हितोपदेश-7 चील और बिल्ली
इक जंगलमें झील किनारे
रहते पक्षी प्यारे -प्यारे
गहरी छाया मे तरु पर
रहते पक्षी सब मिलकर
तने मे इक था बड़ा सा खड्डा
बन गया एक चील का अड्डा
खो दी थी उसने अपनी नज़र
गिर गए थे सब उसके पर
उड़ने से तो थी लाचार
रहने लगी थी वो बीमार
दया सब पक्षी उस पर करते
खाना खिलाकर पेट भी भरते
छाया मे वह बैठी रहती
देखभाल बच्चो की करती
खुश थे उससे पक्षी सारे
उड़ जाते सब बिना विचारे
बच्चे रहते चील के पास
था पक्षियोँ को बहुत विश्वास
इक दिन वहाँ इक बिल्ली आई
बच्चो को देख के वो ललचाई
चील ने उसकी सुनी आवाज़
बोली कौन आया यहाँ आज ?
समझी बिल्ली बात यह खास
नज़र नही है चील के पास
न तो इसके काम के पर
न चढ सकती है तरु पर
देख लिया बिल्ली ने मौका
आसानी से देगी धोखा
बोली बिल्ली मै यहाँ आई
दी यह सुन्दर जगह दिखाई
सोचा कुछ दिन यही बिताऊँ
क्यो न मै तेरे घर आऊँ ?
नही , नही यह बोली चील
जाती तुम पक्षियोँ को लील
यहाँ पे तुम फिर कभी न आना
न सुन्दर बच्चो को खाना
सुनकर बिल्ली बोली बहन
अब मेरा है पावन मन
खाती हूँ पत्ते और फल
पी लेती हूँ ठण्डा जल
छोड दिए मैने सब पाप
करती हूँ बस प्रभु का जाप
रहती हूँ भक्ति मे रत
लिया है मैने अब यह व्रत
किसी जीव को न खाऊँगी
सीधा स्वर्ग मे जाऊँगी
घर मे कोई आया मेहमान
होता ईश्वर के समान
जो मै कुछ दिन यहाँ रहूँगी
शान्त महौल मे भक्ति करूँगी
तेरे लिए खाना लाऊँगी
खुद मै भूखी रह जाऊँगी
की कुछ मीठी बाते ऐसी
सत्य की देवी के जैसी
हो गया चील को अब विश्वास
रख लिया उसको अपने पास
चुपके से बिल्ली ऊपर जाती
चुपके से बच्चे को मार के खाती
हड्डियाँ चील के घर मे छुपाती
पानी पीती और सो जाती
पक्षी सारे मन मे विचारे
कहाँ है उनके बच्चे प्यारे
बच्चा रोज गायब हो जाता
कोई भी इसको समझ न पाता
इक दिन कौआ एक सयाना
चोँच मे भर कर लाया खाना
सोचा चील को देकर आए
उसकी भी कुछ भूख मिटाए
चील के घर मे हड्डियोँ को पाया
उसने सब पक्षियोँ को बुलाया
भागी बिल्ली मौका पाकर
टूटे पक्षी चील पे आकर
इसी ने सब बच्चो को खाया
मिलकर चील को मार गिराया
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करो जो दुष्टो पर एतबार
तो झेलना पड़ता है वार
करे जो मीठी-मीठी बात
समझो देगा वो आघात

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3 पाठकों का कहना है :
हितोपदेश शृंखला में अब तक की सबसे बेहतरीन प्रस्तुति। बहुत मज़ा आया पढ़कर।
बहुत ही सुन्दर कथा-काव्य...
पढी कहानी, रुची भी, पाठ रहेगा याद.
जो लालच ज्यादा करे, वह होता बर्बाद.
विप्र देवता स्वर्ण लख, भूल गए यह सत्य.
जीव न तजे स्वभाव निज, तजे न अपने कृत्य.
'सलिल' सीख यह रखेगा, सकल जिन्दगी याद.
कपटी कितनी भी करे, सुनो नहीं फरियाद.
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