प्रतिध्वनि
एक लड़का था| प्रतिध्वनि के सम्बन्ध में कुछ नहीं जानता था | एक बार जंगल में जब वह चिल्लाया, तो उसे लगा कि पास ही कोई दूसरा लड़का भी चिल्ला रहा है | उसने उससे कहा "इधर तो आओ"|
उधर से भी आवाज आई, "इधर तो आओ "| लड़के ने कहा, "कौन हो तुम?" आवाज ने भी कहा, कौन हो तुम?"|
लड़के ने उसे डाटा, "तुम बहुत ख़राब लड़के हो"
लड़का घबराया और जंगल से घर लौट आया | उसने अपनी माँ को सारी घटना बताई, "माँ! जंगल में एक ख़राब लड़का रहता है | वह हू-ब-हू मेरी नक़ल करता है | जो मैं कहता हूँ वह भी वही कहता है | मैं जैसे चिल्ल्लाता हूँ, वह भी वैसे ही चिल्लाता है "
उसकी माँ समझ गई कि मामला क्या है? उसने बेटे से कहा, "बेटा उस लड़के से विनम्रता-पूर्वक बोलो यदि तुम नम्रता-पूर्वक बोलोगे, तो वह भी तुमसे नम्रता-पूर्वक बोलेगा "
लड़का फिर उसी जंगल में गया | वहाँ उसने जोर से कहा, "तुम बहुत अच्छे हो"| उधर से आवाज आई, "तुम बहुत अच्छे हो"| लड़के ने और जोर से कहा, मैं तुमसे प्यार करता हूँ"| उधर से भी आवाज आई, "मै तुमसे प्यार करता हूँ"| मनुष्य का जीवन भी एक प्रतिध्वनि कि तरह है | यदि तुम चाहते हो कि लोग तुमसे प्रेम करें, तो तुम भी दूसरों से प्रेम करो | तुम जिससे भी मिलो, मुस्कुराते हुए मिलो | तुमको मुस्कुराता हुआ देखकर,वह भी मुस्कुराएगा और फिर मुस्कराहट ही मुस्कराहट नज़र आएगी |
अनुवाद -नीलम मिश्रा
स्रोत -बाल बोध कथाएं (भारतीय योग संस्थान )
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5 पाठकों का कहना है :
उपयोगी और नीतिपरक कहानी।
ज्ञान परक बात.अच्छा लगा.
आलोक सिंह "साहिल"
good story
regards
वाह ! नीलम जी,
बहुत अच्छी कथा सुनाई आपने. बच्चों को इसी तरह का साहित्य चाहिए.
बढिया कहानी है नीलम जी...
बहुत बहुत बधाई..
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