नव रात्र -नव दुर्गा
प्यारे बच्चों!
आजकल तो आप दशहरे की छुट्टियाँ मना रहे होंगें ? आजकल नवरात्र चल रहे हैं। ये दिन शक्ति की आराधना के दिन हैं। इन दिनों में पूजा का विशेष महत्व होता है। भगवान राम ने भी इन्हीं दिनों माँ दुर्गा की पूजा कर रावण वध के लिए शक्ति प्राप्त की थी।माँ दुर्गा की कृपा से उन्होने रावण का वध कर दिया था।
नवरात्रों में देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। पूरे नौ दिनों तक पूजा होती है। हर दिन देवी के अलग-अलग रूप की पूजा होती है। जानना चाहोगे? ठीक है. मैं तुमको बताती हूँ। सुनो
१ पहले दिन माँ की पूजा शैल पुत्री रूप में की जाती है। हिमालय के घर में जन्म लेने के कारण इनका यह नाम पड़ा। दाएँ हाथ में त्रिशूल है और बाएँ में कमल सुशोभित है। ये प्रथम दुर्गा हैं इन्होने देवताओं का गर्व तोड़ा था। शैलपुत्री की शक्तियाँ अनन्त हैं। प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित कर इनकी साधना करता है।
२ दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी रूप में माँ की पूजा की जाती है। यह देवी का ज्योतिर्मय और भव्य रूप है। इनके दाएँ हाथ में जप की माला और बाएँ हाथ में कमंडल होता है। उमा रूप में शिव को प्राप्त करने के लिए इन्होने जो कठिन तपस्या की थी उसी के कारण इनका यह नाम पड़ा। इनके उमा नाम की कथा भी बड़ी रोचक है। बच्चों इनकी कठिन तपस्या देखकर माँ मैना के मुँह से निकल पड़ा उ मा ( उई माँ ) और तभी से इनका नाम पड़ गया उमा।
माँ दुर्गा का यह रूप भक्तों को अनन्त फल देने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है।इन दिनों स्वाधिष्ठान चक्र में ध्यान लगाते हैं। इससे इनकी कृपा और भक्ति प्राप्त होती है।
३ तीसरे दिन माँ चन्द्र घंटा के रूप में देवी की पूजा होती है। इनका यह रूप परम शान्ति दायक और कल्याण कारी है। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्ध चन्द्र होता है। इसी कारण इन्हें चन्द्र घंटा कहा जाता है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला होता है। इनके दस हाथ हैं और सभी में खड्ग, त्रिशूल, गदा आदि शस्त्र होते हैं। इनके घंटे की सी भयानक ध्वनि के कारण अत्याचारी दानव काँपते हैं। इस दिन उपासना का विशेष महत्व होता है। इसदिन साधक का मन मणिपुर चक्र में प्रवेश करता है। माँ चन्द्र घंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते है। दिव्य सुगन्धियों का अनुभव होता है। इनका वाहन सिंह है। अतः इनकी उपासना करने वाला सिंह की तरह पराक्रमी और निडर हो जाता है। ये माँ भूत-प्रेत आदि के भय से भी मुक्त करती हैं।
४ चतर्थ दिन माँ की उपासना कूष्माँडा रूप में होती है। अपनी मंद-मंद मुस्कान से इन्होने ब्रह्मांड को उत्पन्न किया था। इनका निवास सूर्य मंडल के भीतर लोक में है। यह क्षमता इनमें ही है। इनकी कान्ति और प्रभा सूर्य के समान है। इस दिन साधक का मन अनाहत चक्र में पहुँच जाता है। इनकी उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक समाप्त हो जाते हैं और आयु, यश, बल और आरोग्य प्राप्त होता है।
पाँचवे दिन स्कन्द माता के रूप में देवी की आराधना की जाती है। ये भगवान कार्तिकेय की माता हैं। इस दिन साधक विशुद्ध चक्र में स्थित होता है। इनके विग्रह में भगवान स्कंद जी बाल रूप में विराजमान होते हैं। कमल पर विराजमान होने के कारण कलमासना कही जाती हैं। सिंह इनका वाहन है। इस दिन पूजा करने से समस्त लौकिक तथा सांसारिक मायाविक बन्धन समाप्त हो जाते हैं।
छटे दिन देवी की पूजा कात्यायिनी रूप में की जाती है। कहा जाता है कि कात्यायन ऋषि ने तपस्या की थी कि देवी उनके घर पुत्री रूप में उत्पन्न हों। उनकी इस कामना को पूर्ण करने का माँ ने आशीर्वाद दिया था। जब सृष्टि में दानव महिषासुर का अत्याचार बढ़ा तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेष ने अपने-अपने तेज का अंश देकर एक देवी को उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने सर्व प्रथम देवी की पूजा की। इसीलिए इनका नाम कात्यायिनी पड़ा। माँ का यह रूप अमोघ फल देने वाला है। इस दिन साधक का मन आग्या चक्र में स्थित होता है। इनका वाहन सिंह है। माँ कात्यायिनी की कृपा से धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। अतः साधक को पूरी श्रद्धा से माँ के इस रूप की पूजा करनी चाहिए।
बाकी की कथा कल सुनाउँगी। माँ भगवती ह सब पर अपनी कृपा बनाए रखे। जय माता की।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
2 पाठकों का कहना है :
धन्य है शोभा जी आपकी उंगलियाँ, कुंजीपटल, निर्गत इकाई, संसाधक तंत्र व लम्बोदर का वाहन (चूहा )
जो सर्वप्रथम ये माहामाई की महिमा वहाँ मुद्रित हुई..और अब हम भी मुदित हैं पढकर..
माँ का प्यार बना रहे
शुभेक्षी
maa durga aur unke alag alag roop ke baare mein kafi achhi jankari, bachhon ke jariye badon ko bhi!
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)