Friday, November 5, 2010

आई दिवाली

तो हर साल की तरह दीपावली या कहो दिवाली का त्योहार फिर से आया है. दीपावली का मतलब होता है ''रोशनी की कतारें''. हिन्दू लोगों में इसका बहुत महत्व है. सब इसे बहुत उत्साह और उमंग से हर साल मनाते हैं. इस बार भी फिर वही धूम-धाम होगी, नयी चीजें और कपड़े खरीदे जायेंगे, लक्ष्मी पूजन होगा, अनगिन दिये जलाये जायेंगे, तरह-तरह की मिठाइयाँ खरीदना, आपस में मिलना-जुलना और साथ में खाना-पीना होगा. तो क्यों न सब बच्चों को दिवाली पर कहानी भी फिर से सुनाई जाये..क्या कहते हैं आप लोग...सुनोगे ? क्या कहा.. हाँ? तो फिर तैयार हो जाओ.

तो आप सबको पहले से ही पता है कि दिवाली का मतलब होता है ''रोशनी का त्योहार''. प्राचीन हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से दिवाली के दिन से नये साल का आरंभ होता है और यह कार्तिक महीने में मनाई जाती है. अंग्रेजी महीने के हिसाब से ये अक्तूबर या नबम्बर में पड़ती है. ये मुख्यतया दो कारणों से मनाई जाती है: 1. माँ लक्ष्मी जी का पूजन 2. अच्छाई की बुराई पर जीत.

लोग इस अवसर पर कई तरह की कहानियाँ सुनते और सुनाते हैं कि किस तरह से देवी देवताओं ने राक्षसों और असुरों को हराया था..लेकिन जो सबसे प्रसिद्ध व प्रचलित कहानी है वो सुना रही हूँ कि त्रेता युग में राम जो रानी कौशल्या व राजा दशरथ के पुत्र थे उन्हें उनकी सौतेली माँ कैकेयी ने 14 के लिये जंगल में रहने भेज दिया था क्योंकि वह नहीं चाहती थीं कि राम को राजा बनाया जाये. एक दिन लंका के राजा रावन ने सीता माता का धोखे से अपहरण कर लिया. तब राम अपने मित्र हनुमान व तमाम वानर और भालुओं की सेना के साथ लंका पहुँचे और वहाँ रावन और उसकी सेना के साथ घमासान युद्ध किया जिसमें रावन राम के हाथों छोड़ा हुआ सुनहरा तीर लगने से मारा गया. और राम व सीता वापस अयोध्या लौट आये. लेकिन उस दिन घोर अँधेरी रात थी तो अयोध्या वासियों ने अपने घरों के बाहर तमाम दिये जला कर रखे ताकि राम, लक्ष्मण और सीता जी को घर का रास्ता ढंग से दिख सके. और सारी प्रजा ने उस दिन राम के वापस आने की खुशी में नाच-गाना किया और फुलझडियाँ जला कर अपनी खुशी प्रकट की.

आज को भी दिवाली मनाने की वही प्रथा चली आ रही है. सब लोग परिवार के संग मिलकर अपने घरों में दिवाली मनाते हैं. इस दिन स्कूल व आफिस बंद रहते हैं. और आप लोग तो जानते ही हैं कि आज के दिन कैसी बढ़िया-बढ़िया स्पेशल मिठाइयाँ हलवाई लोग बनाते हैं और उन्हें खरीदने के लिये दूकानों में ग्राहकों की बड़ी भीड़ लगी रहती है सारा दिन. सड़कों और दूकानों के बाहर खूब लाइट लगाकर रोशनी की जाती है, मंदिरों में भी भक्तों के द्वारा खूब प्रार्थना, पूजा और नाच-गाना होता है. लोग घरों को साफ-सुथरा करके सजाते हैं, अपने घरों के आगे अपने हाथों से रंगोली बनाते हैं..जो चावल और आटे से बनाई जाती है..बीच में उसके कमल का फूल भी बनाते हैं जो लक्ष्मी जी का चिन्ह है, ताकि माँ लक्ष्मी जो समृद्धि व धन की देवी हैं, घर में प्रवेश कर सकें. मंदिरों में इनकी मूर्ति के चार हाथों में से दो में कमल के फूल होते हैं जो पावनता का प्रतीक हैं. तीसरे हाथ से वरदान देती हैं और चौथे हाथ में से सिक्के गिरते हुये दिखायी देते हैं...जो धन का प्रतीक हैं. शाम के समय सब लोग तैयार होते हैं और अपने-अपने घरों में परिवारीजन मिलकर गणेश और लक्ष्मी की पूजा करते हैं. दिये जलाते हैं और घर बाहर व छतों को उनसे सजाते हैं. फिर मिठाइयाँ व अन्य पकवान आदि खाते हैं. आपस में अपनी हैसियत के हिसाब से लोग कपड़ों, गहनों, पैसों व मिठाइयों आदि का उपहार के रूप में आदान-प्रदान करते हैं.

व्यापारियों के लिये आज से नये आर्थिक वर्ष का आरंभ होता है, तमाम लोग ज्योतिषियों से अपने भविष्य के बारे में पूछते हैं. और इस दिन सब लोग लड़ाई-झगड़ों को भूल-भाल कर आपस में एकता कायम करने की कोशिश करते हैं. तो ये रही दिवाली पर कहानी. कैसी लगी इसे बताना ना भूलना. और अब आप सब लोग भी दिवाली की तैयारी में जुट जाइये या शायद पहले से ही जुटे होंगे. और खूब हँसी-खुशी व धमाके से मनाइये.. अरे हाँ, धमाके से याद आया कि अगर आप लोग फुलझड़ी आदि जलाकर धमाका करना चाहते हैं तो बड़ों की देख-रेख में करियेगा व बहुत सावधानी बरतियेगा.

तो अब चलती हूँ. आप सभी को मेरा प्यार व ढेरों शुभकामनायें... ये पर्व सभी को मंगलमय हो.

