Friday, November 5, 2010

आई दिवाली

तो हर साल की तरह दीपावली या कहो दिवाली का त्योहार फिर से आया है. दीपावली का मतलब होता है ''रोशनी की कतारें''. हिन्दू लोगों में इसका बहुत महत्व है. सब इसे बहुत उत्साह और उमंग से हर साल मनाते हैं. इस बार भी फिर वही धूम-धाम होगी, नयी चीजें और कपड़े खरीदे जायेंगे, लक्ष्मी पूजन होगा, अनगिन दिये जलाये जायेंगे, तरह-तरह की मिठाइयाँ खरीदना, आपस में मिलना-जुलना और साथ में खाना-पीना होगा. तो क्यों न सब बच्चों को दिवाली पर कहानी भी फिर से सुनाई जाये..क्या कहते हैं आप लोग...सुनोगे ? क्या कहा.. हाँ? तो फिर तैयार हो जाओ.

तो आप सबको पहले से ही पता है कि दिवाली का मतलब होता है ''रोशनी का त्योहार''. प्राचीन हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से दिवाली के दिन से नये साल का आरंभ होता है और यह कार्तिक महीने में मनाई जाती है. अंग्रेजी महीने के हिसाब से ये अक्तूबर या नबम्बर में पड़ती है. ये मुख्यतया दो कारणों से मनाई जाती है: 1. माँ लक्ष्मी जी का पूजन 2. अच्छाई की बुराई पर जीत.

लोग इस अवसर पर कई तरह की कहानियाँ सुनते और सुनाते हैं कि किस तरह से देवी देवताओं ने राक्षसों और असुरों को हराया था..लेकिन जो सबसे प्रसिद्ध व प्रचलित कहानी है वो सुना रही हूँ कि त्रेता युग में राम जो रानी कौशल्या व राजा दशरथ के पुत्र थे उन्हें उनकी सौतेली माँ कैकेयी ने 14 के लिये जंगल में रहने भेज दिया था क्योंकि वह नहीं चाहती थीं कि राम को राजा बनाया जाये. एक दिन लंका के राजा रावन ने सीता माता का धोखे से अपहरण कर लिया. तब राम अपने मित्र हनुमान व तमाम वानर और भालुओं की सेना के साथ लंका पहुँचे और वहाँ रावन और उसकी सेना के साथ घमासान युद्ध किया जिसमें रावन राम के हाथों छोड़ा हुआ सुनहरा तीर लगने से मारा गया. और राम व सीता वापस अयोध्या लौट आये. लेकिन उस दिन घोर अँधेरी रात थी तो अयोध्या वासियों ने अपने घरों के बाहर तमाम दिये जला कर रखे ताकि राम, लक्ष्मण और सीता जी को घर का रास्ता ढंग से दिख सके. और सारी प्रजा ने उस दिन राम के वापस आने की खुशी में नाच-गाना किया और फुलझडियाँ जला कर अपनी खुशी प्रकट की.

आज को भी दिवाली मनाने की वही प्रथा चली आ रही है. सब लोग परिवार के संग मिलकर अपने घरों में दिवाली मनाते हैं. इस दिन स्कूल व आफिस बंद रहते हैं. और आप लोग तो जानते ही हैं कि आज के दिन कैसी बढ़िया-बढ़िया स्पेशल मिठाइयाँ हलवाई लोग बनाते हैं और उन्हें खरीदने के लिये दूकानों में ग्राहकों की बड़ी भीड़ लगी रहती है सारा दिन. सड़कों और दूकानों के बाहर खूब लाइट लगाकर रोशनी की जाती है, मंदिरों में भी भक्तों के द्वारा खूब प्रार्थना, पूजा और नाच-गाना होता है. लोग घरों को साफ-सुथरा करके सजाते हैं, अपने घरों के आगे अपने हाथों से रंगोली बनाते हैं..जो चावल और आटे से बनाई जाती है..बीच में उसके कमल का फूल भी बनाते हैं जो लक्ष्मी जी का चिन्ह है, ताकि माँ लक्ष्मी जो समृद्धि व धन की देवी हैं, घर में प्रवेश कर सकें. मंदिरों में इनकी मूर्ति के चार हाथों में से दो में कमल के फूल होते हैं जो पावनता का प्रतीक हैं. तीसरे हाथ से वरदान देती हैं और चौथे हाथ में से सिक्के गिरते हुये दिखायी देते हैं...जो धन का प्रतीक हैं. शाम के समय सब लोग तैयार होते हैं और अपने-अपने घरों में परिवारीजन मिलकर गणेश और लक्ष्मी की पूजा करते हैं. दिये जलाते हैं और घर बाहर व छतों को उनसे सजाते हैं. फिर मिठाइयाँ व अन्य पकवान आदि खाते हैं. आपस में अपनी हैसियत के हिसाब से लोग कपड़ों, गहनों, पैसों व मिठाइयों आदि का उपहार के रूप में आदान-प्रदान करते हैं.

व्यापारियों के लिये आज से नये आर्थिक वर्ष का आरंभ होता है, तमाम लोग ज्योतिषियों से अपने भविष्य के बारे में पूछते हैं. और इस दिन सब लोग लड़ाई-झगड़ों को भूल-भाल कर आपस में एकता कायम करने की कोशिश करते हैं. तो ये रही दिवाली पर कहानी. कैसी लगी इसे बताना ना भूलना. और अब आप सब लोग भी दिवाली की तैयारी में जुट जाइये या शायद पहले से ही जुटे होंगे. और खूब हँसी-खुशी व धमाके से मनाइये.. अरे हाँ, धमाके से याद आया कि अगर आप लोग फुलझड़ी आदि जलाकर धमाका करना चाहते हैं तो बड़ों की देख-रेख में करियेगा व बहुत सावधानी बरतियेगा.

तो अब चलती हूँ. आप सभी को मेरा प्यार व ढेरों शुभकामनायें... ये पर्व सभी को मंगलमय हो.

-शन्नो अग्रवाल


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