्र दोनो ही बहुत प्यारे लगे
सुमित भारद्वाज

Anonymous का कहना है कि -

sundar
alok singh "sahil"

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