-शन्नो अग्रवाल


Wednesday, September 15, 2010

दस एकम दस


"दस एकम दस"

दस एकम दस,

दस दूनी बीस,

खुद को समझना मत बच्चो,

किसी से भी उन्नीस ।


दस तीए तीस,

दस चौके चालीस,

कभी न करना बेइमानी तुम,

रहना हरदम खालिस ।


दस पंजे पचास,

दस छेके साठ,

पढते रहना हरदम बच्चो,

सदाचार के पाठ ।


दस सत्ते सत्तर,

दस अट्ठे अस्सी,

जीवन भर तुम खींच के रखना,

चंचल मन की रस्सी ।


दस नामे नब्बे,

दस दाये सौ,

मेहनत से है मिलता जो भी,

कभी न देना खो ।


अनिल चड्ढा



Monday, September 13, 2010

चिड़ियों का अलार्म

बच्चों, हम दिन प्रतिदिन प्राकृतिक वातावरण से दूर होते जा रहे हैं और गैजेटस (Gadgets) की गिरफ्त में आते जा रहे हैं। यहां तक कि सुबह उठने के लिए भी हम अलार्म क्लॉक के गुलाम हो चले हैं। जबकि एक समय था जब हम चिडियों की चहचहाहट को सुनकर ही उठ जाया करते थे। उस अलार्म को याद करके मैंने एक नन्हीं सी कविता लिखी है। आप भी सुनिए और बताइए कि कैसी लगी आपको।  


सुबह-सुबह ही मेरी बगिया
चिड़ियों से भर जाती है
उनके चीं-चीं के अलार्म से
नींद मेरी खुल जाती है।

वे कहतीं हैं उठो उठो
अब हुआ सबेरा जागो
उठ कर अपना काम करो
झटपट आलस को त्‍यागो।

मूल्यवान जो समय गंवा कर
बहुत देर तक सोते
प्‍यारे बच्चों जीवन में वह
अपना सब कुछ खोते।

शरद तैलंग


Monday, September 6, 2010

पप्पू की जिद




पप्पू की जिद
सुबह सवेरे पप्पूजी
बागीचे में जब उठ कर आये,
देख के घोंसला चिड़िया का
ख़ुशी से थे चीखे चिल्लाये,
ताली मारते, उछ्लते-कूदते
दौड़ के फिर वो घर में आये,
बड़े जोश में मम्मी जी को
बागीचे में वो खींच के लाये
आओ मम्मी आओ देखो
नन्हे-नन्हे प्यारे बच्चे
पंख हैं उनके मखमल जैसे
वर्षा में हों भीगे जैसे
पर हम इनको प्यार करें तो
चिड़िया चूँ-चूँ शोर मचाये
तुम्ही बताओ कैसे इनको
खेलने को हम घर में लायें
मम्मी बोली प्यारे बच्चो
जैसे तुम हो छोटे बच्चे
अपनी माँ के प्यारे-दुलारे
वैसे ही चिड़िया को भी हैं
अपने बच्चे सबसे प्यारे
तुमको गर कोई चोट लगे तो
मम्मी जी का दिल घबराये
वैसे ही बच्चो को लेकर
चिड़िया भी है शोर मचाये
अभी तो ये उड़ना न जानें
न ही ये खाना भी जानें
तभी तो दूर दूर से ला कर
इनकी माँ इन्हें खाना खिलाये
अगर किसी की भूल से बच्चो
घोंसले से ये नीचे गिर जाएँ
तो बिल्ली चुपके से आकर
इनको अपना शिकार बनाये
प्यार से मम्मी जी ने था जब
पप्पू जी को ये समझाया
चिड़िया का यूँ शोर मचाना
तब था उसकी समझ में आया
किसी भी पक्षी को फिर ले कर
कभी नहीं वो जिद मेआया

--
डा0अनिल चड्डा,
निदेशक,
दूरसंचार विभाग,
संचार भवन, नई दिल्ली
09013131345,
09868909673


Sunday, September 5, 2010

मास्टर जी की आ गई चिट्ठी

प्यारे बच्चों,

आज शिक्षक दिवस है। आपको तो पहले बता ही चुके हैं हम कि आज का दिन हमारे देश के सर्वश्रेष्ठ शिक्षक, दार्शनिक और राजनीतिज्ञ डॉ सर्वपल्ली राधकृष्णन के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाते हैं। आप को बहुत कुछ पहले से ही पता है, तो आज खूब मौज-मस्ती कीजिये और आनंद उठाइये इस गाने का जो हमें भी बहुत पसंद है।


Read: Primary ka Master


Wednesday, September 1, 2010

जन्माष्टमी

बच्चों, आज जन्माष्टमी है..भगवान् कृष्ण का जन्मदिन. आप लोगों को इसके उपलक्ष्य में मेरी अनेकों शुभकामनायें. तो आओ, आप सबको मैं उनके जन्म के बारे में एक कहानी भी सुनाती हूँ...

