होली का त्यौहार
होली का त्यौहार ।
रंगों का उपहार ।
प्रकृति खिली है खूब ।
नरम नरम है दूब ।
भांत भांत के रूप।
भली लगे है धूप ।
गुझिया औ मिष्ठान ।
खूब बने पकवान ।
भूल गये सब बैर ।
अपने लगते गैर ।
पिचकारी की धार ।
पानी भर कर मार ।
रंगों की बौछार ।
मस्ती भरी फुहार ।
मीत बने हैं आज
खोल रहे हैं राज ।
नीला पीला लाल ।
चेहरों पे गुलाल ।
खूब छनी है भांग ।
बड़ों बड़ों का स्वांग ।
मस्ती से सब चूर ।
उछल कूद भरपूर ।
आज एक पहचान ।
रंगा रंग इनसान ।
कवि कुलवंत सिंह
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6 पाठकों का कहना है :
भूल गये सब बैर ।
अपने लगते गैर
kulwant ji ye panktiyaan galat hai ,
inhe phir se dekhiye
बहुत सुंदर ... होली है ही आखिर होली।
भूल गये सब बैर ।
अपने लगते गैर ।
दूसरी पंक्ति में एक अल्प विराम चाहिए. यदि अपने के बाद अल्प विराम हो तो अर्थ होगा की गैर भी अपने लग रहे हैं- यही कवि का आशय है.
अल्प विराम लगते के बाद हो तो अर्थ होगा कि अपने भी गैर लग रहे हैं- यह कवि का आशय नहीं है. विराम न होने से अर्थ ग्रहण करना में गलतफहमी हो सकती है.
आयी होली, आई होली।
रंग-बिरंगी आई होली।
मुन्नी आओ, चुन्नी आओ,
रंग भरी पिचकारी लाओ,
मिल-जुल कर खेलेंगे होली।
रंग-बिरंगी आई होली।।
मठरी खाओ, गुँजिया खाओ,
पीला-लाल गुलाल उड़ाओ,
मस्ती लेकर आई होली।
रंग-बिरंगी आई होली।।
रंगों की बौछार कहीं है,
ठण्डे जल की धार कहीं है,
भीग रही टोली की टोली।
रंग-बिरंगी आई होली।।
परसों विद्यालय जाना है,
होम-वर्क भी जँचवाना है,
मेहनत से पढ़ना हमजोली।
रंग-बिरंगी आई होली।।
yaa,
bhool gaye sab bair,
kise kahein ab gair
thanks dear friends! for your love..
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