अभिमानी साँड
अभिमानी साँड
खिले थे रंग-बिरंगे फूल
छोटा सा इक गाँव भी पास
ज्यों कुदरत का घर हो खास
सारे वहां पे मिलकर रहते
और सबको ही अपना कहते
हर सुख-दुख के सारे साथी
क्या नर, पशु क्या पक्षी जाति
न कोई छोटा-बडा वहां पर
ज्यों उतरा हो स्वर्ग धरा पर
नहीं किसी में कोई अभिमान
यही वहां की थी पहचान
साँड एक आया इक बार
मिल गई उसको वहां बहार
लिया सबने उसे अपना मान
साँड में भर गया अभिमान
समझने लगा वो खुद को महान
बोले मै हूँ गुणों की खान
सारे उसकी बातें सुनते
पर सुनकर भी चुप ही रहते
समझा साँड ये सब कमजोर
मुझ सा नहीं है इनमें जोर
कर गया वो सब सीमा पार
करने लगा सब पर प्रहार
जो भी उसके सामने आता
उसको सींगों पर उठाता
पटक के फिर लातों से मारे
दुखी हो गए उससे सारे
मिलकर सबने किया विचार
साँड मे भरा है बस अहंकार
मान जो उसका करदें चूर
नहीं करेगा कार्य क्रूर
मिलकर गए साँड के पास
बोले तुम तो सबसे खास
पर यहां पर इक बडी मुसीबत
नदी किनारे है जो पर्वत
रास्ता रोके सबका खडा है
पत्थर बन मार्ग में अडा है
चढनी पडती है सबको चढाई
बना दिया है गाँव को खाई
पर न किसी में इतनी हिम्मत
हटा सके मार्ग से पर्वत
तुम ही एक यहां पर वीर
मिटाओ समस्या अति गम्भीर
जो तुम उस पर्वत को हटाओ
सबके राजा तुम बन जाओ
सुनकर साँड तो मन में फूला
अपनी वो औकात भी भूला
चला हटाने पर्वत राज
बनेगा सबका राजा आज
गुस्से में जा सर टकराया
बडे से पत्थर को गिराया
गिरा वो पत्थर सिर पर आकर
मुडा साँड अब मुँह की खाकर
घायल साँड हुआ बेहोश
ठण्डा पड गया सारा जोश
सब ने फिर भी की भलाई
साँड को फिर से होश दिलाई
मुश्किल से बचाई जान
साँड का टूट गया अभिमान
किया साँड ने पश्चाताप
नहीं करेगा कभी भी पाप
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बच्चो तुम भी बात समझना
अपने ऊपर मान न करना
जो करते झूठा अभिमान
नहीं बनते वो कभी महान
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आदरणीय निखिल आनन्द गिरी जी और नीलम जी आपका विशेष धन्यवाद ,एक बालकथा का आईडिया सुझाने के लिए और आपका आईडिया चुराने के लिए क्षमा भी चाहती हूँ शैलेश जी अब आपको चिन्ता करने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि हमने उस साँड को उसकी औकात याद दिला दी है......:)
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3 पाठकों का कहना है :
सीमा जी! फिर आपने, सचमुच किया कमाल.
काव्य-कथा के क्षेत्र में, दूजी नहीं मिसाल.
शत-शत वंदन आपका, लिखते रहिये नित्य.
'सलिल' मुग्ध होकर पढ़े, कविता-कथा अनित्य.
शानदार कविता लगी,,,,,,एक शिकायत भी है आपसे,,,
जिस आइडिये पर एपी लिख रही थी,,,,यदि एक बार सूचित क्या होता तो एक कार्टून हमें भी शैलेश जी का बनाने का मौका मिल जता,,,होली पर तो कोई आईडिया ही नहीं आया,,,कुछ समयाभाव,,
तो इस बार बॉस बच निकले ,,,,अगली बार ऐसा कोई आईडिया आये तो ,,,,,,,
कविता वाकई अछि लगी,,,
ye kya shailesh ji ko chaaro khaane chitt kar diya ,hhahahahahha
kahaani kavya behad pasand aaya,achchi seekh bhi deti hai ye kaavya katha
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