करीब 5००० साल पहले मथुरा में उग्रसेन नाम के एक राजा राज्य करते थे. उनकी प्रजा उन्हें बहुत चाहती थी और सम्मान देती थी. राजा के दो बच्चे थे..कंस और देवकी. उनका लालन-पालन बहुत अच्छी तरह से किया गया..दोनों बच्चे बड़े हुये और समय के साथ उनकी समझ में भी फरक आया. कंस ने अपने पिता को जेल में डाल कर गद्दी हासिल कर ली और राज्य करने लगे. वह अपनी बहिन देवकी को बहुत प्यार करते थे. और कंस ने देवकी का ब्याह अपनी सेना में वासुदेव नाम के व्यक्ति से कर दिया. लेकिन कंस को देवकी की शादी वाले दिन पता चला कि उनकी बहिन की आठवीं संतान से उनकी मौत होगी. तो कंस ने देवकी को मारने की सोची. किन्तु वह अपनी बहिन को बहुत चाहते थे इसलिये मारने की वजाय उन्होंने देवकी और वासुदेव दोनों को जेल में डाल दिया. वहाँ देवकी की कई संतानें हुयीं और सातवीं को वासुदेव की दूसरी पत्नी रोहिनी की कोख से जन्म लेना पड़ा...इसीलिए जब कृष्ण जी का जन्म हुआ तो उनको सातवीं संतान करके बताया गया. जिस रात उनका जन्म हुआ था उस रात बहुत जोरों की आँधी चल रही थी और पानी बरस रहा था..भयंकर बिजली कौंध रही थी..जैसे कि कुछ अनर्थ होने वाला हो. जेल के सारे रक्षक सोये हुये थे उस समय और जेल के सब दरवाज़े अपने आप ही खुल गये..आँधी-तूफान के बीच बासुदेव कृष्ण को एक कम्बल में लपेटकर और एक टोकरी में रख कर चुपचाप गोकुल के लिये रवाना हुये जहाँ उनके मित्र नंद और उनकी पत्नी यशोदा रहते थे..उधर यशोदा और नंद के यहाँ एक कन्या का जन्म हुआ. और जब वह यमुना नदी पार कर रहे थे तो पानी का बेग ऊपर उठा उसी समय वासुदेव की गोद में से कृष्ण का पैर बाहर निकला और पानी में लगा तभी यमुना का पानी दो भागों में बंटकर आगे बढ़ने का रास्ता बन गया.बासुदेव ने उसी समय उस बच्चे की अदभुत शक्ति को पहचान लिया. वह फिर गोकुल पहुँचे और कंस की चाल की सब कहानी नंद और यशोदा को बताई. नन्द और यशोदा ने कृष्ण को गोद लेकर अपनी बेटी को बासुदेव को सौंप दिया जिसे उन्होंने मथुरा वापस आकर जेल में कंस को अपनी आठवीं संतान कहकर सौंप दिया और कंस ने उस कन्या को मार दिया. सुना जाता है की मरने के समय वह कन्या हवा में एक सन्देश छोड़कर विलीन हो गयी कि '' कंस को मारने के लिये आठवीं संतान गोकुल में पल रही है.'' लेकिन कंस ने सोचा की जिससे उनकी जान को खतरा था वह राह का काँटा हमेशा के लिये दूर हो गया है और अब उन्हें कोई नहीं मार पायेगा. कृष्ण जी नंद और यशोदा के यहाँ पले और बड़े हुये और उन्हें ही हमेशा अपना माता-पिता समझा. और बाद में उन्होंने अपने मामा कंस का बध किया और मथुरा की प्रजा को उनके अत्याचार से बचा लिया.
जन्माष्टमी सावन के आठवें दिन पूर्णिमा वाले दिन मनाई जाती है क्योंकि इसी रात ही कृष्ण जी का जन्म हुआ था. हर जगह मंदिरों में बहुत बड़ा उत्सव होता है..सारा दिन भजन-कीर्तन होता रहता है. कान्हा की छोटी सी मूर्ति बनाकर रंग-बिरंगे कपड़ों में सजाकर एक सोने के पलना में रखकर झुलाई जाती है. घी व दूध से बनी मिठाइयाँ खायी व बाँटी जाती हैं..घरों में लोग व्रत रखते हैं..कुछ लोग तो सारा दिन पानी भी नहीं पीते जिसे '' निर्जला व्रत '' बोलते हैं और रात के 12 बजे के बाद ही कुछ खाकर व्रत को तोड़ते हैं और कुछ लोग दिन में फलाहार खा लेते हैं..लेकिन नमक व अन्न नहीं खाया जाता इस दिन. दही और माखन कन्हैया की पसंद की चीज़ें थीं जिन पर वह कहीं भी मौका पड़ने पर चुरा कर उनपर हाथ साफ़ किया करते थे..और बेशरम बनकर सबकी डांट खाते रहते थे. तो इस दिन कई जगहों में लोग एक मटकी में दही, शहद और फल भर कर ऊँचे पर टाँगते हैं और फिर कोई व्यक्ति कान्हा की नक़ल करते हुये उस मटकी को ऊपर पहुँच कर फोड़ता है. कुछ लोगों का विश्वास है कि उस टूटी हुई मटकी का टुकड़ा अगर घर में रखो तो वह बुरी बातों से रक्षा करता है.
कृष्ण जी के बारे में जगह-जगह रास लीला होती है और झाँकी दिखाई जाती है..जिसमें मुख्यतया पाँच सीन दिखाये जाते हैं : 1. कन्हैया के जन्म का समय 2. वासुदेव का उन्हें लेकर यमुना नदी पार करते हुये 3. वासुदेव का जेल में वापस आना 4. यशोदा की बेटी की हत्या 5. कृष्ण जी का पालने में झूलना.
कुछ घरों में जन्माष्टमी का उत्सव कई दिनों तक चलता रहता है.

शन्नो अग्रवाल


Thursday, August 26, 2010

चित्र प्रदर्शनीः लखनऊ में हुई चित्रकला प्रतियोगिता से

उत्तर प्रदेश सचिवालय कालोनी, महानगर, लखनऊ में सेक्रेटरियेट वेलफेयर एसोसिएशन के तत्वावधान में आयोजित स्वतन्त्रता दिवस की 63वीं जयन्ती पर आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों के अतिरिक्त चित्रकला की प्रतियोगिता भी रखी गई थी जिसे कुल तीन श्रेणियों में बाँटा गया।
श्रेणी एक में कक्षा-नर्सरी से कक्षा-2 तक, श्रेणी दो में कक्षा-3 से कक्षा-5 तक तथा श्रेणी तीन में कक्षा-6 से कक्षा-12 तक के विद्यार्थियों सम्मिलित किया गया। तथा प्रत्येक श्रेणी में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय पुरस्कार रखे गये। इसके अतिरिक्त कुछ विशिष्ट तथा अन्य को सांत्वना पुरस्कार प्रदान किए गए।

