आज का ज़माना
आज का ज़माना बहुत खतरनाक है!!!!!
छोटे-बच्चों को,
बड़े-बूढों को,
हर इंसान को,
मारा जाता है,
फिरौती की नजर है
आज का ज़माना बहुत खतरनाक है!!!!!
लूट-पाट, मारपीट,
छाई पूरे वातावरण में,
उसको उठा लो "आते हुक्म,
बड़े -बड़े आदमखोरों से,
आज का ज़माना बहुत खतरनाक है!!!!!
घर से निकलने में डरती हूँ,
कैसे विश्वास अनजानों पर कर लूं,
डर है कि कहीं वह, बंद कर लें अपने,
काले बोरे में मुझे,
जहां सिर्फ अँधेरा ही अँधेरा है,
आज का ज़माना बहुत खतरनाक है!!!!!
पूछती हूँ एक छोटा सा प्रश्न,
क्या कोई है जो,
खोने न देगा मेरे (बचपन के)जश्न को,
मुझ जैसे कई बच्चों को,
यही है कश्मकश अपने मनों में,
कि मुझे एक शांति से भरपूर,
जिन्दगी जीनी है,
आज का ज़माना बहुत खतरनाक है!!!!!
पाखी मिश्रा
कुछ दिनों पूर्व एक १२ साल के बच्चे ,"मनन महाजन "की निर्मम हत्या कर दी थी उसके एक पडोसी ने जिसकी उम्र थी २० साल , मनन महाजन ,पाखी का सहपाठी था ,पूरी क्लास के बच्चे जिस भावना से गुजर रहें हैं ,शायद उसकी एक झलक पाखी के इन शब्दों में आपको महसूस हो ,teacher आज भी उसका नाम पुकारती है ,हाजिरी लेते समय
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7 पाठकों का कहना है :
हर बार अपना दर्द बताना नहीं अच्छा।
और जख्म हैं ऐसे कि छुपाना नहीं अच्छा।।
इक दिल की सदा पे फना हो जाता है ये जिस्म।
फिर किसने कह दिया कि जमाना नहीं अच्छा।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
आम तौर पे कविता पर केवल एक नजर डालता हूँ,,,,,
एक एक शब्द नहीं पढता,,मगर इस को पढ़ना शुरू किया तो एक एक शब्द पर ध्यान देने पर मजबूर होना पडा,,,,
क्यूकी दुसरे पैराग्राफ तक आते आते दुनिया का वीभत्स चेहरा एक दम सामने था और दिमाग में ये सवाल के ये रचना बाल उद्यान पर क्यूं,,,??
फिर से दोबारा ध्यान से पढ़ना शुरू किया ,,,सवाल और भी गहरा हो गया,,,
मगर जब नीचे नन्ही पाखी का नाम पढा तो हैरत हुई,,
ना केवल बच्ची के लेखन के बारे में बल्कि महसूस करने की क्षमता पर भी,,,
और अंत में कविता का कारण जाना तो बेहद दुःख हुआ,,,,,
पाखी बेटा ,
जो भी तुम्हारे सहपाठी के साथ हुआ भगवान् करे किसी के साथ ना हो,,,,
काश हमारी तरह तुम्हारे शब्द इन हैवानो पर भी जादू कर सकें,,,
बे-बात ही अक्सर जहां होते हैं कई क़त्ल
सच तुमने कहा है के ज़माना नहीं अच्छा
घर से निकलने में डरती हूँ ,
कैसे विश्वास अनजानों पर कर लूं ,
डर है कि कहीं वह ,बंद कर लें अपने ,
काले बोरे में मुझे ,
जहां सिर्फ अँधेरा ही अँधेरा है ,
जमाने का वीभत्स रूप और बाल-मन की पीडा
बहुत ही सशक्त शब्दों से सृजित हुई है -
बहुत ही दुखद घटना, उसी दिन पाखी ने बताया था
सच में जमाना खतरनाक है परंतु जमाने के डर से यदि घर में बैठे तो जमाना और खतरनाक होता चला जायेगा..
जमा ना हो जमाना अब खौफी बन जमाने में
लगे चाहे वक्त कितना, अक्स को आजमाने में
मनु जी की भान्ति मुझे भी कविता पढकर यही लगा कि यह कविता बाल-उद्यान पर क्यों |
लेकिन एक बच्ची का नाम और घटना जानकर कहने को कुछ शब्द ही नहीं है |अन्दर से
एक टीस उठती है जब बडों के गुनाहों का दण्ड मासूमों को भुगतना पडता है |
पाखी बिटिया! यही है दुनिया का दस्तूर.
हर दीपक के तले है, अँधियारा भरपूर.
अँधियारा भरपूर मगर उजियारे की जय.
बाद अमावस के फिर सूरज उगे निर्भय.
हार मानो, लडो, कहे चाचा की चिठिया.
जय पा अत्याचार मिटाओ, पाखी बिटिया.
जब मैं छोटा हुआ करता था, मुझे कत्ल, बम ब्लास्ट वगैरह-वगैरह इन सबके बारे में कुछ नहीं पता था। आज के समाज में बच्चों का बचपन खत्म हो गया है। महज १२ वर्ष की बच्ची ऐसी गम्भीर कविता लिख डालती है!!! ये सचमुच हैरान कर देती है बात....बच्चों के मन में छोटी सी छोटी बात गहरा असर डालती है... ज़माना सचमुच बहुत खतरनाक है!!!
पाखी के साथ साथ हम सब को ये सुंदर सन्देश देने के लिए धन्यवाद आचार्य,,,
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