गोवर्धन पूजा (काव्यात्मक-कहानी)
नमस्कार बच्चो ,
मजे तो खूब किए न दिवाली पर ,घर मे पूजा भी की ,चलो अब कुछ पेट-पूजा भी हो जाए अगर अच्छे पकवान खाना चाहो तो चलो मेरे संग. वृन्दावन सोच कर ही मेरे मुँह मे पानी भर आया आपको पता है न कल मैने बताया था आपको कि हर वर्ष दीवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा होती है और भगवान को छप्पन भोग (५६ प्रकार के पकवान ) लगाया जाता है उत्तरी भारत मे इसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है और यह दिन विश्वकर्मा दिवस के रूप मे भी मनाया जाता है विश्वकर्मा ने बहुत सारे नगर बनाए थे ,इस लिए आज का दिन उस की याद मे मनाया जाता है हम बात कर रहे थे गोवर्धन पूजा की तो चलो आज मै आपको वो कहानी सुनाती हूँ जिसके लिए हर वर्ष गोवर्धन पर्वत की पूजा बडी धूम-धाम से की जाती है:-
गोवर्धन पूजा
बच्चो कल तो थी दिवाली
हुई थी रौशन रात भी काली
फहराया राम-लखन का ध्वज
चलो आज मेरे संग ब्रज
चलेंगें अब हम वृन्दावन
पूजा जाएगा गोवर्धन
छप्पन भोग बनेगा वहाँ पर
खाएँगे हम कान्हा संग मिलकर
आओ बताऊँ इसका राज
क्योँ पूजे जाते गिरिराज
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पहले तो ब्रजवासी सारे
भोले-भाले थे बेचारे
करते देवराज की पूजा
ताकि खुश हो करे वो वर्षा
इन्द्र देव को होगा हर्ष
तो होगी वर्षा पूरा वर्ष
होगी चहुँ ओर हरियाली
नही रहेगी कोई कंगाली
धन -धान्य होगा अपार
छाएगी ब्रज मे भी बहार
इन्द्र देव को हुआ अभिमान
मै तो हूँ सदृश्य भगवान
देता हूँ वर्षा का धन
पलता जिस पर जन-जीवन
एक बार न हुई बरसात
ब्रज वालो को लगा आघात
सूख गए सारे ही वन
अस्त-व्यस्त हो गया जीवन
सोचा सबने एक उपाय
क्यों न वो कोई यज्ञ करवाएँ
होंगें इन्द्रदेव प्रसन्न
मिलेगा फिर वर्षा का धन
मिलके खूब पकवान बनाएँ
सुन्दर थालो मे सजाएँ
देख के कान्हा था हैरान
नही है इन्द्रदेव भगवान
न तो वो देता है धन
न दे सकता है जन-जीवन
फिर उसकी ही क्यों हो पूजा
सोचो कोई उपाय तो दूजा
फिर ब्रज वालो को समझाया
और गायों को धन बताया
इन्द्र से बडा तो है गोवर्धन
देता जो गायों को भोजन
गायों को मिलता है चारा
चलता हम सब का गुजारा
फिर हम क्यों पूजे देवराज
आओ मिलकर सारा समाज
पूजेंगें हम आज गोवर्धन
जिस पर निर्भर है यह जीवन
ब्रज वालो की समझ मे आया
गिरिराज को भोग लगाया
खुद ही कान्हा भोग लगावें
खुद गिरिराज रूप मे खावें
न जाने वो भोले ग्वाले
कान्हा हैं उनके रखवाले
आया देवराज को क्रोध
भर गया था मन मे प्रतिशोध
लगा वो खूब जल बरसाने
ब्रज को पानी मे डुबाने
जल से सारा ब्रज गया भर
देख के ब्रजवासी गए डर
कान्हा ने गिरिराज उठाया
नीचे ब्रज वालो को छुपाया
सात दिन तक हुई बरसात
पर न थका कान्हा का हाथ
मानी इन्द्र देव ने हार
आया वो कान्हा के द्वार
छोड़ दिया उसने अभिमान
बोला कान्हा है भगवान
खुद गिरिराज के रूप मे आए
खुद ही गोवर्धन को उठाए
तब से मनता है यह दिन
पूजा जाता है गोवर्धन
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गोवर्धन पूजा की हार्दिक बधाई एवम् शुभ-कामनाएँ.......सीमा सचदेव
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6 पाठकों का कहना है :
goyardhan pooja ,kavita ke maadhyam se ,hum to pahley se aap ki is vidhaa ke kaayal hain seema ji ,aur ab kya kahen .
बहुत बढ़िया बताया आपने . हमें भी जानकारी मिली इस के माध्यम से
एक सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें।
सीमा जी,
नीलम जी वाला कमेंट मैं करना चाहता था।
कविता में गोवर्धन पूजा के बारे में लिखना आसान तो नही पर आप ने एसे लिखा की आसान बनादिया कमाल है बधाई हो
सादर
रचना
its a nice poem
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