पुरस्कृत चित्रों का विवरण निम्न प्रकार से है:-

श्रेणी-एक विषय- स्वतंत्रता दिवस

प्रथम- यशांशु सिंह कक्षा-2,


द्वितीय- शारिक़ कक्षा-2,


तृतीय- लव कक्षा-2



श्रेणी-दो विषय-पर्यावरण

प्रथम- सूर्यांश सिंह कक्षा-5,


द्वितीय- अंशिता श्रीवास्तव कक्षा-5,


तृतीय- शिखर सिंह कक्षा-3



श्रेणी-तीन विषय- जय जवान-जय किसान

प्रथम- गौरव जायसवाल कक्षा-9,


द्वितीय- अपर्णा पाल कक्षा-12,


तृतीय- शुभ्रा सिंह कक्षा-12


श्रेणी-अन्य

विशेष पुरुस्कार- सौम्या सिंह कक्षा-2,


सांत्वना पुरुस्कार-

सलोनी कक्षा-1,


समृद्धि कक्षा-3,


जय कक्षा-3,


प्राची कक्षा-4,


समर्थ प्रधान कक्षा-5,


कार्तिकेय कक्षा-5,


आयुषी कक्षा-5,


श्रुति कक्षा-7





प्रस्तुति-
देवेन्द्र सिंह चौहान
सचिव, सेक्रेटरियेट एवेन्यू वेलफेयर एसोसिएशन
सचिवालय कालोनी, महानगर, लखनऊ एवं
अपर निजी सचिव, उत्तर प्रदेश सचिवालय, लखनऊ
दूरभाष 0522 - 2238942 (कार्यालय), 0522 - 2238309 (फैक्स)
मोबाइल - 9454410099


Monday, August 23, 2010

रक्षाबंधन



प्यारे बच्चों ,

आज हम आपके लिए लाये हैं ,एक बहन के कुछ भाव इन शब्दों के माध्यम से जो हम सबको याद दिलाते हैं ,भाईओं को अपनी बहन की ,और बहनों को अपने भाइयों की ,आईये हम सब कुछ न कुछ तोहफा दे ,वो कुछ भी हो सकता है ,दूर बैठी अपनी बहन को एक प्यारा सा सन्देश ही ..........................


एक अनूठा पर्व प्रीत का मन भाया रक्षाबंधन
याद दिलाने स्नेह जगाने फिर आया रक्षाबंधन !


रक्षाबंधन नीड़ में पले सहोदर एक सुनी थी मीठी लोरी
मात्र नहीं है कच्चा धागा प्रेम की यह पक्की डोरी

अंतर के दर्पण में कितने रंग बिरंगे धागे आते
बरसों बरस बीतते जाते नन्हें हाथ बड़े हो जाते !

बचपन के वे खेल-खिलौने छूटा वह रूठना मनाना
नए-नए परिवारों से जुड़, अपने निज परिवार बसाना

बहन करे प्रार्थना दिल से, हो रक्षा उसके भाई की
स्वस्थ रहे, सानंद रहे, है पुकार उसकी ममता की !

भाई देता वचन हृदय से सुख-दुःख में है साथ सदा
कभी भरोसा टूटेगा ना स्मरण दिलाता रहे सदा

राखी साक्षी है वर्षों की सदा जगायेगी यह प्रीत
बांटे ढेर दुआएँ हर दिल उत्सव की अनोखी रीत


अनिता निहलानी

(चित्र गूगल से साभार )











Wednesday, August 18, 2010

रंग- बिरंगे, सुन्दर -सुन्दर चित्र

प्यारे बच्चों ,
आज हम लाये हैं ,आप के लिए रंग- बिरंगे ,सुन्दर -सुन्दर चित्र जिसे बनाया है ,आपकी ही तरह प्यारी सी मलक मेहता ने ,देखो और जी भर के तारीफ़ करो ,कोई कंजूसी नहीं ........................तारीफ़ करने में .

मलक मेहता

जन्मतिथि- 9 मार्च 2001
कक्षा- 4
अभी-अभी मलक ने चौथीं कक्षा में प्रवेश लिया है। डीपीएस स्कूल, सूरत की छात्रा मलक सरोज ख़ान से नृत्य-विद्या की ट्रेनिंग ले चुके प्रशिक्षक से डांस सीख रही हैं। किसी समय में मलक को लॉन टेनिस का भी शौक था, लेकिन इस दिनों नृत्य का जुनून है। चित्रकारी से विशेष लगाव है।








Sunday, August 15, 2010

आजाद देश के वासी

प्यारे-प्यारे बच्चो, नमस्कार!
आप सभी को पता है कि 15 अगस्त आजादी दिवस है..तो आप लोग अपने दोस्तों व परिवार के संग मिलकर खूब धूम-धाम से इस दिन पर उत्सव मनाना और हमेशा अपने देश का हित सोचना..हमारे देश को बहुत मुश्किल से आजादी मिली थी..इसकी हमेशा लाज रखना और रक्षा करना आप सभी का परम कर्तव्य है... समझ गये ना? और देखो, मैंने आप लोगों के लिये ये कविता भी लिखी है...इसको पढ़ते हुये मुझे भी याद कर लेना..आप सभी लोगों को स्वतंत्रता दिवस की बहुत बधाई और मेरा ढेर सारा प्यार. अच्छा चलो, अब कविता पढ़ो और अपनी आंटी..यानी मुझे बताना मत भूलना कि आपको ये कविता कैसी लगी..ठीक..? जल्दी ही फिर मिलूँगी...तब तक के लिये बाईईई...

आजाद देश के वासी

बच्चो आओ तुम्हे सुनाऊँ
इस देश की एक कहानी
आजादी को पाने को
लोगों ने दी थी क़ुरबानी
भारत है आजाद हमारा
और तुम इस देश के वासी
गाँधी, सुभाष और लोग भी
थे आजादी के अभिलाषी
उनके संग न जाने कितने
लोगों ने भी त्याग किया था
अंग्रेजों के चंगुल से फिर
अपने देश को छुड़ा लिया था
थे गुलाम सब लोग यहाँ
और पराधीन था देश
जंजीरों से जकड़ा हर कोई
फरक हुआ परिवेश
हर किसी की जुबान पर
था स्वतंत्रता का नारा
तब भारत माता के लालों ने
अंग्रेजों को ललकारा
अब तुम सब बच्चे मिलकर
करना अच्छे-अच्छे काम
अच्छी बातों को ही अपनाना
करना देश का ऊँचा नाम
अनहित की न कभी सोचना
ना करना दुखी किसी को
है भविष्य तुम्ही से इसका
ना अब देना इसे किसी को.

