गौतम बुद्ध
गौतम बुद्ध
"सब जग जलता देखिया "
गौतमी नाम की एक स्त्री का इकलौता बेटा मर गया था वह शोक से व्याकुल होकर रोती हुई महात्मा बुद्ध के पास पहुंची और उनके चरणों में गिरकर बोली -हे भगवान् ! किसी तरह मेरे बेटे को जिला दो -कोई ऐसा मंत्र पढ़ दो कि मेरा लाल उठ बैठे
महात्मा बुद्ध ने उसके साथ सहानुभूति दिखाते हुए कहा -गौतमी !शोक न करो ,हम तुम्हारे मृत बालक को फिर जीवित कर देंगे ,लेकिन इसके लिए तुम किसी ऐसे से सरसों के कुछ दाने मांग लाओ जहाँ कभी किसी प्राणी कि म्रत्यु न हुई हो
गौतमी को इससे कुछ शान्ति मिली वह दौड़ती हुई गाँव में पहुँची और ऐसा घर ढूँढने लगी जहाँ किसी की मृत्यु न हुई हो बहुत ढूढने पर भी उसे ऐसा एक घर भी नही मिला वह हताश होकर लौट आई और महात्मा बुद्ध से बोली -देव ,ऐसा तो एक भी घर नही ,जहाँ कोई न कोई मरा न हो
तब बुद्ध बोले -गौतमी ! अब तुम यह मानकर संतोष करो कि केवल तुम्हारे ही ऊपर ऐसी ही विपत्ति नही पड़ी है ; सारे संसार में ऐसा ही होता है और लोग ऐसे दुःख को धैर्यपूर्वक सहते हैं
गौतमी को विश्वास हो गया कि अकेली वही नही ,सारी दुनिया ही दुखी है , - 'सब जग जलता देखिया
अपनी -अपनी आग ' इससे उसकी व्यथा बहुत कुछ शांत हो गई और वह चुपचाप अपने बच्चे को उठाकर चली
गई
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4 पाठकों का कहना है :
सच ही तो कहा उन्होंने ....
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
achhi seekh...
'सब जग जलता देखिया, अपनी-अपनी आग.' यह तो बुद्ध के समय का सच था. 'आज तो तेरे घर में आग तो मेरे घर में फाग' का जमाना है. वैसे इस दोहे की दूसरी पंक्ति जानने के उत्कंठा है.
aachary ji ,
ab is jamaane me haath kangan ko aarsi ki jaroorat pad jaayegi maaloom n tha .agli line aapke liye h.w hai .jaldi bataayiye
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