चंदामामा
चंदा रहते हो किस देश ।
लगते हो तुम सदा विशेष ।
रहते हो तुम भले ही दूर ।
मुख पर रहता हर पल नूर ।
दिखते हो तुम शीतल शांत ।
सागर हो तुम्हे देख अशांत ।
बने सलोनी तुमसे रात ।
करते हैं सब तुमसे बात ।
घटते बढ़ते हो दिन रात ।
समझ न आये हमको बात ।
कभी चमकते बन कर थाल ।
गायब हो कर करो कमाल ।
शीतलता का देते दान ।
नही चाँदनी का उपमान ।
तारों को है तुमसे प्रीत ।
रात बिताते बन कर मीत ।
धवल चांदनी का आभास ।
मन में भरे हर्ष उल्लास ।
करवा चौथ भले हो ईद ।
देख तुम्हे मनते यह तीज ।
पूरा छिप जाते जिस रात ।
बन जाती वह काली रात ।
थकते नही तुम्हारे अंग ।
घूम घूम कर धरती संग ।
चंदा रहते हो किस देश ।
लगते हो तुम सदा विशेष ।
कवि कुलवंत सिंह
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3 पाठकों का कहना है :
यह बाल कविता पढ़ बचपन लौट आया
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
कवि जी बहुत हे प्यारी कविता है , इसे पढकर तो गाने को मन कर रहा है |
बंधु! मजा आ गया, इस रसमय रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई. एक-एक शब्द चुन-चुनकर आपने समूचा बिम्ब जीवंत कर दिया.
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