-शन्नो अग्रवाल


Saturday, August 14, 2010

आजाद देश के पंछी हम


प्यारे बच्चों, तो आजादी के दिवस पर आप सबकी स्कूल जाने से छुट्टी है तो मौज करो और खुशियाँ मनाओ लेकिन अपनी आजादी का फायदा कभी इस तरह ना उठाना कि किसी को दुख मिले या तुम्हारे अपने जीवन में परेशानियाँ आयें..हमेशा कोमल भावनायें व नेक इरादों को अपने मन में रखना..किसी की मजबूरियों का मजाक ना उड़ाना..और देखो मैंने आपके लिये एक और कविता लिखी है इस अवसर पर...पढ़कर जरूर बताना इसके बारे में कुछ कहकर...मुझे और नीलम आंटी को भी जरूर याद करना इस दिन...

जय हिंद !


आजाद देश के पंछी हम


आजाद देश के पंछी हम
जय हिंद ! वन्दे मातरम् !

हाँ, आज का दिन छुट्टी का दिन

सुबह-सुबह सो के उठी मुन्नी
बोली मेरी स्कूल से छुट्टी
भैया की कालेज से छुट्टी
पापा की आफिस से छुट्टी
आज सबकी है मौज सारा दिन

हाँ, आज का दिन छुट्टी का दिन

आज खेलेंगें, टीवी देखेंगे
परेड निकलेगी, गाने सुनेंगे
सड़कों पर जलूस निकलेगा
भरत नाट्यम डांस भी होगा
होगी तब ताक धिना-धिन

हाँ, आज का दिन छुट्टी का दिन

आजाद देश के पंछी हम
जय हिंद ! वन्दे मातरम् !

प्राइम मिनिस्टर की स्पीच होगी
पापा डांटेंगे कमरे में चुप्पी होगी
मम्मी किचन में जायेगी
आज वो खीर हलवा खिलायेगी
आसमान में पतंगें उडेंगी अनगिन

हाँ, आज का दिन छुट्टी का दिन

आजाद देश के पंछी हम
जय हिंद ! वन्दे मातरम् !

-शन्नो अग्रवाल


बच्चो, इस कविता को मैंने अपनी आवाज़ भी दी है। सुनकर ज़रूर बताना कि आपलोगों को कैसी लगी?



(चित्र गूगल से साभार)


Thursday, August 12, 2010

नौ एकम नौ, नौ दूनी अट्ठारह,


नौ एकम नौ, नौ दूनी अट्ठारह,

नौ एकम नौ,
नौ दूनी अट्ठारह,
मुँह धो के आलस,
कर दो नौ दो ग्यारह


नौ तीए सत्ताईस,
नौ चौके छत्तीस,
हँस-हँस के करते रहो,
खुशियों की तुम बारिश


नौ पंजे पैंतालीस,
नौ छके चौव्वन,
कर लो जो कुछ करना है,
फिर बीत जायेगा जीवन

नौ सत्ते त्रेसठ,
नौ अटठे बहतर,
संग बुरे बच्चों का हरदम,
होता ही है बदतर


नौ नामे इक्यासी,
नौ दसे नब्बे,
बबलूजी पहाड़े पढ़ कर,
हो गये हक्के-बक्के ।



--
डा0अनिल चड्डा,



Tuesday, August 10, 2010

राजा की बारात



प्यारे बच्चों ,
निखिल की एक और प्यारी कविता प्रस्तुत है ,पढो और अपने दोस्तों को भी सुनाओ ,और चाहो तो अपनी नानी को भी सुना सकते हो ...........................

राजा की बारात

गर्मी में छत पर आ बैठे,

जब हुई अंधेरी रात...

नानी कहने लगीं कहानी,

बच्चे थे छह—सात..

हाथी-घोड़ा, नर और नारी,

नाच रहे थे साथ,

मंगलगान गा रहे थे,

लिए हाथ में हाथ..

हर व्यक्ति के हाथों में थी,

कुछ न कुछ सौगात..

राजमहल में जड़े हुए थे

हीरे-पन्ने जवाहरात,

जब हमने नानी से पूछा,

आखिर क्या थी बात?

वो बोलीं-आने वाली थी

आसमान से राजा की बारात...


Friday, August 6, 2010

भावी पीढ़ी



प्यारे बच्चों आज हम सब के लिए लायी हैं पूजा आंटी एक प्यारी सी कहानी,पढ़ कर बताओ कैसी लगी और तुमने इस कहानी से क्या सीखा ,हाँ एक बात और तुम चाहो तो हमे लिख कर
भेज सकते हो कि तुम अपना जन्मदिन कैसे मानना चाहते हो ??????



भावी पीढ़ी

"मोहित बेटा!! इधर आइये ."

