Friday, October 24, 2008

दुनिया खूब है भाती

जब भी देखूँ मै दुनिया, यह दुनिया खूब है भाती ।
मन में मेरे प्यार जगाती, दुनिया खूब है भाती ॥

हंस हंस कर जब खिले फूल मुझे अपने पास बुलाते ।
कोमल सा अहसास दिलाती, दुनिया खूब है भाती ॥

सुबह सवेरे आसमान में दिखता लाल सा गोला |
मन में फिर विश्वास जगाती दुनिया खूब है भाती ॥

ऋतुएं नियम से आती जातीं, खुशियां देकर जातीं ।
खुशियां बांटो जीना सीखो, दुनिया खूब है भाती ॥

प्रकृति सदा देती है हमको, जीवन के साधन सभी ।
देना हर पल हमें सिखाती, दुनिया खूब है भाती ॥

कुहुक कुहुक कर मीठी बोली, बोल के कोयल मोहे ।
बोलो मीठे बोल सुनाती दुनिया खूब है भाती ॥

घट कर चंदा गायब होता, फिर बढ़ कर होता बड़ा ।
न घबराना दुख में बताती, दुनिया खूब है भाती ॥

टिम टिम करते लाखों तारे चमक रहे जुगनू गगन ।
जग आलोक बिखेरो कहती दुनिया खूब है भाती ॥

सांझ सवेरे चहक चहक कर चिड़ियां खूब हैं गातीं ।
हंसो हंसाओ जग में हर पल, दुनिया खूब है भाती ॥

फल से जितना लद जाता, उतना ही झुक जाता पेड़ ।
मधुर मृदुल हम भी बन जाएं, दुनिया खूब है भाती ॥

तरह तरह के प्राणी, पक्षी, जीव, जंतु और जलचर ।
कण-कण में है बसा हुआ प्रभु, दुनिया खूब है भाती ॥

कवि कुलवंत सिंह


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5 पाठकों का कहना है :

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

जगाती---दिलाती------दिखाती----अर्थात जहाँ-जहाँ ---आती है वहाँ तो दुनियाँ खूब है भाती -अच्छा लग रहा है लेकिन
जहाँ सीखो--हर पल--- जैसे शब्द हैं वहाँ ---दुनियाँ खूब है भाती खटक रहा है।
-देवेन्द्र पाण्डेय।

सीमा सचदेव का कहना है कि -

jitna achcha bhaav hai utna achcha shabd sanyojan nahi

Anonymous का कहना है कि -

likha jarur achha hai par bacchon ke liye ise apna pana mushkil ho sakta hai.
ALOK SINGH "SAHIL"

neelam का कहना है कि -

kulwant ji ,
humaari beti ko ek -ek line samjhaani hogi ,samajh gaye na aap .

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

बहुत कमजोर बाल गीत है। तुकांत होने के बावज़ूद प्रवाह नहीं है।

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