महात्मा ईसा " बुरा जो देखन मै चला"
महात्मा ईसा
" बुरा जो देखन मै चला"
एक बार कुछ लोग एक स्त्री को खरी -खोटी सुनाते हुए ,पकड़कर ईसा मसीह के सामने ले आये |उन्होंने उस स्त्री की खूब बुराई करके ईसा से उसको कठोर दंड देने को
प्रार्थना की |इसके लिए सभी समाज सुधारक बड़े व्यग्र थे |
ईसा मसीह कुछ देर चुप रहे |उन्होंने एक बार स्त्री को देखा |वह लज्जा से सिर झुकाए चुप चाप कड़ी थी |फिर उन समाजसुधारकों को देखा ;उनमे से हर एक अपने को बहुत भला साबित करने के लिए बढ़चढ़ कर उस स्त्री की बुराई कर रहा था |
ईसा पर उनकी उछल-कूद का कोई प्रभाव नहीं पड़ा |वे गंभीर होकर बोले -यदि यह सचमुच ऐसी अपराधिनी है तो मेरी राय में इसको पत्थरों से मारना चाहिए |
समाज -सुधारकों ने एक स्वर में कहा -अवश्य -अवश्य यह यह दुष्ट औरत इसी के योग्य है |
ईसा फिर बोले -ठीक है ,आप लोग इसे पत्थरों से मारिये ; लेकिन पहला पत्थर वही फेंके जो स्वभाव चरित्र से बिलकुल निर्दोष हो |कोई दोषी किसी को दूसरे दोषी को दंड देने का अधिकारी नहीं है |अपने दिलों को सचाई से टटोलकर तब आगे बढिए |
ईसा के आगे सबने शुद्ध हद्रय से स्वयम अपने -अपने स्वभाव -चरित्र की छानबीन की |
उस समय हर एक को इस तरह का अनुभव हुआ :
बुरा जो देखन मै चला ,बुरा न दीखा कोय |
जो दिल खोजा आपना ,मुझ सा बुरा न कोय ||
सभी दूषक -विदूषक जैसे दिखाई पड़ने लगे | उनमे से किसी ने भी पत्थर मारने का साहस नहीं किया |
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6 पाठकों का कहना है :
बहुत सुन्दर प्रसंग याद दिलाया है। आत्मविश्लेषण अवश्य करना चाहिए।
बहुत खूबसूरती सी आपने याद दिलाया है
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
नीलम जी यह किस्सा सुना कर तो आपने हमें इसे कथा-काव्य रूप में लिखने पर मजबूर कर दिया |
कमेंट पेज पर लगाने के लिए क्षमा चाहुंगी |
एक बार की सुनो कहानी
बडे-बडों की थी नादानी
पकड के ले आए इक नारी
सर झुका कर खडी बेचारी
था उसका छोटा अपराध
करने लगे बडा विवाद
सारे लोग ही जाने माने
लगे उसका परिचय करवाने
कुल्टा कोई व्यभिचारी बताए
अपनी अपनी बात सुनाए
ईसा यूँ बोले सब सुनकर
इस को सारे मारो पत्थर
पर पहला पत्थर वो मारे
जो यह अपने मन में विचारे
किया न उसने कभी भी पाप
तभी मिटेगा इसका शाप
सुनकर कोई न आगे आया
सबने अपना सर झुकाया
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बच्चो तुम भी बात समझना
कभी किसी को बुरा न कहना
पहले जो खुद को पहिचाने
तो न कभी मिलेंगे ताने
इंसा नहीं बस बुरी बुराई
मारो उसको यही खुदाई
seema ji ,
aapki is pratibha ke to hum kab se kaayal hain .
seema ji bahut bahut aabhar aisa comment dene ke liye
बच्चों,
नमस्ते,
आज में तुम्हे एक मुहावरा उसका अर्थ और उदहारण बताउंगा,
मुहावरा है : "सोने पे सुहागा" |
अर्थ : अच्छाई में और अच्छी बात जुड़ जाना |
उदाहरण : नीलमजी द्वारा प्रस्तुत सुन्दर बोध कथा उस पर सीमाजी की काव्यात्मक टिपण्णी |
*
विनय के जोशी
यह प्रेरक प्रसंग किसी चलचित्र में भी लिया गया है किन्तु नाटकीयता का शिकार हो गया. इस पर कमी रह गयी मनु जी के रेखा चित्र की. नीलम जी और सीमा जी को साधुवाद
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