"जी पापा जी, कहिये."
"बेटा, अगले इतवार को तुम्हारा बर्थडे है, अपने जीवन का पहला दशक पूरा करोगे . तुम अपने सारे दोस्तों को इनवाईट कर लो ."
"पापाजी, इस साल मुझे बर्थडे नहीं मनाना."
"क्यों बेटा, इस साल बर्थडे क्यों नहीं मनाना? किसी ने कुछ कहा तुमसे?"
"नहीं पापाजी, कहा तो नहीं किसी ने कुछ भी..."
"फिर क्या बात है बेटा?"
"पापाजी, हमारी क्लास टीचर ने हमें बताया कि हम लोग देश की भावी पीढ़ी हैं, आने वाले कल में हमें ही देश की भागडोर संभालनी है ."
"हाँ बेटा, यह तो सच है, आने वाले कल में तुम लोगों में से ही कोई देश का प्रधान मंत्री बनेगा और कोई राष्ट्रपति."
"पापाजी, देश को सँभालने की जिम्मेदारी बहुत बड़ी होती है ना?"
"हाँ बेटा, देश को सँभालने के लिये व्यक्ति का जिम्मेदार इंसान होना बहुत आवश्यक होता है. पर इस सबका तुम्हारे जन्मदिन से क्या लेना देना?"
"पापाजी, एक सवाल का जवाब और दीजिये प्लीज़."
"कहो.."
"क्या जिम्मेदार होने के लिये बड़ी उम्र होना जरूरी है?"
"नहीं बेटा, ऐसा तो कुछ जरूरी नहीं होता, छोटी उम्र में भी कई लोगों ने बड़े कारनामे किये हैं."
"पापाजी, इसीलिए मैं भी अपना जन्मदिन नहीं मानना चाहता."
"तुम्हे क्या लगता है, अपना जन्मदिन नहीं मनाने से तुम महान हो जाओगे?"
"पापाजी , मुझे महान नहीं जिम्मेदार होना है."
"अच्छा!! हमें भी बताइए कि आप जिम्मेदार कैसे होंगे?"
"आप मेरे बर्थडे के लिये बहुत सा पैसा खर्च करते हैं, उस पैसे को सही जगह पर खर्च करके. पापाजी, हमारे स्कूल के पास रतन चाय वाले के पास एक 7 साल का लड़का काम करता है, उसके पिताजी के पास उसे पढ़ाने का पैसा नहीं है, इस लिये उसे काम करना पड़ता है, और काम करने की वजह से उसे स्कूल जाने का समय नहीं मिलता, क्यों ना हम यह पैसा उसकी पढाई पर खर्च करें? "
"यह सब सोचने के लिये तुम अभी बहुत छोटे हो बेटा, जब तुम बड़े हो जाओ, तब तुम्हारा जो मन करे वही करना, अभी तुम्हारे खेलने के दिन हैं, जन्मदिन मनाने से तुम्हारे सभी दोस्त तुम्हारे लिये ढेर सारे खिलौने लाते हैं, उन सब को देख कर तुम्हे कितनी ख़ुशी मिलाती है, है ना? "
"पापाजी, पिछले साल बर्थडे पर मुझे कितने खिलौने मिले थे...."
"वही तो बेटा, इस साल भी मिलेंगे, जाओ, तुम अपने सभी दोस्तों से कह देना."
"नहीं पापाजी, मैंने अब तक पिछले साल वाले बहुत से खिलौनों को खोला भी नहीं है और इतनी पढाई करनी पड़ती है कि समय भी नहीं मिलता कि सब खिलौनों से खेला जाये. पापाजी, आप यूँ भी मेरा जन्म दिन मनाना चाहते हैं, इस बार कुछ अलग तरह से जन्मदिन मनाईये ना..!! प्लीज़ पापा प्लीज़."

लेखिका
(पूजा अनिल)
फोटो
(दीपक मिश्रा)


Tuesday, August 3, 2010

सावन आया रे !




प्यारे बच्चों तुम सब को बहुत प्यार करने वाली शन्नो आंटी ने भेजी है एक प्यारी सी कविता पढो ,और बताओ कि कैसी लगी :-




सावन आया रे !
सावन की फैली हरियाली
झूमे हर डाली मतवाली
बचपन की याद दिलाती
आँखें फिर भर-भर आतीं
जब छायें घनघोर घटायें
झम-झम बारिश हो जाये
हवा के ठंडे झोंके आते थे
सब आँगन में जुट जाते थे
गर्जन जब हो बादल से
हम अन्दर भागें पागल से
पानी जब कहीं भर जाये
तो कागज की नाव बहायें
मौसम का जादू छा जाये
कण-कण मोहित हो जाये
गुलपेंचे का रूप बिखरता
हरसिंगार जहाँ महकता
एक नीम का पेड़ वहाँ था
और जहाँ पड़ा झूला था
झगड़े जिस पर होते थे
पर साहस ना खोते थे
बैठने पे पहल होती थी
और बेईमानी भी होती थी
जब गिर पड़ते थे रोते थे
दूसरे को धक्का देते थे
माँ तब आती थी घबरायी
और होती थी कान खिंचाई.

-शन्नो अग्रवाल

( चित्र - गूगल से साभार )

इस कविता को आप नीलम आंटी की प्यारी आवाज़ में सुन भी सकते हैं। नीचे का प्लेयर चलायें।



Sunday, August 1, 2010

जानवर राजा


प्यारे बच्चों ,
एक प्यारी मजेदार कविता आपके सामने प्रस्तुत है जिसे भेजा है "निखिल आनंद गिरि "ने पढो और बताओ आपको ये कविता कैसी लगी

जानवर राजा
सभा बुलाई जानवरों ने,
विषय था कौन बने सिरमौर?
कुछ थे शेर के पक्ष में,
कुछ करते हाथी पर गौर
उधेड़बुन में फंसे रहे सब,
खूब चला लंबा ये दौर..
तभी बीच में भालू बोला-
सुन लो मेरा भी सुझाव,
क्यों नहीं मनुष्यों जैसे,
हम भी करवाएं एक चुनाव
सब जानवर स्वीकृत हुए,
बोले-‘अच्छा है प्रस्ताव’
अगले दिन संपन्न हुआ,
मतदान और मतगणना का काम
अखबारों में ख़बर थी ताज़ा,
शेर घोषित हुआ ‘जानवर राजा’।

निखिल आनंद गिरि


Thursday, July 22, 2010

गुड़िया की चिड़िया

चिड़िया आये, फुर्र से जाये,
नन्हे-नन्हे पंख फैलाये,
छोटी-सी गुड़िया को मेरी,
दूर-दूर से वो तरसाये।

पापा से वो जिद कर बैठी,
मुझको भी इक चिड़िया ला दो,
खेलूँगी उसके संग मैं भी,
उसको मेरा दोस्त बना दो।

चिड़िया वाले से था पूछा,
इतनी चिड़िया कैसे पाई,
तो चिड़िया वाले ने बच्चो,
अपनी थी इक चाल बताई।

पास बुलाने को जब अपने,
थोड़ा सा हम दाना डालें,
लालच में दाने के आ कर,
जाल में खुद को वो फँसवा ले ।

थोड़े से लालच में आ कर,
उसने थी आजादी गँवाई,
बाद में कोई भी चालाकी,
उसके किसी काम न आई।

