Monday, September 22, 2008

स्वयं अपना मूल्यांकन सम्भव नही

एक बार कला कौशल के देवता -बुद्ध-को एक अनोखा विचार आया वे यह जानने के लिए उत्सुक हो उठे कि कि धरती के वासी अन्य देवताओं की तुलना में उनका अंकन कैसे करते हैं अतः एक मनुष्य का वेश बनाकर वे धरती पर उतर आए घूमते -घुमाते वे एक मूर्तिकार के घर जा पहुँचे वह मूर्तिकार देवताओं की मूर्तियाँ बनाने के लिए विख्यात था बुद्ध देव ने विभिन्न देवताओं की मूर्तियाँ उसके घर में पड़ी देखीं उनमे उनकी अपनी मूर्ति भी थी
बुद्धदेव मूर्तिकार के पास जाकर बोले ,"देवताओं के गुरु ब्रहस्पति की मूर्ति का क्या मूल्य है ?"
"सौ रुपये " मूर्तिकार ने उत्तर दिया
"और देवी शचि की मूर्ति कितने की है ?"उन्होंने पूछा
"पचास रुपए की "मूर्तिकार ने कहा


बुद्ध देवता की मूर्ति की कीमत क्या है उन्होंने पूछा
"यदि आप ये दोनों मूर्तियाँ खरीद लें तो बुद्ध की मूर्ति आप को मुफ्त में दे दूँगा "मूर्तिकार ने उत्तर दिया बुद्धदेव अपना सा मुहँ लेकर लुप्त हो गए


आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

4 पाठकों का कहना है :

Dr. Zakir Ali Rajnish का कहना है कि -

रोचक प्रसंग है और प्रेरक भी।

संगीता पुरी का कहना है कि -

अपने महत्व को जानने की कोशिस न करने में ही भलाई है।

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

अच्छी सीख देने वाला प्रसंग है।

Anonymous का कहना है कि -

सुंदर शुरुआत,नीलम जी.
आलोक सिंह "साहिल"

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)