भगत सिंह
प्यारे बच्चों आज हम तुम्हे बताएँगे आजादी के एक सेनानायक के बारे में, सबसे पहले उनसे जुड़े एक रोचक प्रसंग को,
एक बार की बात है कि एक बच्चा अपने दादाजी जी साथ खेतों में टहलने जा रहा था, रास्ते में दादाजी के एक मित्र मिल गए, वो उनसे बात करते हुए आगे निकल गए थोड़ी देर के बाद उन्हें अपने पोते की कोई आहट न मिलने पर पीछे मुड़कर देखा तो देखा कि वह बालक काफ़ी दूर झुक कर कुछ काम कर रहा है उन्होंने उससे पूछा कि क्या कर रहे हो? उसने जबाब दिया कि मैं बन्दूक की फसल बो रहा हूँ| उस बालमन में यह था कि हमारे पास अंग्रेजों जितनी बंदूकें नहीं हैं |
बड़े होकर यही बालक बना भगतसिंह, आज हम इनका ही परिचय देंगे आपको, ताकि आप भी बड़े होकर भगतसिंह की तरह एक बहादुर और जांबांज सिपाही बनो, और अपने देश की रक्षा के लिए तन, मन धन से तैयार रहो, इन सबसे पहले एक अच्छा इंसान बनो |
भगत सिंह का जन्म २७ सितम्बर १९०७ को पंजाब के लायलपुर जिले के बंग गाँव, जो अब पाकिस्तान में है, हुआ था| इनके पिता का नाम सरदार किशन जी, तथा माता का नाम विद्यावती था| इनका पूरा परिवार देशभक्ति, समाजसेवा और स्वतंत्र देश के जज्बे में डूबा हुआ था| आपके चाचा जी श्री अजित सिंह २२ केसों में, सजाय- ऐ -काला पानी से बचने के लिए टर्की, ऑस्ट्रिया, जर्मनी, और ब्राजील जैसे देशों में भटकते रहे| १४ वर्ष की अवस्था में आपके कोमलमन को जालियांवाला बाग की घटना ने बड़ा ही आहत किया, वे उस जगह की मिटटी को इकठा करके घर लाये, और वो घटना सदैव ही उनके मानसपटल पर अंकित रहे, इसलिए उसे अपने पढ़ने वाली मेज पर रख दिया|
लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसिएशन नाम के एक क्रांतिकारी संगठन से जुड़ गए थे.
भगत सिंह ने भारत की आज़ादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी. इस संगठन का उद्देश्य 'सेवा,त्याग और पीड़ा झेल सकने वाले' नवयुवक तैयार करना था
![]() |
| ११ वर्ष की उम्र में |
|---|
भगत सिंह चाहते थे कि इसमें कोई खून-खराबा ना हो तथा अंग्रेजो तक उनकी 'आवाज़' पहुंचे। हालांकि उनके दल के सब लोग ऐसा ही नहीं सोचते थे पर अंत में सर्वसम्मति से भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त का नाम चुना गया। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार ८ अप्रैल, १९२९ को केन्द्रीय असेम्बली में इन दोनो ने एक निर्जन स्थान पर बम फेंक दिया। पूरा हॉल धुएँ से भर गया। वे चाहते तो भाग सकते थे पर उन्होंने पहले ही सोच रखा था कि उन्हें फ़ाँसी कबूल है। अतः उन्होंने भागने से मना कर दिया। बम फटने के बाद उन्होंने इन्कलाब-जिंदाबाद का नारा लगाना चालू कर दिया ।
जेल में भगत सिंह ने करीब २ साल गुजारे। इस दौरान वे कई क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़े रहे। उनका अध्ययन भी जारी रहा। उनके उस दौरान लिखे ख़त आज भी उनके विचारों का दर्पण हैं। इस दौरान उन्होंने कई तरह से पूंजीपतियों को अपना शत्रु बताया है। उन्होंने लिखा कि मजदूरों के उपर शोषण करने वाला एक भारतीय ही क्यों न हो वह उसका शत्रु है। उन्होंने जेल में अंग्रेज़ी में एक लेख भी लिखा जिसका शीर्षक था मैं नास्तिक क्यों हूँ ।
उसका कुछ हिस्सा जो हमे बेहद पसंद है, और तुम लोगों को भी अच्छा लगे यहाँ पर लिखा है ,
ध्यान से पढ़ना
![]() |
| कॉलेज के दिनों में |
|---|
वे हमें अपने प्रभुत्व में ईश्वर की सहायता से नहीं रखे हुए हैं बल्कि बंदूकों, राइफलों, बम और गोलियों, पुलिस और सेना के सहारे रखे हुए हैं.