कैद में पिंजड़े की रह कर के,
जब थी चिड़िया फड़फड़ाई,
छोटी सी गुड़िया के मन में,
उसे देख तब दया थी आई।

अपने पप्पा को कह कर के,
उसने उसकी जान बचाई,
बड़े प्यार से पैसे दे कर,
उसको अपने घर ले आई।

थोड़ा सा दाना था डाला,
बड़े प्यार से उसे खिलाया,
दोनो की जब हुई दोस्ती,
आसमान में उसे उड़ाया।

अगले दिन फिर चूँ-चूँ करती,
चिड़िया दाना खाने आई,
गोदी में वो बैठी आ कर ,
दोस्ती उसने थी जतलाई।

चिड़िया की भाँति तुम बच्चो,
भूल से कभी न लालच करना,
छोटी सी गुड़िया से सीखो,
बेजुबान पर दया तुम करना।

--डॉ. अनिल चड्डा


Saturday, June 5, 2010

आठ एकम आठ, आठ दूनी सोलह


आठ एकम आठ,
आठ दूनी सोलह,
संगत बुरी से,
दूर सदा रहना।


आठ तीए चौबीस,
आठ चौके बत्तीस,
आदतें तुम अपनी,
रखना नफीस।

आठ पंजे चालीस,
आठ छेके अड़तालीस,
कपड़े, किताब, बस्ता,
नहीं रखना गलीच।

आठ सत्ते छप्पन,
आठ अट्ठे चौसठ,
मंशा में अपनी,
कभी न लाना खोट।

आठ नामे बहत्तर,
आठ दसे अस्सी,
दोस्त बनो अच्छे,
रहो अच्छे पड़ोसी।

--डॉ॰ अनिल चड्डा

दो एकम दोतीन एकम तीनचार एकम चारपाँच एकम् पाँचछ: एकम छ:सात एकम सात


Sunday, May 23, 2010

बगुले और मछलियाँ



बगुलों ने ऊपर से देखा
नीचे फैला छिछला पानी
उस पानी में कई मछलियाँ
तिरती-फिरती थी मनमानी


सातों अपने पर फडकाते
उस पानी पर उतर पड़े
अपनी लम्बी -लम्बी टांगों
पर सातों हो गए खड़े

खड़े हो गए सातों बगुले
पानी बीच लगाकर ध्यान
कौन खड़ा है घात लगाए
नहीं मछलियां पायीं जान

तिरती -फिरती हुई मछलियां
ज्यों ही पहुंची उनके पास ,
उन सातों ने सात मछलियां
अपनी चोंचों में ली फाँस

पर फड़काकर ऊपर उठकर
उड़े बनाते एक लकीर
सातों बगुले ऐसे जैसे
आसमान में छूटा तीर

हरिवंशराय बच्चन

इस कविता को आप नीलम आंटी की प्यारी आवाज़ में सुन भी सकते हैं। नीचे का प्लेयर चलायें।


Tuesday, May 18, 2010

'पानी के बोतल से बनाओ कुछ खास' और हमें भेजो

प्यारे बच्चो,
आजकल छट्टियों में क्या कर रहे हो, गर्मी बहुत पड़ रही है इसलिए सिर्फ सुबह और शाम को ही बाहर खेलने जाना और हाँ अपनी पानी की बोतल साथ में ले जाना मत भूलना। पानी की बोतल से याद आया कि क्यों न हम सब इन छट्टियों में बोतल को कचरे में फेकने की बजाय इन से प्यारी-प्यारी डॉल्स(गुड़िया) बनाएँ। कुछ चित्र भेज रही हूँ उन्हें देखकर अपनी रचनात्मकता लगाकर और भी बहुत कुछ बना सकते हो और उसकी फोटो खीचकर हमारे पास भेज सकते हो। सबसे अच्छी रचनात्मक कृति को हम पुरुस्कृत भी करेंगे ...........(उदाहरण के लिए- 2008 के बाल-दिवस के अवसर पर बाल-उद्यान ने औरंगाबाद शहर के Kids IT World के साथ मिलकर 'बेस्ट आउट ऑफ वेस्ट्स' नाम से एक प्रतियोगिता की थी। आप यहाँ पुरस्कृत मॉडेल देखो, आपको आइडिया मिलेगा कि कैसे बनाना है)





फिलहाल तो उठाओ
पुराने रंगीन कागज़
पुरानी बोतल
कुछ सजावट का सामान
और
तैयार करो अपनी अपनी गुडिया और पाओ सबकी प्रशंसा जल्दी से अपनी गुडिया (चित्र )हमे इस baaludyan@hindyugm.com पर भेजो।

तुम्हारी नीलम आंटी

नोट- कृपया स्कैन करने या फोटो खींचने से पहले निर्मित सामग्री के आस-पास हस्तलिखित (handwritten) अपना नाम चिपकायें। जो चित्र आप हमें भेज रहे हैं उसमें आपका नाम दिखना चाहिए।


Saturday, May 15, 2010

नन्हे-नन्हे चूजे



नन्हे-नन्हे चूजे हैं, प्यारी-प्यारी मुर्गियाँ,
मन को लुभा रही हैं लाल-लाल कलगियाँ।

कुकड़-कूँ कर के दाना हैं खा रही,
साथ-साथ चूजों को अपने खिला रहीं,
दे रही हैं बीच-बीच ममता की झलकियाँ।

उड़ने की लालसा में पंख हैं फैला रहीं,
दड़बे से निकल कर दूर-दूर जा रहीं,
बंद की चुन्नू ने डर कर थी खिड़कियाँ ।

गर्म-गर्म गोल-गोल अंडे हैं दे रहीं,
रोज-रोज खाने का न्यौता भी दे रहीं,
सर्दी हो, वर्षा हो या हो फिर गर्मियाँ

