दुनिया खूब है भाती
जब भी देखूँ मै दुनिया, यह दुनिया खूब है भाती ।
मन में मेरे प्यार जगाती, दुनिया खूब है भाती ॥
हंस हंस कर जब खिले फूल मुझे अपने पास बुलाते ।
कोमल सा अहसास दिलाती, दुनिया खूब है भाती ॥
सुबह सवेरे आसमान में दिखता लाल सा गोला |
मन में फिर विश्वास जगाती दुनिया खूब है भाती ॥
ऋतुएं नियम से आती जातीं, खुशियां देकर जातीं ।
खुशियां बांटो जीना सीखो, दुनिया खूब है भाती ॥
प्रकृति सदा देती है हमको, जीवन के साधन सभी ।
देना हर पल हमें सिखाती, दुनिया खूब है भाती ॥
कुहुक कुहुक कर मीठी बोली, बोल के कोयल मोहे ।
बोलो मीठे बोल सुनाती दुनिया खूब है भाती ॥
घट कर चंदा गायब होता, फिर बढ़ कर होता बड़ा ।
न घबराना दुख में बताती, दुनिया खूब है भाती ॥
टिम टिम करते लाखों तारे चमक रहे जुगनू गगन ।
जग आलोक बिखेरो कहती दुनिया खूब है भाती ॥
सांझ सवेरे चहक चहक कर चिड़ियां खूब हैं गातीं ।
हंसो हंसाओ जग में हर पल, दुनिया खूब है भाती ॥
फल से जितना लद जाता, उतना ही झुक जाता पेड़ ।
मधुर मृदुल हम भी बन जाएं, दुनिया खूब है भाती ॥
तरह तरह के प्राणी, पक्षी, जीव, जंतु और जलचर ।
कण-कण में है बसा हुआ प्रभु, दुनिया खूब है भाती ॥
कवि कुलवंत सिंह

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5 पाठकों का कहना है :
जगाती---दिलाती------दिखाती----अर्थात जहाँ-जहाँ ---आती है वहाँ तो दुनियाँ खूब है भाती -अच्छा लग रहा है लेकिन
जहाँ सीखो--हर पल--- जैसे शब्द हैं वहाँ ---दुनियाँ खूब है भाती खटक रहा है।
-देवेन्द्र पाण्डेय।
jitna achcha bhaav hai utna achcha shabd sanyojan nahi
likha jarur achha hai par bacchon ke liye ise apna pana mushkil ho sakta hai.
ALOK SINGH "SAHIL"
kulwant ji ,
humaari beti ko ek -ek line samjhaani hogi ,samajh gaye na aap .
बहुत कमजोर बाल गीत है। तुकांत होने के बावज़ूद प्रवाह नहीं है।
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