Sunday, January 25, 2009

अब दो नही चार दिन लगेगे

एक बार की बात है, एक बालक को एक बासुरी मिली और वह उसे बजाता रहा और उसे बजाते कई करीब दो माह बीत गये। वह घूमते-घूमते एक शहर में पहुँचा जहॉं बासुरी के बहुत ही विद्वान जानकार पण्डित थे और वह लड़का उनके शिष्य बनने के लिये पहूँचा। गुरू को प्रणाम कर बोला गुरूजी मै कितने दिनो में बांसुरी सीख जाऊँगा ? गुरू जी ने उत्‍तर दिया - तुम्‍हे खीखने मे दो महीने लगेगे। तब वह लड़का बहुत इठलाकर बोला गुरूजी मैने तो पिछले 2 माह से बहुत अभ्‍यास किया हैए तो अब कितना समय लगेगा। तब गुरूजी सोच कर बोलते है कि तुम्‍हे अब 4 चार महीने लगेगे। और लड़का क्रुद्ध होकर चला जाता है।

बाद में गुरूजी के एक सहयोगी ने इसका कारण पूछा तो गुरूजी ने उत्‍तर दिया कि इस बालक में विनम्रता नही है जो आसानी से किसी की बात मान ले दूसरी बात यह कि यह इस बालक ने 2 माह में बहुत गलत अभ्‍यास कर लिया है। जिसे पहले उसे सुधारने में 2 माह लगेगे तब इसे नया सीखने में 2 माह लगेगे।

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें किसी भी चीज का गलत अभ्‍यास नही करना चाहिये, और जहाँ किसी बात में शंका हो तो बड़ो और टीचर से पूछना चाहिये।


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4 पाठकों का कहना है :

संगीता पुरी का कहना है कि -

अच्‍छी सीख भरी कहानी...

विवेक सिंह का कहना है कि -

सही कहा जी !

डॉ .अनुराग का कहना है कि -

ठीक कहा बंधू !

neelam का कहना है कि -

अच्छी कहानी है ,"विनम्रता
सबसे बड़ा सदगुण " है ,वाकई

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