Wednesday, November 26, 2008

रेल


छुक-छुक करती-चलती रेल.
कभी न थकती-चुकती रेल.
पर्वत-घाटी, वन-उपवन-
खेले आंख-मिचौली खेल...
कालू कुत्ता दौड़ लगाता,
लेकिन कभी जीत न पाता
गर्मी, ठण्ड, धूप, बरसात-
सबको जाती हँसकर झेल...
पैसे लाओ-टिकट कटाओ,
चाहो जहाँ वहां तुम जाओ.
व्यर्थ लड़ाई, करो न झगड़ा.
सबसे हँसकर रखना मेल...
पटरी साथ-साथ हैं चलतीं,
कभी नहीं आपस में मिलती.
सिग्नल कहता रुक जाओ,
डिब्बों में है ठेलमठेल...
कलकल बहे 'सलिल' शीतल,
थकन भुलाये जगती-तल.
चलते रहना है जीवन,
अगर रुके जग-जीवन जेल...

--आचार्य संजीव सलिल


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2 पाठकों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

aapki rel to badi pyari hai sir ji,kabhi hamein bhi sir pe le chaliye na.
ALOK SINGH "SAHIL"

neelam का कहना है कि -

चलते रहना है जीवन,
अगर रुके जग-जीवन जेल...

wwakai kavita wahi hai jo manoranjan ke saath ek achchi seekh bhi de

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