डॉ॰ अनिल चड्डा


Thursday, May 13, 2010

दूसरी 'चित्र आधारित बाल-कविता प्रतियोगिता' में हिस्सा लीजिए

दोस्तो,

चित्र-आधारित कविता-प्रतियोगिता का दूसरा अंक लेकर हम हाज़िर हैं। पहले अंक में आप सभी ने बहुत बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इसके लिए आपका धन्यवाद। इस बार आप नीचे दिये गये चित्र पर हमें प्यारी सी मगर छोटी बाल-कविता लिख कर भेज दें। आप कविता baaludyan@hindyugm.com पर भेज सकते हैं। कविता भेजने की अंतिम तिथि- 30 मई 2010 है।

अधिक से अधिक संख्या में भाग ले कर इस प्रतियोगिता को सफल बनाने में हमारा योगदान करें। कविता पहले से कही भी प्रकाशित न हो, इस बात का ध्यान अवश्य रखें।

उल्लेखनीय कविताओं का प्रकाशन बाल-उद्यान में रचनाकार के परिचय और चित्र के साथ किया जायेगा।


Saturday, May 8, 2010

क्या आप जानते हैं ?

क्या आप जानते हैं?

1) भारत में हर 15 सेकंड एक नवजात बच्चे की मृत्यु हो जाती है।

2) प्रतिवर्ष जन्म लेने के चौबीस घंटे के भीतर पूरे देश में चार लाख बच्चे मर जाते हैं।

3) बीस लाख बच्चे अपना 5वाँ जन्मदिन देखने के पहले ही मर जाते हैं।

4) पूरे विश्व में यह संख्या 88 लाख बच्चों की है।

5) पर दुःख की बात यह है की पूरे विश्व के 1/5 प्रतिशत बच्चे जो मरते हैं, वे भारतीय बच्चे होते हैं।

6) कुपोषित तीन विश्व के बच्चों में एक बच्चा भारत यानी हमारे देश का है।

जरा उस माँ के बारे में सोचिये, जिसने उसे अपने गर्भ में 9 माह रखा और उसे देख भी नहीं पायी कि वह इस दुनिया में अब नहीं है, है न हम सभी के लिए राष्ट्रीय शर्म की बात।


Thursday, May 6, 2010

अकबर-बीरबलः भगवान की गलती



एक बार जहाँपनाह अकबर ने बीरबल से कहा की इस दुनिया में भगवान ने बहुत सारी गलतियाँ की हैं। चलो हम उन्हें एक कागज पर लिखते हैं और जब हम भगवान के यहाँ जायेंगे तो शिकायत करेंगे। बीरबल ने कहा- ''जहाँपनाह भगवान ने जो भी किया है वो सही किया है।'' लेकिन मन ही मन में बीरबल कुढ़ रहे थे की भगवान ने एक गलती जरूर कर दी कि उनकी जगह अकबर को राजा बना दिया। फिर भी राजा की आज्ञा थी तो कलम-दवात लेकर निकल पड़े अकबर के साथ। घूमते हुये दोनों लोग मिलकर गलतियाँ ढूँढने की कोशिश करने लगे। सबसे पहले उन्हें एक तरबूज की एक बेल दिखाई पड़ी जिस पर बड़े-बड़े तरबूज लगे थे। बादशाह बोले- '' बीरबल पहली गलती को लिखा जाये की इतनी पतली और कमजोर डाल पर इतने बड़े-बड़े तरबूज लगे हैं।'' वहीं पर पास में एक बागीचा भी था जिसमें आम के पेड़ लगे हुये थे। अकबर बोले- '' बीरबल दूसरी गलती को भी लिखो कि इतनी मोटी डाल पर इतने छोटे-छोटे आम लगे हैं। लेकिन उस बेचारी पतली सी बेल पर इतने भारी-भरकम तरबूज लगे थे। बीरबल बोले- '' जो हुकुम महाराज।'' फिर अकबर बोले- ''बीरबल मैं बहुत थक गया हूँ और अब आराम करने को जी कर रहा है।'' बीरबल बोले- '' हुजूर, यहीं आम के पेड़ के नीचे मैं अपना अंगौछा बिछा देता हूँ, और अब आप लेट कर आराम कर लीजिये।'' अकबर वहाँ लेट कर झपकी लेने लगे तभी एक आम पट से उनकी नाक पर गिरा और वह तिलमिलाकर उठ बैठे और बोले- '' बीरबल इस पेड़ को काटकर फेंक दो।'' बीरबल बोले- '' जहाँपनाह भगवान जो भी करता है अच्छे के लिये ही करता है। यह तो एक छोटा सा आम ही था..लेकिन इसकी जगह अगर पेड़ पर तरबूज लगा होता तो आप का क्या हाल होता।'' तब अकबर की समझ में आया और बोले- '' हाँ बीरबल बात तो तुम्हारी सही लगती है।''


Monday, May 3, 2010

मलक मेहता- एक और बाल चित्रकार

आज हम एक और बाल-चित्रकार को इस उपवन में रोंप रहे हैं। बताइए कैसी है इसकी महक?


मलक मेहता

जन्मतिथि- 9 मार्च 2001
कक्षा- 4
अभी-अभी मलक ने चौथीं कक्षा में प्रवेश लिया है। डीपीएस स्कूल, सूरत की छात्रा मलक सरोज ख़ान से नृत्य-विद्या की ट्रेनिंग ले चुके प्रशिक्षक से डांस सीख रही हैं। किसी समय में मलक को लॉन टेनिस का भी शौक था, लेकिन इस दिनों नृत्य का जुनून है। चित्रकारी से विशेष लगाव है।



Thursday, April 29, 2010

मछली जल की रानी हैं

मछली जल की रानी हैं

प्यारे बच्चों आज हम तुम्हे दिखाएँगे कुछ प्यारी -प्यारी तस्वीरें जो हम लायें हैं ख़ास तुम्हारे लिए जम्मू के fish aquarium से तुम लोगों को बचपन की वो कविता याद है ना .............

मछली जल की रानी हैं



जीवन उनका पानी है

हाथ लगाओगे तो डर जायेंगीं

बाहर निकालोगे तो मर जायेंगीं

पानी में डालोगे तो सारा पानी (नहीं )पी जायेंगीं

(फोटो -दीपक मिश्रा के सौजन्य से )