यह हमारी ही उदासीनता है कि वे समाज के विरुद्ध सबसे निंदनीय अपराध-एक राष्ट्र का दूसरे राष्ट्र द्वारा अत्याचारपूर्ण शोषण-सफलतापूर्वक कर रहे हैं.
कहाँ है ईश्वर? वह क्या कर रहा है? क्या वह मनुष्य जाति के इन कष्टों का मज़ा ले रहा है? वह नीरो है, चंगेज़ है, तो उसका नाश हो.
मेरी स्थिति आज यही है. यह मेरा अहंकार नहीं है.
मेरे दोस्तों, यह मेरे सोचने का ही तरीका है जिसने मुझे नास्तिक बनाया है. मैं नहीं जानता कि ईश्वर में विश्वास और रोज़-बरोज़ की प्रार्थना-जिसे मैं मनुष्य का सबसे अधिक स्वार्थी और गिरा हुआ काम मानता हूँ-मेरे लिए सहायक सिद्घ होगी या मेरी स्थिति को और चौपट कर देगी.
मैंने उन नास्तिकों के बारे में पढ़ा है, जिन्होंने सभी विपदाओं का बहादुरी से सामना किया, अतः मैं भी एक मर्द की तरह फाँसी के फंदे की अंतिम घड़ी तक सिर ऊँचा किए खड़ा रहना चाहता हूँ.
देखना है कि मैं इस पर कितना खरा उतर पाता हूँ. मेरे एक दोस्त ने मुझे प्रार्थना करने को कहा.
जब मैंने उसे अपने नास्तिक होने की बात बतलाई तो उसने कहा, 'देख लेना, अपने अंतिम दिनों में तुम ईश्वर को मानने लगोगे.' मैंने कहा, 'नहीं प्रिय महोदय, ऐसा नहीं होगा. ऐसा करना मेरे लिए अपमानजनक तथा पराजय की बात होगी.
स्वार्थ के लिए मैं प्रार्थना नहीं करूँगा.' पाठकों और दोस्तो, क्या यह अहंकार है? अगर है, तो मैं इसे स्वीकार करता हूँ.
फ़ासी के पहले ३ मार्च को अपने भाई कुलतार को लिखे पत्र में उन्होंने लिखा था -
उसे यह फ़िक्र है हरदम तर्ज़-ए-ज़फ़ा (अन्याय) क्या है
हमें यह शौक है देखें सितम की इंतहा क्या है
दहर (दुनिया) से क्यों ख़फ़ा रहें,
चर्ख (आसमान) से क्यों ग़िला करें
सारा जहां अदु (दुश्मन) सही, आओ मुक़ाबला करें ।
इससे उनके शौर्य का अनुमान लगाया जा सकता
गांधी ने इस बातचीत के दौरान इरविन से यह भी कहा था कि अगर इन युवकों की फाँसी माफ़ कर दी जाएगी तो इन्होंने मुझसे वादा किया है कि ये भविष्य में कभी हिंसा का रास्ता नहीं अपनाएंगे. गांधी के इस कथन का भगत सिंह ने पूरी तरह से खंडन किया था.
असलियत तो यह है कि भगत सिंह हर हाल में फाँसी चढ़ना चाहते थे ताकि इससे प्रेरित होकर कई और क्रांतिकारी पैदा हों. वो कतई नहीं चाहते थे कि उनकी फाँसी रुकवाने का श्रेय गांधी को मिले क्योंकि उनका मानना था कि इससे क्रांतिकारी आंदोलन को नुकसान पहुँचता.
उन्होंने देश के लिए प्राण तो दिए पर किसी तथाकथित अंधे राष्ट्रवादी के रूप में नहीं बल्कि इसी भावना से कि उनके फाँसी पर चढ़ने से आज़ादी की लड़ाई को लाभ मिलता.
२३ मार्च १९३१ को शाम में करीब ७ बजकर ३३ मिनट पर इनको तथा इनके दो साथियों सुखदेव तथा राजगुरु को फाँसी दे दी गई । फांसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे । कहा जाता है कि जब जेल के अधिकारियों ने उन्हें सूचना दी कि उनके फाँसी का वक्त आ गया है तो उन्होंने कहा - 'रुको एक क्रांतिकारी दूसरे से मिल रहा है' । फिर एक मिनट के बाद किताब छत की ओर उछालकर उन्होंने कहा - 'चलो' |
फांसी पर जाते समय वे तीनों गा रहे थे -
दिल से निकलेगी न मरकर भी वतन की उल्फ़त
मेरी मिट्टी से भी खुश्बू-ए-वतन आएगी ।
आज उनके जन्मदिन के अवसर पर हम उनके इस अमूल्य योगदान को एक बार फिर से याद करे,और सोचे कि क्या कोई माँ, कोई देश फक्र क्योँ न करे ऐसे बलिदानी, क्रांतिकारी पर|
हम सलाम करते देश के इस सपूत को, और पूरा देश सलाम करता है इस राष्ट्र पुत्र को जो मात्र २३ साल कि उम्र में देश को, उसके नौजवानों को वो संदेश दे गया, जो भगतसिंह के बिना नामुमकिन था|
--नीलम मिश्रा

आपको ककड़ी-खाना पसंद है ना! पढ़िए शन्नो आंटी की कविता
सर्दी का मौसम शुरू होने वाला है। इस मौसम में हम क्या भूत भी ठिठुरने लगते हैं।
क्या आपने कभी सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान की सैर की है? क्या कहा?- नहीं?
कोई बात नहीं, चलिए हम लेकर चलते हैं।
क्या आप जानते हैं- लिखने से आँखें जल्दी नहीं थकती, पढ़ने से थक जाती हैं क्यों?
अपने मिसाइल मैन अब्दुल कलाम के बारे में रोचक बातें जानना चाहेंगे? बहुत आसान है। क्लिक कीजिए।
तस्वीरों में देखिए कि रोहिणी, नई दिल्ली के बच्चों ने गणतंत्र दिवस कैसे मनाया।
आपने बंदर और मगरमच्छ की कहानी सुनी होगी? क्या बोला! आपकी मम्मी ने नहीं सुनाई। कोई प्रॉब्लम नहीं। सीमा आंटी सुना रही हैं, वो भी कविता के रूप में।
एक बार क्या हुआ कि जंगल में एक बंदर ने दुकान खोली। क्या सोच रहे हैं? यही ना कि बंदर ने क्या-क्या बेचा होगा, कैसे-कैसे ग्राहक आये होंगे! हम भी यही सोच रहे हैं।
पहेलियों के साथ दिमागी कसरत करने का मन है? अरे वाह! आप तो बहुत बहुत बहादुर बच्चे निकले। ठीक है फिर बूझिए हमारी पहेलियाँ।

बच्चो,
मातृ दिवस (मदर्स डे) के अवसर हम आपके लिए लेकर आये हैं एक पिटारा, जिसमें माँ से जुड़ी कहानियाँ हैं, कविताएँ हैं, पेंटिंग हैं, और बहुत कुछ-
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
2 पाठकों का कहना है :
नीलम जी,
बहुत विस्तार से आपने बच्चों को भगत सिंह जी के बारे मैं बताया. आशा है हमारे बच्चे भी देश भक्ति का पथ पढेंगे. सस्नेह.
धन्यवाद शोभा जी |
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)